बिहार में महागठबंधन का बिखराव भाजपा की जीत

गाँव कनेक्शन | Jul 31, 2017, 14:50 IST
Bihar
प्रभुनाथ शुक्ल

बिहार में बुधवार को सियासी क्षितिज पर शह-मात की जो तस्वीर दिखाई पड़ी, वह बहुत अद्भुत और अचंभित करने वाली नहीं है। विचारों के बेमेल महागठबंन का महाप्रयाण होना तय था, पर इसका समय निश्चित नहीं था। राज्य में सियासी तिकड़म की तीन घंटे की जो फिल्म बनी उसके परिदृश्यों ने यह साबित कर दिया कि भाजपा और जदयू के बीच मैच पहले से फिक्स था।

राज्य में सियासी पैंतरेबाजी की पूरी पटकथा तैयार हो चुकी थी, बस उसे अमल में लाने की जिम्मेदारी नीतीश की थी। इस घटनाक्रम के बाद नीतीश कुमार की छवि एक बार फिर राष्ट्रीय फलक की राजनीति पर नए अवतार में उभरी है। जबकि लालू यादव काफी पीछे टूट गए हैं।

लालू यादव चारा घोटाले के बाद चेहरे पर लगे दाग को साफ नहीं कर पाए और बिहार की राजनीति से खुद को बाहर निकालने में कामयाब नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार और पुत्रमोह में महागठबंधन धर्म को हाशिए पर रखा। कांग्रेस भी महागठबंधन को बचाने में नाकाम रही है। राहुल गांधी से नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद भी स्थिति नहीं संभल पाई।

कांग्रेस तेजस्वी प्रकरण पर लालू पर दबाव नहीं बना पाई जबकि भ्रष्टाचार को लेकर राहुल गांधी ने अपनी ही पार्टी की तरफ से लाए गए आर्डिनेंस को फाड़ दिया था। एक बार फिर नीतीश और मोदी की जोड़ी हिट और फिट हुई है। दोनों के मास्टर स्ट्रोक से कांग्रेस और लालू का विकेट क्लीन बोल्ड हो गया। बिहार में 2019 का मार्ग राजग के लिए प्रशस्त हो गया।

बिहार की जनता ने महागठबंधन को जनादेश दिया था। वह किसी एक दल, जदयू, राजद और कांग्रेस को जनादेश नहीं दिया था। भाजपा को रोकने के लिए अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक मंच पर आए थे और जनता ने उन पर भरोसा जताया था। राजनीतिक विचारधाराओं और सिद्धांतों की बात करें तो बिहार में जो कुछ हुआ वह जनता के जनादेश और राजनीतिक विश्वनीयता पर कुठाराघात है।

एक बार फिर सत्ता के लिए सब कुछ हाशिए पर रखा गया। इसमें कोई शक नहीं कि बिहार की राजनीति में नीतीश की छवि जीरो टोलरेंस की है। भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे वह अपने मंत्रियों से तीन बार त्यागगपत्र ले चुके हैं। लिहाजा तेजस्वी यादव को पचाना उनके लिए संभव नहीं था क्योंकि लालू यादव दबाव की राजनीति कर रहे थे।

पुत्रमोह और भ्रष्टाचार उनके लिए शिष्टाचार बन गया था। वह करप्शन का कीचड़ नीतीश कुमार और सरकार के कंधे पर डाल महागठबंधन चलाना चाहते थे। नीतीश के लिए यह मुमकिन नहीं था। क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री की कमान नीतीश के हाथ थी। उधर भाजपा के सुशील मोदी भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश पर हमले बोल रही थे। इसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ता, जनता में इसका संदेश गलत जा रहा था।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के त्यागपत्र के कुछ मिनटों के बाद पीएम मोदी का ट्वीट आना और बाद में सुशील मोदी का नीतीश को समर्थन देने की घोषणा सोची समझी और तयशुदा राजनीति की तरफ इशारा करती है। त्यागपत्र के तत्काल बाद पीएम मोदी और अमितशाह की अगुवाई में दिल्ली में बैठक। फिर तीन सदस्यीय दल गठित कर बिहार भेजने की बात के बीच नीतीश को समर्थन देने का सुशील मोदी की घोषणा सुनियोजित रणनीति की तरफ इशारा करती है।

दूसरी तरफ भाजपा विधायक दल की बैठक पार्टी मुख्यालय में आयोजित होने के बजाए सीधे नीतीश के घर की जाती है जिसमें नीतीश को राजग विधायक दल का नेता चुना जाता है। उससे भी बड़ी बात विधायक दल की मीटिंग के पूर्व ही सुशील मोदी की तरफ से 132 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को सौंप दी जाती है।

