ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाएं बीमार, झोलाछापों के भरोसे मरीज
Deepanshu Mishra 24 July 2017 10:03 AM GMT

स्वयं प्रोजेक्ट टीम
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर कैग ने सवाल खड़े किए गए हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 50 फीसदी से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है, लेकिन इससे बड़ी समस्या तेजी से बढ़ रहे झोलाछाप हैं, जो ग्रामीणों के पैसे और सेहत दोनों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।
कैग की जांच रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत देश में सबसे ज्यादा खराब है, दूर-दूर अस्पताल हैं और जो प्राथमिक और स्वास्थ्य केंद्र हैं, वहां पर्याप्त चिकित्सक नहीं हैं। झोलाछाप इसका पूरा फायदा उठाते हैं। इन अप्रशिक्षित डॉक्टरों के इलाज के चलते अक्सर मौत की खबरें आती हैं।
ये भी पढ़ें- एलोवेरा की खेती का पूरा गणित समझिए, ज्यादा मुनाफे के लिए पत्तियां नहीं पल्प बेचें, देखें वीडियो
मेरठ के हस्तिनापुर ब्लॉक के गाँव पूठा निवासी रोहन (34 वर्ष) बताते हैं, “गाँव में दो नई उम्र के लड़कों ने क्लीनिक खोली है। एक ने अपनी दुकान में डिग्री में बीएएमएस तो दूसरे ने सर्जन तक लिखवा रखा है, लोग इनके यहां दवा भी लेने जाते थे, लेकिन एक दिन कोई जांच के लिए टीम आई तो दुकान बंदकर भाग गए, पता चला इनके पास डिग्री नहीं है, लेकिन कुछ दिनों बाद सब वैसे ही चल पड़ा।”बाराबंकी जिले में भी ऐसे ही हालात हैं। यहां कोटवाकला गाँव से रामू (40 वर्ष) बताते हैं, “कई डॉक्टरों को तो हम लोग जानते हैं जो बिना डिग्री के इलाज कर रहे हैं। कई बार इनकी दवा से लोगों की मौत हो जाती है।“
इलाहाबाद के बहरिया गाँव में रहने वाले शिवकुमार (56 वर्ष) की बातों से ग्रामीणों की मजबूरी समझी जा सकती है। वो गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “अब रात में तबियत खराब होने पर सरकारी अस्पताल में कोई नहीं मिलता है, लेकिन फोन पर सूचना मिलते ही झोलाछाप डॉक्टर घर पहुंच जाते हैं। ऐसे में ग्रामीणों के सामने मजबूरी रहती है।”
झोलाछाप डॉक्टरों की ख़बर विभाग को भी रहती है, कई बार अभियान चलाने की बात भी होती है, लेकिन नतीजे नहीं निकलते हैं। झोलाछाप डॉक्टरों के लिए कानून में केवल लोगों से धोखाधड़ी करने का ही मुकदमा पंजीकृत होता है, जिसमें आगे चल कर वे आसानी से छूट जाते हैं।
ये भी पढ़ें- सस्ती तकनीक से किसान किस तरह कमाएं मुनाफा, सिखा रहे हैं ये दो इंजीनियर दोस्त
इस बारे में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक उत्तर प्रदेश डॉ. पद्माकर सिंह बताते हैं, “सारे मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि जिस जगह झोलाछाप डॉक्टरों के होने की सूचना मिलती है, वहां पर जाकर जांच करें, अगर उस डॉक्टर के पास वैध पंजीकरण नहीं पाया जाता है तो उनके ऊपर तुरंत एफआईआर करवाएं।” इसके बावजूद कार्रवाई न होने से इन झोलाछाप डॉक्टरों ग्रामीण इलाकों में तेजी से बढ़ रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में डाक्टरों की कमी और सुविधाएं न होने पर मरीजों के लिए इलाज कराना काफी महंगा पड़ता है। मेरठ के जानी ब्लॉक के गाँव सिंघावली निवासी अरूण (44 वर्ष) बताते हैं,“ देहात के डाक्टरों ने रेफर करने का भी धंधा अपना रखा है। मेरठ में न चलने वाले हास्पिटल को कमीशन पर मरीज रेफर किए जाते हैं। जिससे उनका धंधा ठीक चल रहा है।“
नाम न छापने की शर्त पर एक झोलाछाप डॉक्टर ने बताया, “हम तो बस नजले जुकाम की दवाई रखते हैं, मुख्य काम तो मरीज शहर में रेफर कर बिल का 40 फीसदी लेना है। महीने में दो मरीज भी भेज दिए तो अच्छा खासा रुपया मिल जाता है।”
ये भी पढ़ें- इंजीनियरिंग और एमबीए करने वाले युवाओं को एलोवेरा में दिख रहा कमाई का फ़्यूचर
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बात करें तो कैग की जांच रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 के दौरान प्रदेश में 32 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण किया जाना था, लेकिन केवल 4 केन्द्रों का निर्माण ही हो सका।
कैग की रिपोर्ट में सर्वाधिक चौका देने वाला तथ्य यह है कि जालौन और मुजफ्फरनगर को छोड़कर जिन जिलों में जांच की गई, उनमें पाया गया कि वहां 2011-16 के दौरान तक़रीबन 62.32 करोड़ की दवाओं की खरीद की गई, लेकिन उनकी गुणवत्ता की जांच किए बिना उन्हें मरीजों को वितरित कर दिया गया।
चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश प्रशांत त्रिवेदी बताते हैं, “झोलाछाप डॉक्टरों को रोकने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी और जिलाधिकारी स्तर से कार्रवाई की जाती है। सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई करने के लिए आदेशित और अधिकृत कर दिया गया है। झोलाछाप डॉक्टरों को रोकने के लिए अधिकृत अधिकारी की तरफ से कोई गलती होती है तो हमारी तरफ से इन पर कार्रवाई की जाएगी।”
ये भी पढ़ें- वीडियो : धान की फसल की मड़ाई करने में किसानों की मेहनत कम करेगी ये मशीन
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. पद्माकर सिंह ने बताया सभी सीएमओ को निर्देश दिया गया है कि जहां झोलाछाप डॉक्टर मिलें, वहां जांच करें और वैध पंजीकरण न होने पर उनके ऊपर तुरंत एफआईआर करवाएं।
परिवार कल्याण विभाग प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी ने बताया झोलाछाप डॉक्टरों को रोकने के लिए सीएमओ और डीएम स्तर से कार्रवाई की जाती है। अधिकारी की तरफ से कोई गलती होती है तो हमारी तरफ से उन पर कार्रवाई की जाएगी।
ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।
uttar pradesh Swayam Project health department Samachar hindi samachar Indian Village CAG Primary health centers झोलाछाप डॉक्टर
More Stories