'कृषि निर्यात को दोगुना करने का सपना देखने से पहले ज़रूरी है आत्म-निरीक्षण'

Mukti Sadhan Basu | Jan 07, 2019, 14:11 IST
कृषि निर्यात को दोगुना करने और भारतीय किसानों को उनके उत्पादों के साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखला में एकीकृत करना जितना बड़ा काम है, उतना ही चुनौती भरा भी
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कृषि मंत्रालय के 'किसानों की आय दोगुनी करने' के लक्ष्य के बाद, भारत सरकार का वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय किसानों के अधिक लाभ के लिए कृषि निर्यात को भी दोगुना करने के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। हम एक "नए भारत" की ओर क़दम बढ़ा रहे हैं, और ऐसे में सरकार की तरफ़ से भारतीय कृषि को नया आकार देने वाली ऐसी ही एक मज़बूत योजना की उम्मीद थी।

कृषि निर्यात को दोगुना करने और भारतीय किसानों को उनके उत्पादों के साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखला में एकीकृत करना जितना बड़ा काम है, उतना ही चुनौतीभरा भी। 'कृषि निर्यात नीति' को लागू किए जाने से पहले ज़रूरी है कि उसके लिए ज़रूरी तैयारी कर ली जाए। इसकी शुरुआत मौजूदा भारतीय कृषि निर्यात में सामने आ रही समस्याओं से की जानी चाहिए।

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मैंने पिछले साल भारत के मशहूर मसालों में से एक लाल मिर्च पाउडर से जुड़ा एक लेख लिखा था, (https://www.linkedin.com/feed/update/urn:li:activity:6354931636584452096)। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने हाल ही में एक आर्टिकल लिखा, जिसमें गुंटुर के मिर्च सैंपल में कैंसरकारी तत्व एफ़्लेटॉक्सिन्स (aflatoxins) पाए जाने की बात है (https://timesofindia.indiatimes.com/city/vijayawada/now-cancer-causing-aflatoxins-found-in-guntur-chilli-samples/articleshow/67306626.cms)।

भारत में बड़े स्तर पर मिर्च का उत्पाद होता है, यहां से बड़ी मात्रा में मिर्च का निर्यात भी किया जाता है। इतना ही नहीं, मिर्च की खतप में भी भारत बहुत आगे है। आंध्र प्रदेश में मिर्च का सबसे ज़्यादा उत्पादन होता है, साल में लगभग 7 लाख टन। मिर्च में एफ़्लेटॉक्सिन्स पाए जाने से इसके निर्यात पर गहरा असर पड़ सकता है।

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भारत में कई ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है, जिनकी अनुमति विकसित देशों में नहीं है। कई देशों में तो इन कीटनाशकों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद है। मिर्च और बासमती चावल में इन प्रतिबंधित कीटनाशकों के इस्तेमाल से निर्यात कम होने लगा है। यूरोपीय संघ ने हाल ही में बासमती चावल का ट्राईसीक्लेज़ोल (Tricyclazole) का एमआरएल 1 पीपीएम से घटाकर 0.01 पीपीएम कर दिया है, जिससे भारतीय निर्यात को काफी नुकसान हुआ है। भारतीय कृषि निर्यात के लिए एफ़्लेटॉक्सिन्स के अलावा अत्यधिक कीटनाशक और केमिकल के अवशेष एक बड़ी समस्या है। यह समस्या बासमती, अंगूर, मूंगफली और बहुत सारी चीज़ों के साथ है।



भारत ने नॉर्थ अमेरिका, लेटिन अमेरिका, एशिया पेसिफ़िक और साउथ ईस्ट एशिया के कई देशों के साथ महत्वकांक्षी कृषि निर्यात समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। साथ ही, कई और देशों के बाज़ारों में अपनी पहुंच बनाने की तेज़ी से कोशिश कर रहा है। ऐसे में हमें गंभीरता से कृषि-निर्यात में विभिन्न हितधारकों की तैयारियों और क्षमता के साथ-साथ मूल्य श्रृंखला प्रबंधन (value chain management) की सीमाओं के बारे में आत्मनिरीक्षण करने की ज़रूरत है। साल 2013-14 में जो कृषि निर्यात 43.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, वो साल 2016-17 में गिरकर 33.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। ऐसे में साल 2022 तक यह निर्यात बढ़कर 100 बिलियन डॉलकर होने की योजना किसी सपने जैसी ही लगती है।

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मैंने अफ्रीका के मालावी में एफ़्लेटॉक्सिन मैनेजमेंट इन ग्राउंडनट, मेज़, पेपरिका में बतौर UNIDO इंटरनैशनल काउंसलर और महत्वपूर्ण फसलों मूंगफली, मक्का, सोरघम, चावल, मिर्च, काली मिर्च और हल्दी में मायकोटोक्सिन मैनेजमेंज पर आईसीएआर नेटवर्क प्रॉजेक्ट के बतौर अध्यक्ष काम किया है। मुझे अपने अनुभव से भारतीय निर्यात की सेवा करने और उसे नया आकार देने में खुशी होगी।

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