शाहजहांपुर में दम तोड़ रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना

Ram SinghRam Singh   29 Sep 2017 1:25 PM GMT

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शाहजहांपुर में  दम तोड़ रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजनाखेतों में काम करते मनरेगा मजदूर 

तिलहर/जैतीपुर (शाहजहांपुर)। केन्द्र सरकार की योजनाओं में से एक मनरेगा योजना से मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। अब तक इस वित्तवर्ष में औसतन 20-25 दिन का ग्रामीणों को रोजगार मिला है जबकि लगभग आधा वित्तवर्ष खत्म होने को है।

मजदूरी करके अपने परिवार का खर्च चलाने वाले सोंधा गाँव के वेदराम (45 वर्ष) बताते हैं, "हमने सड़क, तलाब और शौचालय बनाने में मदद की शुरुआती सालों में मनरेगा के कारण गाँव के लोगों का बड़े शहरों में पलायन करना रुक गया था, लेकिन अब ज्यादातर लोगों का गाँव से पलायन हो गया है और सिर्फ छोटे बच्चे और बूढ़े रह जाते हैं।"

योजना के अंतर्गत ग्रामवासियों को प्रति परिवार प्रति वर्ष 100 दिनों के रोजगार की गारंटी होती है लेकिन अभी तक इस पर अमल सम्भव नहीं लग रहा है। क्योंकि जिले के सभी ग्राम रोजगार सेवक जिनके कन्धे पर मनरेगा के संचालन का दायित्व है, पिछले 15 महीनों से मानदेय न मिलने के कारण हड़ताल पर लखनऊ में डटे हुए हैं। यही वजह है कि रोजगार दिवसों की संख्या घटकर प्रति परिवार 20-25 दिन ही रह गई और ग्राफ लगातार गिर रहा है।

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ग्राम रोजगार सेवक ओमबीर (32 वर्ष) बताते हैं, "करीब तीन माह से मजदूरों को मजदूरी ही मिल रही है इसलिए मजदूरों का लगाव योजना की से हट रहा है।"

इस बारे में डीसी मनरेगा राजेश कुमार झा (47 वर्ष) ने बताया, "हां पिछले एक माह से मजदूरी पेंडिंग है लेकिन दीपावली से पहले मजदूरों के खाते में पैसा भेज दिया जायेगा। मनरेगा की शुरूआत 2006 में हुई और यह ग्रामीण इलाके के गरीबों को रोजगार देने के दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप में उभरा है। इसमें कोई शक नहीं कि 10 साल की छोटी सी अवधि में मनरेगा के जरिए पूरे जिले में हजारों मजदूरों को लाखों का फायदा हुआ है और इसमें लगभग आधी महिलाएं भी हैं।

विकास खंड जैतीपुर के नगला देहातमाली की सुदामा (42 वर्ष) ने बताया, "आज मुझे साल में 30 दिन का काम मिल जाए तो मैं खुद को भाग्यशाली मानूंगी। मजदूरी 2-3 महीने की देरी से मिल रही है इसलिए मर्दों के पास बड़े शहरों में जाकर काम तलाशने के सिवा और कोई चारा नहीं रह गया है।"

विकास खंड मदनापुर के गांव मथाना निवासी रामबेटी (38 वर्ष) इस बात से बहुत परेशान है कि रोज नई-नई झंझट होती है जैसे मजदूरी का भुगतान बैंक खाते को आधार-कार्ड से जोड़कर हो रहा है लेकिन मनरेगा खाते में मजदूरी न पहुंचकर जिस खाते में आधार पहले लिंक है मजदूरी वहां पहुंच जाती है, जिससे हम लोगों को जहां-जहां बैंक में खाते हैं सबको चेक करना होता है जोकि हमारे साथ अन्याय है।

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वहीं मोरपाल (36 वर्ष) निवासी नरदरा ने अपने गाँव के कई ऐसे लोगों का जिक्र किया जिनका बैंक-खाता गलत आधार-नंबर से जुड़ गया था, ऐसे लोगों ने मनरेगा के लिए काम किया है लेकिन उनकी मजदूरी के पैसे किसी और मजदूर के खाते में चले जाते हैं जिनका समाधान मुश्किल से होता है। रोजगार सेवक सरताज अली (35 वर्ष) निवासी नयागांव ने बताया कि, "मनरेगा में ज्यादा जोर भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने पर है हम लोग एक तरह से भूमि-सुधार का काम भी कराते हैं, दलित लोगों के जो खेत पहले बंजर थे वहां अब सालों भर हरी-भरी फसल लहलहाती है।"

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