कोरोना संकट: आने वाले दिनों में बेरोजगारी की समस्या से निबटने के लिए प्रभावी उपाय तत्काल करने होंगे

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कोरोना संकट: आने वाले दिनों में बेरोजगारी की समस्या से निबटने के लिए प्रभावी उपाय तत्काल करने होंगे

वल्लभाचार्य पांडेय

लॉक डाउन के दूसरे चरण की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री जी ने देश की जनता से अपनी अपील सप्तपदी के तौर पर की जिसके एक बिंदु में उन्होंने सक्षम लोगों को अपने कर्मचारियों का ध्यान रखने और उन्हें काम से न निकालने का संकेत दिया, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी स्थिति दिख नहीं रही है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों जिनकी संख्या देश में 20 करोड़ के आसपास होनी चाहिए से तमाम मल्टीनेशनल कम्पनियों में ऊंचे पैकेज पर कार्यरत पूर्ण व्यवसायिक कर्मियों तक की आजीविका पर गंभीर संकट आ खड़ा हुआ है। बल्कि यूँ कहें कि मजदूर ही नहीं आईटीआई से लेकर आईआईटी तक के युवाओं की नौकरी या रोजगार खतरे में है, कई कम्पनियों में कर्मचारियों की छटनी की रूप रेखा तैयार हो रही है तो कहीं उस पर काम प्रारम्भ हो चुका है।

बड़े शहरों में मेहनत करके आजीविका चला रहे लाखों कामगार अपने को असहाय समझते हुए विगत दिनों पलायन को मजबूर हुए, कुछ जो फंसे हुए हैं वे लॉक डाउन हटते ही अपने अपने गाँव कस्बों में लौटेंगे। औधोगिक शहरों में तमाम कार्य असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और कारीगरों द्वारा होता है, इन लोगों ने कोरोना संकट के इस कठिन काल को जिस तरह भुगता है अथवा भुगत रहे हैं उससे लगता है कि आने वाले कुछ वर्षों में उनकी वापसी थोड़ी कठिन ही होगी। इससे दो तरह की दिक्कतें स्वाभाविक रूप से होंगी एक तरफ तो बड़े शहरों में इन मजदूरों की कमी के कारण विभिन्न औद्योगिक इकाइयों को पूरी क्षमता में चला पाना मुश्किल होगा वही गाँवो और कस्बो में वापस लौटी मजदूरों और कामगारों की बड़ी संख्या के लिए रोजगार और आजीविका के विकल्प सीमित होंगे।

औद्योगिक इकाइयों में प्रायः नियमित मजदूरों के संख्या के अलावा ऐसे बहुत मजदूर होते हैं जो दैनिक वेतन पर, संविदा पर अथवा सेवा प्रदाता कम्पनियों द्वारा मुहैया कराए जाते हैं, कोरोना संकट के इस दौर में जब लाखों मजदूर मजबूरी में बड़े शहरों को छोड़ कर पैदल ही अपने गाँव जाने को चल पड़े थे उस दौरान सैकड़ों लोगों से मिले अनुभव से स्पष्ट था कि ऐसे बहुत सारे मामले थे जब मजदूरों को किसी ठीकेदार ने काम पर लगाया था, ऐसे मजदूरों की अंतिम मजदूरी का हिसाब काम खत्म होने पर अथवा घर वापसी के समय किया जाता है बाकी समय में खुराकी भर को पैसा ठेकेदार द्वारा दिया जाता है। लॉक डाउन होने के दूसरे तीसरे दिन के बाद ही अधिकाँश ऐसे ठेकेदार जिनके पास आगे खुराकी देने के लिए पैसा नही बचा वे मोबाइल बंद करके कहीं गायब हो लिए और भूखा प्यासा मजदूर बेबस होकर गाँव लौट चला, यह सोच कर कि शहर में खाए बिना मरने से बेहतर है अपने गाँव वापस चलना जहाँ कम से कम उसे नमक रोटी तो मिल ही जायेगी।

रास्ते की तमाम दुश्वारियां उसे भविष्य में दुबारा शहर आने से बार बार रोकेंगी। वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र में भी सेवा प्रदाता कम्पनियों के माध्यम से तमाम कार्य किये जा रहे हैं जिसमे विभिन्न क्षेत्रों के कुशल कारीगरो को रोजगार मिला हुआ है, कोरोना संकट के चलते कम्पनियों द्वारा उनकी छटनी किये जाने का संकेत स्पष्ट रूप से मिलने लगा है, शहर में रह कर बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने और थोडा बेहतर जीवन स्तर बनाने की चाह कभी उन्हें शहर लेकर आयी रही होगी लेकिन अब बेरोजगार होकर वापस गाँव में लौट कर बच्चों को उन्ही सरकारी स्कूलों में भेजना उनकी मजबूरी होगी जिसकी गुणवत्ता दिनोदिन गिरती ही गयी।

ऐसा स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि विदेशों में नौकरियां कर रहे लाखों भारतीय युवा भी अपनी नौकरियों से हाथ धो सकते हैं। रीयल स्टेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल आदि सेक्टर में संभावित बड़ी मंदी के कारण भी बेरोजगारी बढ़ेगी। कोरोना के प्रभाव से निजी क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर आने की सम्भावना कुछ दिनों तक नगण्य रहेगी जो बेरोजगारी के संकट को और बढ़ाएगी। इन प्रवासी भारतीयों के लौटने की स्थिति में उनकी उनकी योग्यता और क्षमता के अनुरूप उन्हें नौकरी या रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पाना भी एक बड़ी चुनौती होगी।

