कभी दर-दर की खाती थीं ठोकर , आज खुद की जमीन की मालिक 

Khadim Abbas RizviKhadim Abbas Rizvi   22 July 2017 7:55 PM GMT

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कभी दर-दर की खाती थीं ठोकर , आज खुद की जमीन की मालिक गरीबों का सपना हो रहा है साकार, बन रहे ज़मीन के मालिक।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

जौनपुर। जिन गरीबों को खाने के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना मुश्किल होता है। क्या वह कभी खुद की जमीन के मालिक भी बन सकते हैं। ऐसा सोचना भी उनके लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा है। हालांकि गरीबों का यह सपना साकार हो रहा है। आज वह जमीन के मालिक बन रहे हैं।

आज हम ऐसे तीन परिवार से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। जिन्हें दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी काफी जदृोजहद करनी पड़ती थी लेकिन आज वह खुद की जमीन के मालिक हैं। ऐसा संभव हो पाया एक एनजीओ लैंडसा की मदद से। एनजीओ ने इन गरीबों का सहारा बना और इन परिवारों को जमीन नहीं जैसे नया जीवन ही मिल गया।

सिताबी को मिला तोहफा

मछली शहर तहसील के तोहफापुर गांव निवासी सिताबी की उम्र 80 वर्ष है। पति की मौत आठ वर्ष पहले हो चुकी है। उनके तीन बेटे हैं लेकिन इतनी कमाई नहीं कर पाते कि खुद के लिए जमीन का बंदोबस्त कर सकें। पेट भरने के लिए सिताबी को इस उम्र में भी काम करना पड़ रहा है। अब ऐसे में उन्हें उनकी जमीन मिल जाए तो यह उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा है। सिताबी ने बताया,“ जहां वह रहती थीं उन्हें अक्सर परेशान किया जाता था। जमीन खुद की न होने से वह कई बार बेघर हुईं। खुद की जमीन हो जाए इसके लिए कई बार अधिकारियों के दफतर में भी चक्कर लगाया लेकिन बात नहीं बनी। लैंडसा की ओर से चलाई जा रही लैंड लिट्रेसी ट्रेनिंग में पहुंची तो उनकी उम्मीद जगी। इसके बाद उन्हें 0.8 हेक्टेयर ग्राम सभा की जमीन मिली। जहां वह अपने परिवार के साथ सुकून से बाकी की बची हुई जिंदगी काट रही हैं।”

लैंडसा की मदद से गरीबों को मिल पा रहा हक।

जमीन बनी रोजी रोटी का जरिया

मछलीशहर ब्लॉक के ही पहसना गांव निवासी बांकेलाल के परिवार के लोगों के पास खुद की जमीन नहीं थी। दूसरों के खेत में काम करके अपनी आजिविका चलाते थे। खुद की जमीन नहीं थी जिससे वह खेती—किसानी कर सकते। आज उनके और उनकी प त्नी लालती के नाम .052 हेक्टेयर जमीन है। परिवार के ही पिंटू पत्नी उषा के पास .036 हेक्टेयर जमीन का कृषि पटटा हो गया है। जहां घर की महिलाएं खेती—किसानी कर रही हैं। जबकि परिवार के अन्य सदस्य बड़े शहरों में काम करके अपनी आजिविका चल रहे हैं। लालती बताती हैं कि जमीन न होने की वजह से उन्हें दूसरों के खेतों में काम करना पड़ता था। इससे आजिविका चलती थी। अब जमीन हो गई है तो एक सहारा हो गया है। वह बताती हैं कि जमीन खुद के नाम करवाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी खूब विरोध भी हुआ लेकिन आखिरकार वह अपनी जंग जीत ही गईं।

घूमने वालों को मिला एक ठीहा

करीब 40 वर्ष पहले जिले के केराकत तहसील से 50 किलोमीटर मांगते हुए लटेगना का परिवार मछलीशहर के पहसना गांव पहुंचा था। भीख मांगकर अपना पेट भरने वाले इस परिवार को कोई गांव में नहीं रहने दे रहा था। किसी के खेत में चले जाएं तो लोग मारपीटकर भगा देते थे। अक्सर लोग उनके परिवार के लोगों से मारपीट करते थे। हालांकि लटेगना के पिता ने थोड़ी जमीन खरीद ली। इसके बाद उनके परिवार के अन्य सदस्य भी वहीं आ गए। जमीन की जरूरत और बढ़ गई। पुरानी स्थिति भी हो गई। नवंबर 2015 में एनजीओ से संपर्क के बाद इस परिवार में से वसीम उनकी पत्नी ससरून, सलीम उसकी पत्नी जरीना, असलम उसकी पत्नी अफसाना, अकरम सकी पत्नी रहमुल, महेश उसकी पत्नी नाजमा को ग्राम सभा की जमीन का आवासीय पटटा मिला गया।

लैंडसा के फील्ड आफिसर ब्रजेश मिश्रा ने बताया,“ उनकी संस्था ऐसे लोगों का चिन्हित करती है और उन्हें उनका हक दिलवाती है। इसके लिए वह सर्वे करते हैं और फिर जो डाटा मिलता है, उसे तहसीलदार, कानूनगो और लेखपाल से वेरिफाई कराया जाता है। इसके बाद जो पात्र होता है। उसके नाम ग्राम सभा की जमीन का विनयमितिकरण, कृषि पटटा, आवासीय पटटा कराते हैं। इसके अलावा महिलाओं को जागरूक करते हैं कि वह जमीन की अहमियत को समझें और अपने नाम जमीन करवाएं। इसके लिए उनका कई ब्लॉक में कार्यक्रम चल रहा है।”

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