जंगल ही खेत, प्रकृति ही गुरु: गोवा के एक किसान का खेती का अनोखा मॉडल
जंगल ही खेत, प्रकृति ही गुरु: गोवा के एक किसान का खेती का अनोखा मॉडल

By Gaon Connection

गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।

गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।

मध्य हिमालय में संकट का सायरन: आने वाले दशकों में 100 साल वाली बाढ़ हर 5 साल में लौटेगी
मध्य हिमालय में संकट का सायरन: आने वाले दशकों में 100 साल वाली बाढ़ हर 5 साल में लौटेगी

By Gaon Connection

मध्य हिमालय में बारिश का पैटर्न बदल चुका है, कुछ घंटों में महीनों जितनी बारिश, और नदियाँ पहले से अधिक उफनती हुई। नई वैज्ञानिक स्टडी चेतावनी देती है कि आने वाले दशकों में बाढ़ सिर्फ बढ़ेगी ही नहीं, बल्कि पहाड़ों की ज़िंदगी की दिशा ही बदल देगी।

मध्य हिमालय में बारिश का पैटर्न बदल चुका है, कुछ घंटों में महीनों जितनी बारिश, और नदियाँ पहले से अधिक उफनती हुई। नई वैज्ञानिक स्टडी चेतावनी देती है कि आने वाले दशकों में बाढ़ सिर्फ बढ़ेगी ही नहीं, बल्कि पहाड़ों की ज़िंदगी की दिशा ही बदल देगी।

कुड़ुख भाषा को गीतों में बुनकर बचा रहीं दो आदिवासी बहनें
कुड़ुख भाषा को गीतों में बुनकर बचा रहीं दो आदिवासी बहनें

By Divendra Singh

दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?

दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?

जंगलों की खुशबू, नदियों की लय और पहाड़ों की साँस: ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ का सफ़र
जंगलों की खुशबू, नदियों की लय और पहाड़ों की साँस: ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ का सफ़र

By Divendra Singh

बारह जनजातियाँ, चवालीस कलाकार, एक सपना-आदिवासी संगीत को उसके सही सम्मान तक पहुँचाना। ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ एक आंदोलन है, एक यात्रा है, एक बयान है।

बारह जनजातियाँ, चवालीस कलाकार, एक सपना-आदिवासी संगीत को उसके सही सम्मान तक पहुँचाना। ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ एक आंदोलन है, एक यात्रा है, एक बयान है।

मानव अस्तित्व और धर्म: जनहित में कैसा हो हमारा आध्यात्मिक स्वरूप?
मानव अस्तित्व और धर्म: जनहित में कैसा हो हमारा आध्यात्मिक स्वरूप?

By Dr SB Misra

मन में एक सवाल आना स्वाभाविक है कि आखिर धर्म मनुष्य के अस्तित्व के लिए कितना जरूरी है? आखिर मनुष्य कोई धर्म लेकर तो पैदा नहीं होता; उसे जिस परिवार में वह पैदा हुआ, उसके बड़े-बूढ़ों से धर्मज्ञान मिलता है।

मन में एक सवाल आना स्वाभाविक है कि आखिर धर्म मनुष्य के अस्तित्व के लिए कितना जरूरी है? आखिर मनुष्य कोई धर्म लेकर तो पैदा नहीं होता; उसे जिस परिवार में वह पैदा हुआ, उसके बड़े-बूढ़ों से धर्मज्ञान मिलता है।

संवाद 2025: जब समुदाय, संस्कृति और धरती की धड़कनें एक सुर में मिलीं
संवाद 2025: जब समुदाय, संस्कृति और धरती की धड़कनें एक सुर में मिलीं

By Divendra Singh

संवाद केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक एहसास है, जहाँ कोई मंच पर बोलता है, तो वह सिर्फ अपने समुदाय की बात नहीं करता, वह अपने पुरखों की धड़कनें, जंगलों की खुशबू और अपनी मिट्टी की स्मृतियाँ साथ लेकर आता है।

संवाद केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक एहसास है, जहाँ कोई मंच पर बोलता है, तो वह सिर्फ अपने समुदाय की बात नहीं करता, वह अपने पुरखों की धड़कनें, जंगलों की खुशबू और अपनी मिट्टी की स्मृतियाँ साथ लेकर आता है।

ओडिशा का ‘दशरथ मांझी’ : बच्चों को पढ़ाने के लिए पहाड़ काटकर 8 किमी बनाई सड़क
ओडिशा का ‘दशरथ मांझी’ : बच्चों को पढ़ाने के लिए पहाड़ काटकर 8 किमी बनाई सड़क

By Karan Pal Singh

"बच्चे पढ़ाई में पीछे न रह जाएँ, इसलिए पाँच किमी पहाड़ चढ़कर हर दिन स्कूल जाता हूँ"
"बच्चे पढ़ाई में पीछे न रह जाएँ, इसलिए पाँच किमी पहाड़ चढ़कर हर दिन स्कूल जाता हूँ"

By Akankhya Rout

पहाड़, झरने और जंगली जानवरों की परवाह किए बिना लगातार सात साल से पहाड़ चढ़कर बच्चों को पढ़ाने के लिए जाते हैं। उन्हें एक घंटे की चढ़ाई के बाद उतरने में भी एक घंटा लगता है।

पहाड़, झरने और जंगली जानवरों की परवाह किए बिना लगातार सात साल से पहाड़ चढ़कर बच्चों को पढ़ाने के लिए जाते हैं। उन्हें एक घंटे की चढ़ाई के बाद उतरने में भी एक घंटा लगता है।

मिलिए चित्रकूट के ट्री-मैन भैयाराम से, अकेले लगा दिए 40 हजार से ज्यादा पेड़
मिलिए चित्रकूट के ट्री-मैन भैयाराम से, अकेले लगा दिए 40 हजार से ज्यादा पेड़

By Divendra Singh

बुंदेलखंड में हर जगह पर जब गर्मियों में सूखा नजर आता है, तो गाँव से बाहर एक छोटे से पहाड़ के पास जंगल में हरियाली दिखती है। ये हरियाली भैयाराम यादव के कई साल की अथक मेहनत का परिणाम है।

बुंदेलखंड में हर जगह पर जब गर्मियों में सूखा नजर आता है, तो गाँव से बाहर एक छोटे से पहाड़ के पास जंगल में हरियाली दिखती है। ये हरियाली भैयाराम यादव के कई साल की अथक मेहनत का परिणाम है।

यहां के आदिवासियों ने किया ‘दशरथ मांझी’ जैसा काम, बिना सरकारी मदद के पहाड़ पर बनाया रास्ता
यहां के आदिवासियों ने किया ‘दशरथ मांझी’ जैसा काम, बिना सरकारी मदद के पहाड़ पर बनाया रास्ता

By Neetu Singh

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