कोरोना त्रासदी के चलते आने वाले कुछ वर्ष भारत ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम देशों के लिए बहुत भारी पड़ेंगे। जब संक्रमण का दौर समाप्त होगा तो बेरोजगारी और आजीविका का गंभीर संकट सामने मुंह बाये खड़ा होगा और अगर उसका समय रहते निदान नही खोज लिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। पेट की आग तमाम अपराधों को जन्म दे सकती है जिससे सामाजिक तानाबाना डांवाडोल हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की समस्या के अलावा पारिवारिक असंतोष, सम्पत्ति बंटवारा, राजस्व विवाद, महिलाओं के प्रति अपराध, घरेलू हिंसा, नशाखोरी, विषाद जैसे कुछ अन्य सामाजिक समस्याओं में स्वाभाविक वृद्धि हो सकती है, इसी प्रकार की समस्या छोटे शहरों और कस्बो में भी निश्चित रूप से हो सकती है।

इस संभावित समस्या से निबटने के लिए सरकार को प्रभावी नीतियां बनानी होंगी, वास्तव में ऐसी नीति और योजना जो मजदूर और कामगार को उसके कस्बे या गाँव में सम्मानजनक रोजगार और आजीविका का अवसर सुनिश्चित करे जिससे उसकी महानगरों की जलालत भरी जिन्दगी की ओर वापस लौटने की मजबूरी न रहे. वहीँ महानगरों और औद्योगिक नगरों में रहने वाले मजदूरी व कामगारों को सम्मानजनक सुविधा और संसाधन युक्त रोजगार रहे जिससे उनमें सामाजिक असुरक्षा का भाव न रहे।

कोरोना संकट के इस दौर से उत्पन्न होने वाली उपरोक्त सामाजिक संकट का निराकरण हमे समय रहते खोजना ही होगा, नीति निर्माताओं को तत्काल संभावित स्थिति का आकलन करके प्रभावी योजना तैयार करनी होगी. इस दिशा में निम्न कुछ सुझाव व्यवहारिक हो सकते हैं। ग्रामीण और कस्बे के स्तर पर रोजगार और आजीविका के छोटे अवसरों की उपलब्धता बने, इसके लिए छोटी पूँजी से लगने वाली इकाइयों की स्थापना हेतु सहज, सस्ता और सुलभ ऋण उपलब्ध करांया जा सकता है. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को भी छोटी और घरेलू इकाइयां लगाने के लिए प्रेरित किया जाय।

मनरेगा का दायरा बढ़ाया जाय और इसी तर्ज पर शहरी अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार गारंटी योजना लाई जाय. कृषि और सहायक उद्योग में अधिकतम रोजगार के अवसर तलाशने होंगे. इसके लिए उचित प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देना होगा. बड़े शहरों में रहने वाले मजदूरों और कामगारों के रुकने रहने के लिए पर्याप्त संख्या में रेन बसेरों और सामुदायिक भवनों की स्थापना और उनसे काम लेने वाली कम्पनियों / ठेकेदारों / सेवा प्रतादाओं पर कानूनी अंकुश लगाना होगा जिससे वे इन कामगारों की जरूरतों, सुविधायों और समस्याओं के प्रति जवाबदेह बने।

कुशल और तकनीकी युक्त कामगारों को स्वरोजगार के प्रेरित करने के साथ ही उन्हें स्थानीय स्तर पर ऐसे अवसर उपलब्ध कराने होंगे जिससे उनकी योग्यता और क्षमता के अनुरूप रोजगार मिल सके। ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे कस्बो में उच्च स्तरीय गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य के संसाधन मुहैया करने होंगे जिससे इनकी चाह में शहरों में विस्थापित होने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे। यानी सरकारी स्कूलों और स्वास्थ्य केन्दों की गुणवत्ता बढ़े और सभी के लिए समान और बेहतर शिक्षा तथा स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध हो. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का अनिवार्य पंजीकरण और उनका पहचान पत्र बनाने का कार्य जिम्मेदारी से करना होगा, इसके लिए पहले से उपलब्ध श्रमिक कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। बड़े कार्पोरेट घरानों को मिलने वाली छूट और सुविधा में कमी करके उसे छोटे उद्यमियों की तरफ हस्तांतरित करना होगा।

इस धन से नियतकाल तक बेरोजगारी भत्ता दिए जाने के बारे में भी सोचा जा सकता है। बड़े शहरों की तरफ मजदूरों के मौसमी आवागमन का अध्ययन करते हुए उनकी संख्या के अनुसार यातायात के समुचित साधन सुनिश्चित कराने की व्यवस्था करनी होगी जिससे भविष्य में जो मजदूर कामगार बड़े शहरों को जाना चाहें उनको सम्मानजनक और मानवीय सुविधा मिले। जिन इलाकों में अधिक समस्या हो रही हो वहां पंचायत स्तर पर मजदूरों कामगारों की समस्याओं का निराकरण करने, उनको सुझाव और मार्गदर्शन के लिए सहायता केन्द्रों की व्यवस्था किया जाना उनके लिए काफी सहायक हो सकेगा। लॉक डाउन के कारण ठप होने वाली छोटी इकाइयों को दुबारा पूरी क्षमता पर चलाने के लिए आवश्यक राहत पैकेज की व्यवस्था करनी होगी। प्रवासी भारतीयों के लिए देश में निवेश और रोजगार के पर्याप्त अवसर मुहैया कराने के लिए प्रभावी नीति बनानी होगी।

हमारे देश का सौभाग्य है कि हमारी श्रम शक्ति में अदम्य साहस और धैर्य है, इसी के बल पर निस्संदेह हम आने वाले कठिन दौर देश और समाज को उबार ले जाने में सफल होंगे।

(लेखक वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ये उनके निजी विचार हैं)


    

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