कर्नाटक : दाल किसानों के हाथ 'खाली कटोरा'
Arvind Kumar Singh | May 11, 2018, 14:04 IST
भारत सरकार ने इस वर्ष के लिए फिर करीब दो लाख मीट्रिक टन तुर (अरहर दाल) के आयात को मंजूरी दे दी है। जबकि कर्नाटक समेत कई राज्य जहां दाल खूब पैदा होती और इस बार भी बंपर पैदावार की उम्मीद .. पढ़िए दाल के किसानों का दर्द और सियासत को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह का लेख
अरहर ही यहां की मुख्य फसल है। इस पर अधिकतर किसानों की अर्थव्यवस्था चलती है। लेकिन दो साल के सूखे से उबर कर जिन किसानों से दाल के सहारे उबरने का ताना बाना बुना था, वे निराश हैं। क्योकि अरहर की दाल यहां एमएसपी से बहुत नीचे और केवल तीन से साढ़े तीन हजार रुपए कुंतल में बेचने की विवशता है। कर्नाटक राज्य रैयत संघ की अध्यक्ष श्रीमती जगदेवी हेगड़े के साथ यहां के कुछ गांवों में जाता हूं तो किसानों की यही शिकायत है कि भारत सरकार या राज्य सरकार उसकी मदद नहीं कर रही है।
कर्नाटक की राजनीति में हैदराबाद कर्नाटक इलाका पावर हाउस कहा जाता है। करीब 44,145 वर्ग किमी के दायरे में फैले इस इलाके की आबादी 1 करोड़ 12 लाख है। इस इलाके में कलबुर्गी, बीदर, रायचूर, बेल्लारी, कोप्पल और यादगिर छह जिले आते हैं। यहां 75 फीसदी आबादी गांवों में रहती है औऱ खेती पर निर्भर है।
जिले की खेती लायक 25 फीसदी जमीन दाल के दायरे में है। दालों के भरोसे इलाके में करीब 500 दाल मिलें भी चल रही हैं। लेकिन दाम गिरता है तो किसानों से लेकर दाल मिलों, सबका गणित बिगड़ जाता है।
श्रीनिवास सरडगी गांव के शिवलिंगप्पा तड़वार शिकायत करते हैं कि सरकार ने पिछले सीजन में जो दाल खरीदी थी, उसका पैसा भी किसानों को अब तक नहीं मिला। दावा था कि एक किसान से 20 कुंतल दाल खरीदी जाएगी, लेकिन केवल 10 कुंतल की खरीद हुई। जिले के अधिकतर किसान छोटे और मझोले श्रेणी के हैं, जिनके पास पूंजी और तकनीक की कमी है। इन दिनों इस इलाके में भयानक गरमी और उमस पड़ रही है। चुनावी तापमान से कहीं अधिक यहां का तापमान 45 तक चला जाता है।
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कुलबर्गी जिले के एक गाँव में दाल किसानों से बातचीत करते वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह। भारत में दुनिया की 85 फीसदी अरहर की पैदावार और खपत होती है। लेकिन हमारी जरूरतों से अरहर काफी कम पड़ जाती है, इस नाते म्यांमार से लेकर कई देशों से अरहर का आयात करना पड़ता है। दुनिया में अरहर की खेती 49 लाख हेक्टेयर में होती है, जिससे सालाना 42.2 लाख टन उपज होती है। भारत में अरहर की कुल उपज 30.7 लाख टन है। कर्नाटक के बीदर जिले में भी अरहर की खेती करने वाले किसान बेहाल हैं।
किसान नेता मल्लिकार्जुन स्वामी ने बताया कि स्थिति से सबको अवगत कराया गया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। हैदराबाद कर्नाटक इलाके में दाल के दाम मुद्दा बने हुए हैं और बीजेपी ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर वह सत्ता में आएगी तो दालों पर प्रति कुंतल 1500 रुपए का प्रोत्साहन देने के साथ एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित होगी।
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कलबुर्गी की जनसभा में प्रधानमंत्री ने दाल की खेती करने वाले किसानों के योगदान को सराहा और यह बताना नहीं भूले कि इस साल भी रिकॉर्ड तुर यानि अरहर दाल पैदा हुई। उनका दावा था कि किसान ज्यादा से ज्यादा दाल का उत्पादन करें और उऩको सही दाम के लिए खरीद केंद्रों की स्थापना हो, इस पर भारत सरकार लगातार ध्यान दे रही है। लेकिन आज जमीनी हकीकत यह है कि सबसे ज्यादा खपत वाली तुर यानी अरहर का एमएसपी 5450 रुपये प्रति कुंतल तय होने के बाद भी यह बाजार में तीन हजार से 4300 रुपए कुंतल के बीच बिक रही है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में फिर भी गनीमत है, लेकिन कर्नाटक में किसानों का सबसे बुरा हाल है।
