पानी की इस बंपर फसल में से किसान के लिए बचेगा कुछ?

Dr SB Misra | Aug 02, 2018, 11:44 IST

पूरा देश पानी-पानी हो रहा है, नदियां खतरे के निशान को पार कर चुकी हैं, सैकड़ों इंसान और हजारों मवेशी मर चुके हैं, आवागमन बाधित है लेकिन पानी जहां से आया था वहीं वापस जा रहा है। जब पानी नहीं बरसता तो हम पानी को तरसते हैं और जब बहुत बरसता है तो उसे कोसते हैं। अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा या नहीं लेकिन किसान अपने मकान और परिवार बचाने के लिए युद्ध कर रहा है। जल भराव से कच्चे मकान गिर रहे हैं, उनमें आदमी और जानवर दब रहे हैं। किसान अपनी अनाज की फसल का एक भाग तो सहेज कर रख लेता है लेकिन पानी की फसल सहेजना उसके बस की बात नहीं ।

अतिवृष्टि और अनावृष्टि के दुष्चक्र से बचने के लिए मोरार जी देसाई की जनता पार्टी की सरकार ने दस्तूर कमीशन की सिफ़ारिशों को लागू करके देश की नदियों को परस्पर जोड़ने का प्रयास किया था लेकिन तब सरकार ही चली गई। अटल जी की सरकार ने भी इस दिशा में सोचना आरम्भ किया था लेकिन बात आगे बढ़ी नहीं। वर्तमान सरकार भी आधे-अधूरे मन से कुछ प्रयास कर रही है लेकिन परिणाम सामने नहीं आए हैं ।

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वर्षा जल को धरती की सतह पर तालाबों, झीलों, जलाशयों, बावली और कुओं में संग्रहीत किया जा सकता है और पृथ्वी के अन्दर भूजल के रूप में जमा किया जा सकता है। लेकिन समय रहते इस दिशा में कोंई काम नहीं होता। सरकार मुआवजा देकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेती है। पुराने समय में जमीन के अन्दर प्रवेश करके साल भर के लिए पानी जमा हो जाता था अब उसका एक अंश भी नहीं जमा होता। और जितना भूजल पहले खर्च होता था उसका कई गुना अब खर्च होता है।

यह सभी को पता है कि भूजल का स्तर नीचे जा रहा है और गर्मियों में हैंड पाइप पानी की जगह हवा फूंकते हैं। वॉटर टेबल कितनी भी गहराई पर है, इस साल जितना पानी जमीन पर गिर रहा है उसका दशमांश भी यदि जमीन के अन्दर चला जाय तो देश के लोगों का कल्याण हो सकता है। पुराने समय में वॉटर टेबल इतना ऊपर आ जाता था कि कुएं से बाल्टी डुबोकर बिना रस्सी पानी भर लेते थे। अब सड़कें और भवन बनाने के लिए रोलर चलाकर जमीन की पारगम्यता समाप्त की जाती है और जिन पेड़ों की जड़ें जमीन को ढीला बनाती थीं पानी प्रवेश के लिए वे पेड़ भी कटते जा रहे हैं।

एक तरफ पेड़ पौधेां और वनस्पति के अभाव में भूजल संग्रह कम हो रहा है और प्रवाह तेज हो रहा है तो दूसरी तरफ जमीन के अन्दर 4-5 फिट नीचे मौजूद कंकड़ की परत के कारण भी भूजल प्रवेश और संग्रह में बाधा पड़ती है। वर्षा काल में किसान को प्रेरित करना चाहिए कि वह अपने खेतों में जगह-जगह पर शैलो ड्रिलहोल यानी बोरवेल बना कर पानी को धरती के अन्दर प्रवेश कराए। अच्छी बात यह है कि वर्षा के आरम्भ में ही तेज पानी गिर रहा है और धीरे-धीरे जमीन के अन्दर जा भी रहा है लेकिन यदि सितम्बर-अक्टूबर में इस तरह की वर्षा होगी तो मैदानी इलाकों में बाढ़ आ जाएगी ।

अनेक स्थानों पर जलभराव की विकट समस्या है क्योंकि सड़कों के बनने से जल निकास बाधित हो गया है और पुल और पुलिया मनमाने ढंग से बनाई गई हैं। ऐसी हालत में किसान जलभराव से बचने के लिए नहरें और सड़कें काट देते हैं और दंड के भागी बनते हैं, दंड का भागी होना चाहिए सम्बधित अधिकारियों को। सरकारी कर्मचारी चाहें तो गांवों की सड़कों, नहरों को देख कर अनिवार्य स्थानों पर भविष्य के लिए पुलिया प्रस्तावित कर सकते है। यदि विकास कार्यों के कारण स्वाभाविक बहाव बाधित हो गया हो तो उसमें सुधार प्रस्तावित करने का यह सही समय है । इसी तरह तालाबों में यदि पानी भर न रहा हो तो नालियां बनाकर किसान तालाबों में जलभराव का पानी पहुचा सकते हैं। साथ ही यह उपयुक्त समय है नहरों, तालाबों, सड़कों के किनारे तथा ऊंची-जगहों पर वृक्षारोपण का।

कई बार बांधों के कारण बने जलाशयों में अधिक पानी एकत्र हो जाने से उसे छोड़ना पड़ता है लेकिन इससे निचले भागों में किसानों को हानि होती है। पूर्व सूचना के बाद ही यदि पानी छोड़ा जाय तो हानि को घटाया जा सकता है। अधिकाधिक जल संग्रह का प्रयास और संग्रहीत पानी का सदुपयोग का अपना महत्व है लेकिन यह सुनियोजित होना चाहिए। इसके लिए अधिकार प्राप्त संस्थाएं होनी चाहिए। वॉटर हारवेस्टिंग और ग्राउंड वॉटर रीचार्ज के उपाय केवल प्रचार के लिए न हों, समय-समय पर इनका मूल्यांकन हो। पानी किसान के लिए वरदान है लेकिल यह अभिशाप न बन जाए उसके लिए सोचने का समय आएगा बरसात के बाद लेकिन अब भी खैरात बांटने के बजाय बहुत कुछ सम्भव है।

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