स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत : गली-मोहल्लों में दुकान की तरह खुले हैं क्लीनिक

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स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत : गली-मोहल्लों में दुकान की तरह खुले हैं क्लीनिकबड़ी समस्या तेजी से बढ़ रहे झोलाछाप डॉक्टर।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

पीलीभीत। गाँवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बद से बदतर हालात में हैं। सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण गली-मोहल्लों में झोलाछाप ने अपने पैरा जमा लिए हैं। इनके पास डिग्री नहींं होती लकिन ये इलाज कर मर्ज की करने का दवा करते हैं। ऐसे में मरीज की जान तो खतरे में होती है लकिन कमाई नहीं रुकती। ये हालात प्रदेश के हर जिले में है। आइए देखते है कुछ जिलों की जमीनी हकीकत-

जिला चिकित्सालय पीलीभीत डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। यहां इलाज के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। इसी कारण लोग पहुंच जाते हैं झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में अौर ये झोलाछाप बीमारी कोई भी हो सबसे पहले ग्लूकोज ही चढ़ाते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में फैले इन झोलाछापों की पड़ताल में सबसे पहले पूरनपुर रोड स्थित मरौरी ब्लॉक के गाँव कैंच में लालचंद्र (28 वर्ष) अपनी दुकान में अवैध तरीके से मरीज देखते मिले। इनके पास कोई भी चिकित्सकीय प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है। उन्होंने बताया, “तीन महीने से यह दुकान चला रहा हूं। मैंने डॉक्टर राजेश पांडे के पास ट्रेनिंग ली है। सीएमओ का ड्राइवर पैसे लेने आता है। महीने दो महीने बाद 500-1000 रुपए ले जाता है।” इस संबंध में जब उनके पास दवा लेने आए मरीज जमुना प्रसाद (60 वर्ष) से बात की गई तो उन्होंने बताया, “सर्दी, बुखार आदि की दवाई यहां से ले लेते हैं। एक दिन की दवा 20 रुपए में मिल जाती है और कमजोरी होने पर डॉक्टर साहब ग्लूकोज चढ़ा देते हैं।”

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वहीं दूसरे मरीज रामबहादुर (45 वर्ष) ने बताया, “सरकारी अस्पताल में चक्कर काटने पड़ते हैं। कभी डॉक्टर साहब नहीं मिलते तो कभी दवा नहीं मिलती। इसी कारण हम लोग गाँव में ही दवा ले लेते हैं। दवा ठीक होती है। सस्ती मिल जाती है।”

इसके बाद गाँव कनेक्शन की टीम अपनी पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए गजरौला कलां पहुंची। यहां राजकुमार अपने क्लीनिक में अवैध तरीके से दवाई देते मिले। यहां दवा लेने आई (18 वर्ष) की एक लड़की आशा ने बताया, “मैं पैर के दर्द की दवाई लेने आई हूं। मुझे डॉक्टर साहब ने 20 रुपए की दवाई दी है।”

इंटर तक की पढ़ाई, डाॅक्टरी की कोई डिग्री नहीं

वहीं सरांय सुंदरपुर में अतीश कुमार पुत्र ठाकुरदास एक दुकान में अपना क्लीनिक चलाते मिले। उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई की है। इनके पास कोई डिग्री नहीं है। इनके पास भी दो मरीज दवा लेते मिले। उनसे जब इस बारे में पूछा गया तो सुधीर कुमार (22 वर्ष) ने बताया, “कभी-कभार जुकाम, खांसी, बुखार की दवाई ले लेते हैं, क्योंकि सरकारी अस्पताल में जाने पर लंबी लाइन में लगना पड़ता है। समय की काफी बर्बादी होती है।” इसके अलावा गाँव सरांय सुंदरपुर के ही निवासी शेरसिंह पुत्र पुत्तुलाल भी अपने घर में अवैध तरीके से मरीज देखते मिले।

