चार साल बीते, कदम बढ़े, लेकिन मंजिल बहुत दूर है

तमाम खामियों के बावजूद, मोदी सरकार के आर्थिक प्रबन्धन और औद्योगिक विकास में आशावादी स्थिति को जनता देख रही है। किसानों को कर्जामाफी की खैरात का मरहम लगा है और देश की जनता जल्दबाजी में निर्णय नहीं करेगी। जो विकास का ढांचा मोदी सरकार ने तैयार किया है और जो विदेशों में साख बनाई है उसके कारण एक और मौका जनता देगी। राजनैतिक विश्लेषकों का भी यही मत है।

Dr SB MisraDr SB Misra   30 May 2018 2:44 PM GMT

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चार साल बीते, कदम बढ़े, लेकिन मंजिल बहुत दूर है

मोदी सरकार के चार साल की समीक्षा सभी कर रहे हैं लेकिन तुलना किस सरकार से की जाए, नेहरू सरकार से जिसने हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे बुलन्द करके भारत को शर्मिन्दगी का सामना और अपमान का घूंट पिलाया अथवा इन्दिरा गांधी सरकार से जिसने रुपए का अवमूल्यन किया और देश में आपातकाल लगाया। बुजुर्ग जयप्रकाश नारायण सहित सभी विपक्षियों को बिना मुकदमा चलाए या चार्जशीट के जेलों में डाल दिया। इन्दिरा कांग्रेस ने चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया जो एक दिन भी संसद नहीं चलाए, राजीव गांधी ने तो स्वीकार ही किया कि जनता को 15 पैसा और भ्रष्टाचारियों को 85 पैसा मिलता था, कांग्रेस समर्थित चन्द्रशेखर की सरकार ने भारत का सोना इंगलैंड में गिरवी रखकर कर्जे की किश्त चुकाई। इसलिए मोदी की तुलना केवल मोदी से हो सकती है, उनकी कथनी और करनी का मिलान करके।

क्या नरेन्द्र मोदी 2019 में हार भी सकते हैं ?

जब 26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तब तक अपने चुनावी भाषणें के माध्यम से जनता में 'अच्छे दिन' लाने की उतनी ही आशाएं जगा दी थीं जितनी इन्दिरा गांधी ने 1971 में''गरीबी हटाआ'' को लेकर जगाई थी। कार्यभार संभलते ही भ्रष्टाचार और विदेशी काले धन के लिए एसआईटी का गठन कर दिया, प्रशासन अलर्ट हो गया और पारदर्शिता लानी आरम्भ कर दीं। ऐसा लगा कि पुरानी प्रशासनिक मशीनरी की जड़ता दूर हो रही है और भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति ये दौड़ने लगी। लगा कि सचमुच अच्छे दिन आ ही जाएंगे ।

क्या इसी राह से किसानों की आमदनी होगी दोगुनी?


उन्हीं दिनों मोदी सरकार को सूझा कुछ नया करना चाहिए, उन्होंने पुराने नोट मूल्यहीन करके नए नोट चालू कर दिए। इन नए नोटों से ऐसी कोई उपलब्धियां नहीं आई जो पुरानी नोटों से नहीं आ रही थीं। नोटों की अदला बदली के दौरान बैंक कर्मचारियों में भ्रष्टाचार बढ़ा, जनता की कठिनाई बढ़ी, समय बर्बाद हुआ और रिश्वत में जहां दो लाख के लिए हजार वाली दो गड्डियां लगती थी वहीं अब एक ही गड्डी से काम चलने लगा। कुछ समय के लिए विकास दर कम हुई बाद में संभल गई है। इसे कहेंगे व्यर्थ की कवायद।इस कदम के बाद दूसरा बड़ा कदमउ ठाया एक देश एक टैक्स यानी जीएसटी व्यवस्था का। यह सराहनीय कदम था और पिछली सररकार ने भी इसे लागू करना चाहा था। इस व्यवस्था के पहले एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त को सामान लाने ले जाने में प्रान्तीय सरहद पर माल वाहनों को रुकना और चुंगी देना पड़ता था, समय बहुत लगने के कारण फल और सब्जियां खराब भी हो जाती थीं। अलग अलग प्रान्तों में टैक्स की दरें भिन्न थीं जिससे भी कठिनाई होती थी, जगह-जगह पुलिस की मनमानी झेलनी पड़ती थी। जीएसटी से बहुत लाभ होने चाहिए थे लेकिन सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के बाहर रखा जिससे पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। सामान की ढुलाई, यातायात और परिवहन महंगा होने से महंगाई बढ़ी है।