बाद में आधी रात को नीतीश राजभवन पहुंच सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं जबकि राज्यपाल त्रिपाठी नाक में संक्रमण की वजह से अस्पताल में भर्ती थे। इसके बाद राज्यपाल की तरफ से नीतीश को शाम पांच बजे मुख्यमंत्री की दोबारा शपथ लेने का समय दिया जाता है। पुनः आदेश में फेरबदल करते हुए सुबह दस बजे शपथ की बात कहीं जाती है।

जबकि तेजस्वी यादव को राज्यपाल की तरफ से सुबह 11 बजे मिलने का वक्त दिया गया था। इसकी भनक तेजस्वी खेमें को जब लगी तो राजभवन के बाहर प्रदर्शन किया जाता है। यह सब स्थितियां यह साफ करती हैं कि पूरी राजनीतिक ड्रामेबाजी की रणनीति पहले से तय थी। उसे बस अमल में लाने की जरुरत थी। राज्य में तेजस्वी यादव पार्टी राजद सबसे बड़े दल के रूप में हैं। संवैधानिक लिहाज से पहले उन्हें न्यौता दिया जाना चाहिए था।

लेकिन गोवा, मणिपुर, अरुणांचल प्रदेश की बात करें तो सबसे बड़े राजनीतिक दल होने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई, जबकि भाजपा बाजी मार ले गई। यह नीति बिहार में भी लागू की गई। आमतौर पर केंद्र की सत्ता जिसके हाथ में होती है वह इस संवैधानिक संस्था का उपयोग अपने तरीके से करता है। उत्तराखंड के मसले पर भाजपा को अदालती फैसले के बाद मुंह की खानी पड़ी थी।

भाजपा और नीतीश को यह डर था कि अगर जल्दबाजी नहीं दिखाई गई तो जदयू के विधायक टूट कर लालू यादव के खेमें में जा सकते हैं, जिससे सरकार बनाने में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है क्योंकि बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए। जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिलाकर कुल संख्या 58 पहुंचती है। भाजपा के कुल 53 एमएलए हैं, बाकि रामविलास पासवान और समता पार्टी के साथ दो निर्दलीय हैं।

243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में राजद 80, कांग्रेस 27 और सात अन्य को मिलाने के बाद भी कुल संख्या 114 की है। उस स्थिति में भी सरकार नहीं बन पाती। पर भाजपा और नीतीश को डर था कि विधायकों की तोडफोड से स्थिति बदल सकती है। हालांकि बिहार में महागठबंधन का अभ्युदय राजनीतिक आकांक्षाओं के मध्य हुआ था। राजग में शामिल जदयू की दोस्ती लंबी चली थी, पर 2014 में जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया तो नीतीश पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी हो गई और 2013 में भाजपा-जदयू की दोस्ती टूट गई।

बिहार में अपनी नाराजगी और भाजपा को सबक सिखाने के लिए महागठबंधन का गठन किया, राज्य के आम चुनाव में महागठबंधन की विजय सुनिश्चत कर भाजपा को अपनी राजनीतिक ताकत का भान कराया। सुशासन बाबू भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा कर जहां अपनी छवि को बचाने में कामयाब रहे हैं। वहीं चार साल बाद नीतीश एक बार पुनः राजग गठबंधन का हिस्सा बन गए हैं। बिहार में अभी 40 माह का शासनकाल उनके हाथों में रहेगा। भाजपा की बढ़ती ताकत को नीतीश भांप गए थे, पीएम मोदी और सुशील मोदी की उनकी पुरानी दोस्ती एक बार फिर नया गुल खिलाएगी।

2019 में वह मुख्यमंत्री होंगे या नहीं यह फैसला जनता का जनादेश करेगा। कांग्रेसमुक्त भारत और राजदमुक्त बिहार को दृष्टिगत रखते हुए भाजपा यह जोखिम कभी नहीं लेना चाहेगी। 2019 मिशन के लिए उसे एक मजबूत साथी की जरुरत होगी। उस स्थिति में नीतीश से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। लिहाजा यह सियासी दोस्ती बिखरने वाली नहीं है। क्योंकि इसकी गांठ साफ-सुथरी राजनीतिक पर आधारित संकल्प है। राजनैतिक क्षितिज पर भाजपा की बढ़ती लागत और वजूद खोती कांग्रेस लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Tags:
  • Bihar
  • Politics
  • महागठबंधन
  • Samachar
  • hindi samachar
  • Article

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.