उनके पास भी कोई भी सर्टिफिकेट नहीं मिला। क्लीनिक पर पहुंचने पर एक महिला मरीज ग्लूकोज चढ़वाती मिली। गाँव कनेक्शन की टीम को देखते ही वह महिला मरीज चौकी से उठकर जाने लगी। जब गाँव कनेक्शन संवाददाता ने उनसे कहा कि अभी आप बोतल लगवा रही थीं अचानक कहां जा रही हैं। तो उन्होंने बताया, “कभी-कभार हम यहां दवाई लेने आ जाते हैं। यहीं से दवाई लेकर अपना इलाज करा लेते हैं।” इस संबंध में झोलाछाप डॉ. शेर सिंह का कहना है, “यह मेरा घर है। मैं यहां काफी समय से प्रैक्टिस कर रहा हूं। प्रैक्टिस करने के लिए मेरे पास कोई भी मेडिकल प्रमाण पत्र नहीं है।”

पीलीभीत सीएमओ ओपी सिंह ने बताया झोलछाप डॉक्टरों के खिलाफ लेटर जारी किया गया है। संयुक्त टीम जिसमें एसडीएम, सीओ और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी शामिल हैं, इनकी टीम द्वारा जांच की जाती है। मेरे संज्ञान में ड्राइवर द्वारा वसूली किए जाने का मामला नहीं है। यदि मेरे संज्ञान में यह बात आती है तो मैं अपने ड्राइवर के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करूंगा।

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हर गली मोहल्ले में डाॅक्टरी दुकान

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर। आज के समय में शायद ही कोई ऐसा गाँव हो जहां एक या दो डॉक्टर न रहते हों, लेकिन इन डॉक्टरों में कितने असली डॉक्टर होंगे, शायद यह उनसे इलाज कराने वालों को नहीं मालूम होगा। यदि इनकी शिक्षा की बात की जाए तो इनमें से बहुत तो हाईस्कूल या इंटर ही पास होंगे।

अभी कुछ समय पहले कानपुर नगर के थाना घाटमपुर की पुलिस ने एक ऐसे ही डॉक्टर को गिरफ्तार किया था। जांच में पता चला था कि चार साल कानपुर नगर के एक डॉक्टर के पास कम्पाउंडर की नौकरी करते-करते वह शख्स खुद ही डॉक्टर बन बैठा था। कानपुर नगर के बिधनू ब्लॉक के मझावन गाँव के निवासी असलम (52 वर्ष) बताते हैं, “गाँव में खुले सरकारी अस्पताल में 24 घंटे तो डॉक्टर नहीं मिलता। अब ऐसे में अगर डॉक्टर की जरूरत है तो या तो ब्लॉक में खुले सीएचसी जाओ या फिर गाँव के ही झोलाछाप से दवा ले लो। हम लोग कौन सा डॉक्टर की डिग्री देख पाएंगे। हमारे लिए तो केवल इतना ही काफी है कि डॉक्टर साहब हैं। उनकी दवा से हम लोगों को आराम मिल जाता है।”

वहीं कानपुर नगर के ब्लाक भीतरगांव के गाँव गंभीरपुर की चंदाना देवी (45 वर्ष) बताती हैं, “कहीं न कहीं घर पर इलाज कराना ज्यादा बेहतर है। जरा सी बीमारी हो और फोन कर दो तो गाँव के डॉक्टर साहब घर तक आ जाते हैं।” समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें ऐसे झोलाछाप के कारण मौत तक हो गई है। कानपुर नगर के बिधनू की रहने वाली अंजू तिवारी की मौत का कारण भी एक ऐसा ही झोलाछाप बना था। पिछले साल सितंबर में डेंगू होने पर भी बिना खून की जांच किए वायरल बुखार की दवा दे दी, जिससे लगातार प्लेटलेट्स की संख्या घटने के कारण उसकी मौत हो गई थी।

