कैंसर से पीड़ित गरीब मरीजों का 'मसीहा' है ये डॉक्टर , खुद पहुंच जाते हैं गांव
Deepanshu Mishra | Feb 12, 2018, 16:52 IST
मध्य प्रदेश का एक डॉक्टर जो अपनी टीम के साथ गांव-गांव जाकर कैंसर के रोगियों का इलाज करता है। उनकी टीम अब तक हजारों रोगियों की जान बचा चुकी है...
ये बात उस वक्त की है जब महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सोनगांव में रहने वाले स्वप्निल माने सिर्फ 10 साल के थे। और गांव के ही स्कूल में पढ़ते । गोडसे चाचा स्वप्निल के पड़ोसी हुआ करते थे। वो मजदूरी करते थे और दिन में 50-60 रुपए कमा पता थे। लेकिन एक दिन वह ऐसी बीमारी का शिकार हुए कि उनकी रोजाना आने वाली आमदनी भी खत्म हो गई। स्वप्निल ने अपनी छोटी सी उम्र में ही गोडसे काका को हर रोज़ मरते हुए देखा था। एक दिन स्वप्निल को पता चला 50,000 रुपए न होने के कारण गोडसे काका फेफड़ों कैंसर का इलाज नहीं कर सके और आखिर इस जानलेवा बीमारी ने एक दिन उनकी जान ले ही ली।
डॉ. माने अब कैंसर के स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और कैंसर रोगियों के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर गांव-गांव कैंप लगाते हैं। तब की अपनी आर्थिक स्थिति पर बात करते हुए वो बताते हैं, " पिता जी एक बैंक में काम करते थे सेवा निवृत्त हो गये हैं। माताजी आंगनबाड़ी कार्यकत्री थी जो घर का खर्चा चलाती थी। घर की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी इसलिए हम लोग अपने पड़ोसी का इलाज नहीं करवा सके।"
गाँव में लगते हैं कैंप डॉ. स्वप्निल को पता चला कि उनके गाँव राहुरी से 50 किमी के भीतर एक भी कैंसर का अस्पताल नहीं है जो मरीजों का इलाज सस्ते में करे। उस गाँव में कई महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर था। राहुरी के लोग खेती-बाड़ी करते हैं। लोगों के पास खुद की जमीन नहीं है इसलिए वो दूसरों के खेत में मजदूरी करते हैं। उस वक्त किसी के परिवार में कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो इलाज के पैसा जुटा पाना मुश्किल था, कैंसर का इलाज तो तब और भी खर्चीला था।
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लोगों को किया जाता है जागरूक पूरी दुनिया में प्रति वर्ष कैंसर के लगभग डेढ़ करोड़ नए रोगी पैदा होते हैं और आने वाले 20 वर्षों में इसमें 70 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी। कैंसर से हर साल 88 लाख लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया में छह मौतों में एक मौत कैंसर के कारण होती है। भारत में 30 लाख कैंसर के मरीज हर समय मौजूद रहते हैं। इनमें से हर साल एक तिहाई (लगभग आठ लाख) लोगों की मौत हो जाती है।
एक मई 2011 से डॉ. स्वप्निल माने ने कैंसर पीड़ित मरीजों का इलाज कम खर्च में करना शुरू किया। गरीब लोगों का इलाज वो मुफ्त में करते हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के राहुरी में उन्होंने डॉ. माने मेडिकल फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर नामक स्वयं सेवी संस्था की स्थापना की है। साइंटिफिक एंड इंडसट्रीयल रिसर्च आर्गेनाइजेशन, डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने भी इस संस्था को मान्यता दी है। डॉ. माने ने अपने 13 डॉक्टर और छह साथियों के साथ मिलकर अब तक महाराष्ट्र के पचास से ऊपर गाँवों में फ्री कैंसर चेक-अप और मेडिसिन डिस्ट्रीब्यूशन कैम्प का आयोजन किया है।
कैंसर का होता है सस्ता इलाज डॉ. माने ने बताया, "हमारे अस्पताल में सभी सुविधाएं मरीजों को दी जाती हैं। तीन वरिष्ठ डॉक्टर की टीम काम करती हैं। मरीजों को दवाई दी जाने के लिए 24 घंटे के लिए मेडिकल स्टोर हैं, जहां पर मरीजों को जेनरिक दवाइयां दी जाती हैं। जेनरिक दवाइयां ऐसी दवाइयां है जो आम दवाइयों से काफी सस्ती होती हैं। हम लोग रविवार को गाँव में जाकर कैम्प का आयोजन करते हैं और लोगों को बताते हैं कि कैंसर क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
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गाँव में कैंप