भारत में अरहर, चना, मटर समेत 14 किस्म की दालें पैदा होती हैं, लेकिन यह ध्यान रखने की बात है कि सिंचित इलाकों में महज 16 फीसदी दालें पैदा हो रही हैं। यहां किसानों में दलहन की खेती के प्रति उत्साह नहीं। जबकि हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र जैसे असिंचित इलाकों में 84 फीसदी दालें पैदा हो रही हैं। हाल के सालों में अरहर की कीमतें 70 से 200 तक छू गयीं, लेकिन इसका फायदा बिचौलियों को हुआ किसानों को नहीं।
देश के प्रमुख अरहर दाल के बाजार में कलबुर्गी का भी नाम आता है। 2012 में कर्नाटक सरकार ने अरहर दाल 4000 रुपए कुंतल पर खरीदी थी, जब एमएसपी 3200 रुपए कुंतल था। राज्य सरकार ने इस पर 500 रुपये अतिरिक्त बोनस और 300 रुपये प्रति कुंतल का प्रोत्साहन दिया।
कर्नाटक में दलहन खेती का रकबा हाल के सालों में 7.53 लाख से बढ़ कर 14.09 लाख हेक्टेयर हो गया है। देश के प्रमुख अरहर दाल के बाजार में कलबुर्गी का भी नाम आता है। 2012 में कर्नाटक सरकार ने अरहर दाल 4000 रुपए कुंतल पर खरीदी थी, जब एमएसपी 3200 रुपए कुंतल था। राज्य सरकार ने इस पर 500 रुपये अतिरिक्त बोनस और 300 रुपये प्रति कुंतल का प्रोत्साहन दिया।
कर्नाटक में अरहर की खेती कलबुर्गी, यादगिर, बीदर और बीजापुर इलाके में बड़े दायरे में होती है। बीच के दो सालों में सूखा पड़ने के कारण हालत खराब रही। राज्य सरकार ने खरीद केंद्र स्थापित किया और बिचौलिये के खिलाफ कदम उठा। 2016 में किसानों को 7,500 रुपये प्रति कुंतल तक का दाम मिला था जिससे उनका हौंसला बढ़ा लेकिन अब तस्वीर बदलने लगी है।
भारत में ही दुनिया की 85 फीसदी अरहर की पैदावार और खपत होती है, लेकिन हमारी जरुरतों से अरहर काफी कम पड़ती है। सरकार ने दालों की मांग आपूर्ति का अंतर कम करने के लिए कनाडा, म्यांमार, अमेरिका और अफ्रीका में ठेका खेती की संभावनाएं तलाशी। किसानों को तमाम प्रोत्साहन मिला जिससे दलहन खेती का रकबा 33 फीसदी बढ़ा है।
सरकार दलहन विकास के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों की भी मदद ले रही है। उच्च गुणवत्ता के बीजों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए बीज हब भी बनाया जा रहा है। 16 नवंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यबक्षता में सीसीईए की बैठक में सभी प्रकार की दालों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मंजूरी दी गयी। इससे पहले करीब 20 लाख टन दलहन खरीद कर बफर स्टॉक बनाया गया।
बीहर क्षेत्र में नहीं मिले किसानों को दाल के वाजिब दाम।
राज्य सरकार ने 22 लाख छोटे और सीमांत किसानों का 50 हजार तक का कोऑपरेटिव का कर्ज माफ किया। किसानों को तीन लाख रुपए तक का ब्याज मुक्त ऋण दिया जा रहा है। कुछ मदों में तो किसान तीन फीसदी ब्याज पर दस लाख रुपए का कर्ज हासिल कर सकते हैं।
हैदराबाद कर्नाटक के किसान देश में दालों की कमी को पूरा करने में योगदान देते हैं, लेकिन यह ध्यान रखने की बात है कि राजस्थान के बाद यह देश का सबसे शुष्क और पानी की कमी वाला इलाका है। बेहद गरम जलवायु यहां की उपजाऊ जमीन की उत्पादकता को कम कर देती हैं। इस इलाके में आधारभूत ढांचा कमजोर है और कोल्ड स्टोरेज के साथ खाद्य प्रसंस्करण तंत्र बहुत कमजोर है। इस कारण फलों, सब्जियों और अनाज की काफी बर्बादी होती है।
कर्नाटक में बड़ी संख्या में किसान में अनाजों और खास तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी और कुटकी की खेती कर रहे हैं। बाजरा समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है और इसे मिड डे मील में भी शामिल किया गया है। कर्नाटक सरकार के ही आग्रह पर 2018 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया है। मोटा अनाज कम पानी और कम लागत में पैदा हो जाता है और इस पर जलवायु परिवर्तन का असर भी नहीं होता। लेकिन बाजारों में इनका खास महत्त्व नहीं आंका जाता जिस कारण किसानों का इससे मोह भंग होता जा रहा है। लेकिन मोटे अनाज हों या फिर दालें अगर किसानों को वाजिब दाम नहीं मिला तो वे घाटे की खेती कब तक करेंगे।
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