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कानपुर नगर सीएमओ डॉ.आरके सिंह ने बताया वर्तमान समय में लोग छोटी-मोटी बीमारियों के लिए डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं और सिर दर्द, बदन दर्द बुखार इत्यादि की दवाइयां मेडिकल स्टोर से ही लेकर काम चला लेते हैं। जिले में सक्रिय झोलाछापों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

परचून की दुकानों पर बिक रहीं दवाइयां

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

मेरठ। अब परचून की दुकान चलाने वाले लोग भी रैपर व गोली का रंग देखकर दवाई बेच रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग को ठेंगा दिखाकर ये लोग आयुर्वेदिक से लेकर एलोपैथिक तक की सही-गलत दवाएं ग्राहकों को दे रहे हैं। इनके पास न लाइसेंस है, न ही प्रशिक्षण। इन्हें न दवाओं के साइडइफेक्ट से मतलब है और न ही एक्सपाइरी डेट से।

दौराला ब्लॉक के गाँव नरहैडा निवासी अतीक अहमद (43 वर्ष) बताते हैं, “हाल ही में परचून की दुकान से खरीदी हुई पेन किलर खाने से महिला की मौत हो गई थी। बाद में जब डॉक्टर ने रैपर देखा तो दवाई एक साल पहले एक्सपायर हो चुकी थी।” ये एक घटना नहीं है, शहर से लेकर गाँवों के गली-मोहल्लों में खुली परचून की दुकानों पर हर मर्ज की दवा और इंजेक्शन बेची जा रही है।

आमतौर पर परचून की दुकानों पर दर्द, बुखार व पेचिस आदि की ही गोलियां मिलती थीं, लेकिन अब लगभग सभी तरह की बीमारियों की दवाई धड़ल्ले से बिक रही हैं। हस्तिनापुर ब्लॉक के गाँव हंसापुर के राहुल चौधरी बताते हैं, “मेरे गाँव में परचून की हर छोटी से छोटी दुकान पर ज्यादातर दवाई मिल जाती है। कई बार इन दवाओं को खाने से लोग अपनी जान जोखिम में भी डाल चुके हैं।”

मुख्य चिकित्सा अधिकारी राजकुमार चौधरी ने बताया परचून की दुकानों पर यदि दवाइयां बिक रही हैं तो शहर और देहात में ऐसी दुकानों को चिन्हित कराकर कार्रवाई की जाएगी।

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सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों के न मिलने से झोलाछापों का लेना पड़ता है सहारा

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया। जिले में झोलाछाप बिना किसी डर के खुलेआम बोर्ड लगाकर इलाज कर रहे हैं। अधिकारी भी इस ओर कोई कड़ा कदम नहीं उठा रहे हैं, जिससे इन चिकित्सकों के हौसले बुलंद हैं। कयोंटरा गाँव निवासी नागेश कुमार (36 वर्ष) का कहना है, “सरकारी अस्पताल में एएनएम आती है।कोई चिकित्सक न होने और दवाएं न होने से झोलाछाप चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ रहा है।”

जिले में कुल मिलाकर 25 सीएचसी-पीएचसी हैं। सभी जगह पर्याप्त चिकित्सकों के न होने पर एएनएम और फार्मासिस्ट के सहारे चल रहे हैं। जिले में झोलाछाप चिकित्सकों के इलाज से 2013 से लेकर अभी तक लगभग आठ लोगों की मौत हो चुकी है। जुलाई माह में नगर के मोहल्ला गोविंद नगर में एक झोलाछाप चिकित्सक द्वारा लगाये गये इंजेक्शन से अनामिका का हाथ खराब हो गया।

भाउपुर निवासी कुलदीप कुमार (42 वर्ष) का कहना है, “मजबूरन झोलाछाप का सहारा लेना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में जब जाओ चिकित्सक ही नहीं मिलता है।” गाँव दखली पुर निवासी रानी देवी (28 वर्ष) का कहना है, “फफूंद का अस्पताल गाँव के करीब है, वहां चिकित्सक तीन दिन मिलते हैं। रोज न मिलने की वजह से झोलाछाप का सहारा लेना पड़ा है।”