अंबेडकर के नाम की दुहाई देते हैं, संविधान का सम्मान नहीं

भाजपा के कोर मुद्दे रहे हैं समान नागरिक संहिता, कश्मीर में धारा 370 समाप्त करना,भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना, स्वावलम्बन और स्वदेशी पर आग्रह। लेकिन अनेक उद्येागों में शत प्रतिशत एफडीआई की अनुमति अैर खाद्य पदार्थों का आयात स्वावलम्बन और स्वदेशी से मेल नहीं खाते। कह सकते हैं कि समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाए हैं। तीन तलाक को अवैध कराना, हलाला की समाप्ति, अकेली महिला के हज के निए संरक्षक को साथ ले जाने की अनिवार्यता समाप्त करना, हज सब्सिडी की समाप्ति, मदरसों का आधुनिकीकरण, चार बीवियां रखनें की अवैधता, मदरसों में विज्ञान और कम्प्यूटर की शिक्षा का आरम्भ, परिस्थिति अनुसारं हिन्दुओं को भी अल्पसंख्यकों के रूप में मान्यता आदि रचनात्मक कदम हैं। चिन्ता का विषय यह भी होना चाहिए कि रोजगार सुजन बढ़ा नहीं है, पंजीकृत बेकरोजगारों की संख्या बढ़ी है और नीरव मोदी तथा विजय माल्या जैसे लोग सरकार की पहुंच के बाहर हैं। जहां महिलाओं का सशक्तीकरण कुछ क्षेत्रों में हुआ है वहीं यौन उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं विशेषकर छोटी बच्चियों का उत्पीड़न। शासक दल के सांसद और विधायक तक ऐसे जघन्य अपराध करते पाए जाते हैं। राजनैतिक दलों में भाजपा की आय सर्वाधिक है इसलिए अच्छा होता वह अपने को सूचना के अधिकार के अन्तर्गत लाकर एक आदर्श कायम करती। अनेक प्रयासों के बावजूद कुछ राष्ट्रीय मुद्दे जैसे रोजगार सृजन, और बढ़ती महंगाई , कानून व्यवस्था,बैंकों की धोखा धड़ी,और साइबर अपराध आज भी मौजूद हैं। परन्तु कुछ मुद्दों पर अच्छा काम हुआ है। सीमाओं सुरक्षा की हालत पहले से बेहतर है और चीन या पाकिस्तान दस बार सोचेंगे भारत पर हमला करने के पहले। कुछ हद तक यह सुधार रक्षा उपकरणों की उपलब्धता के कारण है तो कुछ हद तक मोदी की कूटनीति के कारण। फिर भी कश्मीर में पीडीपी के साथ भाजपा का गठबन्धन अपयश ला रहा है जब आतंकवादियों को संरक्षण और सेना को चोट देने वाले बेगुनाहों के हत्यारे औरें पत्थर बाज छोड़ दिए जाते हैं।

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विदेश नीति सफल रही है और भारत की इतनी प्रभावी भूमिका पहले कभी नहीं रही चाहे पड़ोसी देशों से रिश्ते हों या अन्य देशों से। भारत को गुटनिरपेक्ष बनाना नेहरू का सपना था जो कभी पूरा नहीं हुआ। रूसी खेमें से नजदीकियां और अमेरिकी गुट से दूरियां हमेशा बनी रहीं। इजराइल को मान्यता तक नं दिया जाना गुट निरपेक्षता नहीं थी। आज सही अर्थों में विश्व की महाशक्तियों के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं और मुस्लिम देशों से भी अच्छे सम्बन्ध हैं। भारतीय नागरिक विदेशों में सीना तान के चल सकते हैं और भारत की साख सारी दुनिया में बढ़ी है। चार साल में विश्व पटल पर इतना कुछ हो पाना सरल नहीं था।इसके बावजूद, विदेशों से काला धन लाने में सफलता नहीं मिली है। मोदी का जुमला कि विदेशी काला धन आने के बाद प्रत्येक भारतीय के हिस्से में 18 लाख आ सकता है, विपक्षियों के हाथ में मजबूत हथियार मिल गया है। इतना तो लगता है कि भारत के काले धन का विदेशों की तरफ पलायन घटा है। सम्पत्ति में काला धन लगाने की परम्परा भी घटी है और बेनामी सम्पत्ति और गांवों में जमीन खरीदने में काले धन का उपयोग नहीं हो पा रहा है क्योंकि प्रत्येक खरीद फरोख्त को आधार कार्ड से जोड़ दिया गया है और कीमत का भुगतान कैश में नहीं हो सकता।

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लम्बे समय से भारत में ऊर्जा संकट बना हुआ था लेकिन मोदी ने सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देकर एलईडी को बढ़ावा दिया है जिससे पावर संकट दूर हो रहा है। इसलिए तमाम खामियों के बावजूद, मोदी सरकार के आर्थिक प्रबन्धन और औद्योगिक विकास में आशावादी स्थिति को जनता देख रही है। किसानों को कर्जामाफी की खैरात का मरहम लगा है और देश की जनता जल्दबाजी में निर्णय नहीं करेगी। जो विकास का ढांचा मोदी सरकार ने तैयार किया है और जो विदेशों में साख बनाई है उसके कारण एक और मौका जनता देगी । राजनैतिक विश्लेषकों का भी यही मत है ।

खोजना ही होगा कश्मीर समस्या का समाधान (भाग- 1)

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