अंतहीन लगने वाले मुकदमे का फैसला आ ही गया

Dr SB Misra | Nov 09, 2019, 12:34 IST
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने असंतोष जाहिर करते हुए भी पुनर्विचार याचिका दाखिल न करने का फैसला किया है, जो शुभ संकेत है। अच्छी बात है कि निर्णय में आस्था को नहीं सम्पत्ति पर कब्जे को आधार माना गया है।
#Ayodhya verdict
सैकड़ों साल पुराना और 70 साल से आजाद भारत की अदालतों में लम्बित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का मसला उच्चतम न्यायालय ने हल कर ही लिया और फैसला सुना दिया। जमीन पर रामलला का मालिकाना हक देकर मस्जिद बनाने के लिए वैकल्पिक 5 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश पारित किया है।
यदि हिन्दू समाज राम मन्दिर बनाने तक अपने को सीमित रखे तो चाहे जितना भव्य मन्दिर बना सकेगा और यदि मुस्लिम समाज मस्जिद बनाने में रुचि रखता है तो 5 एकड़ में भव्य मस्जिद भी बन सकती है। लेकिन राजनीति के लिए तो विवाद के बिन्दु निकल ही आएंगे। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने असंतोष जाहिर करते हुए भी पुनर्विचार याचिका दाखिल न करने का फैसला किया है, जो शुभ संकेत है। अच्छी बात है कि निर्णय में आस्था को नहीं सम्पत्ति पर कब्जे को आधार माना गया है।

उच्चतम न्यायालय के एकमत निर्णय में निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड को पार्टी नहीं बनाया गया और दावेदारी सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान तक सीमित हो गई। लाठी भांजते रामनामी दुपट्टा ओढ़े रामभक्तों के हाथ भी कुछ नहीं लगा क्योंकि मन्दिर तो बनेगा लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा गठित न्याय के हाथों से। न्यायालय ने किसी वर्ग को उद्वेलित होने का मौका नहीं दिया है। वास्तव में कश्मीर की धारा 370, तीन तलाक, राम मन्दिर जैसे प्रकरण कांग्रेस सरकार जब चाहती हल कर सकती थी, लेकिन उसका हित इन्हें जीवित रखने में था।

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सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई। फोटो साभार : टवि्टर

कांग्रेस सेकुलरवाद और हिन्दुत्व के बीच हिचकोले खाती रही। उसने 1952 में गोवंश का प्रतीक दो बैलों की जोडी को और 1972 में गाय और बछड़ा को चुनाव चिन्ह बनाया जो विचारधारा के प्रतीक होते हैं। इसके पहले जब 1949 में तथाकथित बाबरी मस्जिद पर हिन्दुओं ने कब्जा कर लिया तो कांग्रेस मौन रही। प्रदेश और केन्द्र में उसकी सरकार थी, यदि चाहते तो मुसलमानों को कब्जा दिला सकती थी।
नेहरू जी का विशाल व्यक्तित्व था, सेकुलर छवि थी, आपस में मिल बैठकर फैसला करा सकते थे। उन्होंने कुछ नहीं किया, मामला अदालत में गया और जन्मस्थान में ताला पड़ गया। कालान्तर में मस्जिद का ताला खुलवाने और मन्दिर का शिलान्यास कराने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही। कांग्रेस ने बाद में अपना चुनाव प्रचार भी अयोध्या से ही शुरू किया। चुनावी लालच ने मसला हल नहीं होने दिया।

मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस को कभी सेकुलर नहीं माना था क्योंकि मौलाना आजाद जैसे लोग भी रघुपति राघव राजा राम गाते थे और रामराज्य उनकी भी कल्पना का अंग था। गांधी जी के न रहने पर नेहरू को कम्युनिस्टों का साथ मिला और रामराज्य भूल गए। अन्ततः पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी को अपने पिता की तरह मन्दिरों की याद आई तब बहुत देर हो चुकी थी। अब मुस्लिम समाज भी उन पर भरोसा नहीं करेगा। कल्याण इसी में है कि सेकुलरवादी तटस्थ और शान्त रहें।

अब कुछ मुसलमानों ने कहना आरम्भ किया है कि राम इमामे हिन्द हैं वह हमारे पूर्वज हैं। इंडोनेशिया के मुसलमान यही तो कहते हैं कि राम हमारे पूर्वज हैं और इस्लाम हमारा धर्म है। जिस दिन भारत का मुसलमान यह समझदारी दिखाएगा यह देश अपने पुराना गौरव हासिल कर लेगा। अयोध्या से मुसलमानों का भावात्मक जुड़ाव नहीं है लेकिन हिन्दुओं का है इसलिए मुसलमानों की समझदारी की परीक्षा की घड़ी है। मौलाना आजाद की भाषा में भारत में दारुल इस्लाम तो नहीं है लेकिन दारुल हरब भी नहीं है। हम इसे दारुल अमन बनाने की कोशिश करें।

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