प्रभारी मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. विनोद सागर झोलाछाप के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। सरकारी चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए शासन को पत्र भेजा गया है।

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झोलाछापों की जकड़ में ग्रामीण

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

विशुनपुर (बाराबंकी)। अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं और योग्य चिकित्सकों की कमी के कारण गाँवों में झोलाछाप डॉक्टरों का धंधा फल-फूल रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण मजबूरी में इनकी शरण लेने को विवश हैं। देवा ब्लाक के मूर्तजानगर निवासी रामलखन की मौत 21 फरवरी को झोलछाप डॉक्टर के इलाज के चलते हो गई थी।

ग्रामीण क्षेत्रों के हर चौराहे पर झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है। बिना डिग्री के मात्र अनुभव के आधार पर चल रहे यह दवाखाने ग्रामीणों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। इन्हें चलाने वाले कथित चिकित्सक हर बीमारी का इलाज करते हैं। यही नहीं कई बाकायदा सर्जरी तक करते हैं। कमीशन के चक्कर में यह अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट एवं अन्य जांचें भी धड़ल्ले से लिखते हैं।

तस्वीर खुद सच्चाई बयान कर रही है।

इन रिपोर्ट के डाइग्नोस की इन्हें कितनी जानकारी है इसका आभास ग्रामीणों को नहीं होता और वह आसानी से इनके चंगुल में फंस जाते हैं। गाँवों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था इनके लिए फायदेमंद साबित होती है। खेवली में कोई भी पीएचसी नहीं है। कस्बे के पास पड़ोस के लोग गंभीर स्थिति में ही करीब पांच किमी दूर देवा या मित्तई पीएचसी पहुंचते हैं।

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यही हाल पास में स्थित विशुनपुर कस्बे का भी है। यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर केवल एक एएनएम सेंटर ही है। देवा पीएचसी की दूरी यहां से पांच किमी और सीएचसी की दूरी सात किमी है, जिसके चलते मामूली बीमारियों में लोग झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज पर निर्भर हैं।

सीएचसी प्रभारी डॉ. महमूद ने बताया ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों के खेल की शिकायतें मिल रही हैं। जल्द ही इनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

गाँव में इलाज से खराब हुआ बच्ची का पैर

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

तिर्वा (कन्नौज)। ‘‘हमारी बिटिया सात माह की थी, उसे बुखार आया था तो डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया। तब से उसका एक पैर खराब हो गया। गाँव के मारे हमने डाक्टर साहब से कुछ नहीं कही। बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।” यह कहना है कन्नौज जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर तिर्वा क्षेत्र के बलनपुर निवासी मोहम्मद हनीफ (45 वर्ष) का।

स्वास्थ्य विभाग की लाख कोशिशों के बावजूद जिले में झोलाछाप डाक्टरों का मकड़जाल फैलता जा रहा है। मंशुखपुर्वा निवासी चंद्रशेखर (35 वर्ष) कहते हैं, ‘‘झोलाछाप बिना चेकअप के ही इलाज शुरू कर देते हैं।”

सीएमओ डॉ. कृष्ण स्वरूप ने बताया निर्देश दे दिए गए हैं। जो भी झोलाछाप हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। जिनकी लिखित में शिकायत आई है उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।

पूर्वांचल में झोलाछापों की भरमार, कागजों पर होती है कार्रवाई

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

गोरखपुर। पूर्वांचल में झोलाछापों की भरमार है। स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। जिले के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह इनकी दुकानें लगी हुई हैं। बड़हलगंज ब्लॉक के दुबौली निवासी दिनेश दुबे (48 वर्ष) ने बताया, “प्रशासनिक उदासीनता के चलते क्षेत्र में झोलाछाप डॉक्टरों की बहार है। पीएचसी और सीएचसी की हालत सुधारने की दरकार है।”

गगहा ब्लॉक के चांडी गाँव निवासी विनोद राय (45 वर्ष) ने बताया, “क्षेत्र के लोगों को मजबूरन झोलाछाप की मदद लेनी पड़ती है।” बांसगाँव ब्लॉक के बाढ़ा निवासी हेमंत पांडेय (42 वर्ष) ने बताया, “स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के चलते झोलाछाप के हौसले बुलंद हैं।”

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मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. रविंद्र कुमार ने बताया झोलाछाप के खिलाफ लगातार छापेमारी हो रही है। सूचना मिलने पर कार्रवाई की जाती है। इस कार्य में आम लोगों का सहयोग जरूरी है। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। जिले में कहीं भी झोलाछाप मिले लोग सूचना दे सकते हैं, उन्हें गोपनीय रखा जाएगा।

बुखार की दवा देने की बजाए लगा दिया गलत इंजेक्शन

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

कासगंज। रामखिलाड़ी (22 वर्ष) सोरों विकासखंड के गाँव मल्लाहनगर के रहने वाले हैं। भट्टे पर मजदूरी करने वाले रामखिलाड़ी को एक वर्ष पहले बुखार आया था, उपचार के लिए उन्होंने गाँव के ही झोलाछाप को दिखाया। झोलाछाप ने उन्हें एक इंजेक्शन लगाया। इंजेक्शन से उनके घाव हो गया जो गम्भीर शक्ल लेने लगा।

सीएमओ डॉ. आर द्विवेदी ने बताया झोलाछाप पर कार्रवाई की जाती है, इसके लिए टीम भी बनायी गई है। जब भी शिकायत मिलती है हमारे नोडल अधिकारी झोलाछाप के खिलाफ कार्रवाई करते हैं।

शहरी-ग्रामीण इलाकों में भरमार

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। बनारस को पूर्वांचल का मेडिकल हब माना जाता है। यहां कई बड़े-बड़े अस्पताल हैं। बावजूद इसके जनपद के शहरी और ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप की भरमार है। मुख्य मार्ग पर इनकी उपस्थिति नहीं है, लेकिन गली-मोहल्ले में यही दिखते हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी बीवी सिंह कहते हैं, “सभी ब्लाकों में झोलाछाप के खिलाफ लगातार अभियान चल रहा है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के पास पुलिस तो होती नहीं है। इसलिए दो-तीन सदस्यों वाली स्वास्थ्य टीमें चिकित्सकों के दस्तावेज और रजिस्ट्रेशन की जांच के बाद कार्रवाई करती हैं।”

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‘स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का अधिकार नहीं’

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

इलाहाबाद। बारिश और धूप के बाद जिले में डायरिया, सर्दी, जुकाम-बुखार के मरीजों की बढ़ती संख्या के साथ ही जिले के ग्रामीण इलाकों में झोलाछाप की सक्रियता बढ़ गई है। जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. आलोक वर्मा का कहना है, “किसी के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है। हर बार सैकड़ों दुकानें बन्द कराकर कार्रवाई की जाती है, लेकिन फिर धीरे-धीरे ये पनप जाते हैं। अब हमेशा इन पर नज़र रखी जाएगी।”

रिपोर्टिंग टीम

लखनऊ से दीपांशु मिश्र, मेरठ से सुंदर चंदेल, वाराणसी से विनोद शर्मा, गोरखपुर से जितेंद्र तिवारी और अंबरीश राय, कासगंज से मो. आमिल और राजेश पाठक, कन्नौज से मो. परवेज, बाराबंकी से अरुण कुमार, इलाहाबाद से ओपी सिंह परिहार, कानपुर से राजीव शुक्ला, पीलीभीत से अनिल चौधरी।

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