यूपी के इस स्कूल में टीचर की भोजपुरी का चला जादू, अब हर बच्चा पूछता है क्लास में सवाल

Pratyaksh Srivastava | Jul 21, 2023, 04:54 IST
गोरखपुर के बगहीभारी गाँव की प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका निधि सिंह अपने स्कूल के बच्चों की पसंदीदा टीचर बन गईं हैं, क्योंकि बच्चों के अच्छे प्रदर्शन पर उन्हें एक स्माइली बैज देती हैं। यही नहीं बच्चों और उनके अभिभावकों को समझाने के लिए वो भोजपुरी में भी बोलती हैं।
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बगहीभारी (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। आठ साल के करण गौर के ख़ुशी का ठिकाना नहीं है, क्योंकि उनकी टीचर निधि सिंह ने उन्हें महीने में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए हाथ से बनाई स्माइली दी है, और उसी की भाषा भोजपुरी में उसकी तारीफ़ भी की है।

निधि सिंह अपने नन्हे बच्चों को बेहतर तरीके से व्यस्त रखने के लिए ऐसा करती हैं। गोरखपुर के बगहीभारी गाँव के प्राथमिक विद्यालय की 30 वर्षीय सहायक अध्यापिका की कक्षा में 59 छात्र-छात्राएँ हैं। उनके सामने चुनौती है कि हर एक बच्चे की सीखने और समझने की क्षमता अलग-अलग होती है, इसलिए उन पर थोड़ा ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत होती है। क्लास में बच्चों को सहज रखने के लिए वो अक्सर उनसे उनकी भाषा भोजपुरी में बात करती हैं।

“कक्षा एक के बच्चों को स्कूल आने से पहले आंगनबाड़ी केंद्रों में जो कुछ भी सिखाया जाता है, उसके अलावा औपचारिक शिक्षा का कोई अनुभव नहीं होता है। इसलिए, सबसे पहले मैं छात्र-छात्राओं को तीन ग्रुप में बाँट देती हूँ - ए, बी और सी, '' निधि सिंह ने गाँव कनेक्शन से बताया।

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“ग्रुप सी पर सबसे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत होती। यह उन छात्रों से बना है जो दूसरे बच्चों के मुकाबले थोड़ा धीरे सीखते और समझते हैं, "उन्होंने आगे कहा।

छोटे-छोटे बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें लिखने के लिए प्रेरित करने से लेकर उन्हें कविताएँ सिखाने तक जो उन्हें संख्याओं और वर्णमाला को याद रखने में निधि सिंह मदद करती हैं। इसके लिए वो अनोखे तरीके भी अपनाती हैं।

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कक्षा की एक अन्य छात्रा साक्षी पासवान को चार बार स्माइली बैज ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया है। लेकिन यह ज़िम्मेदारियों के साथ आता है।

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“निधि मैडम के क्लास में न रहने पर मैं ही क्लास को देखती हूँ। जब वे मेरी बात सुनते हैं तो अच्छा लगता है। इसलिए तो मैंने कई बार स्माइली बैज जीता है। ” साक्षी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

सहायक अध्यापिका उन तरीकों को अपनाती हैं कि उनके बच्चे अच्छा सीखकर निपुण बनें।

निपुण केंद्र सरकार की 'समझदारी और संख्यात्मकता के साथ पढ़ने में प्रवीणता के लिए राष्ट्रीय पहल' योजना का संक्षिप्त रूप भी है। निपुण पहल के उद्देश्यों के अनुसार, स्कूली शिक्षा प्रणाली के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता 2026-27 तक प्राथमिक स्तर पर मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल का सार्वभौमिक अधिग्रहण हासिल करना है।

बच्चों के बड़े काम की हैं वर्कशीट

स्माइली बैज के अलावा, निधि सिंह अपने सभी छात्रों को बराबरी पर लाने के लिए उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग द्वारा दी गई वर्कशीट पर भी भरोसा करती हैं।

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बच्चे वर्कशीट पर काम करते हैं, और निधि सिंह सप्ताह में एक बार शनिवार को उनकी जाँच करती हैं, जिसके बाद वह उन्हें तेजी से सीखने वालों, जिन्हें अधिक मेहनत करने की ज़रूरत होती है, और जिस पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत होती है, उन पर विशेष ध्यान देती हैं।

भरोसा कायम करने के लिए भोजपुरी

निधि सिंह अक्सर भोजपुरी बोलती हैं, जो उनके स्कूल के बच्चों के परिवारों में आम तौर पर बोली जाने वाली भाषा है। उन्होंने कहा, "चावल के स्थान पर भात शब्द या दरवाज़े के स्थान पर किवाड़ शब्द का इस्तेमाल करने से काफी मदद मिलती है।"

निधि सिंह ने कहा, यह सब छात्रों का भरोसा और विश्वास जीतने के लिए है। बच्चे पहली बार स्कूल आए हैं और एक परिचित भाषा, वह भाषा जिसे वे घर पर बोलते और सुनते हैं, सुनना उनके लिए आरामदायक है। तीन महीने के बाद ही मैं उनसे हिंदी में बात करना शुरू करती हूँ।

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“बच्चे आमतौर पर गणित और अंग्रेजी आसानी से सीख लेते हैं लेकिन हिंदी सीखना उनके लिए मुश्किल होता है। मैं अक्सर अपने मोबाइल की मदद बच्चों को सिखाती और पढ़ाती हूँ, "निधि सिंह ने आगे कहा।

धीमी गति से सीखने वालों पर विशेष ध्यान

निधि सिंह के लिए, जबकि उनके सभी छात्र-छात्राएँ उनके पसंदीदा हैं, वह उन लोगों पर विशेष ध्यान देती हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत है। “मेरी कक्षा में, लगभग सभी बच्चे उपचारात्मक कक्षाओं में भाग लेते हैं। मैं नहीं चाहती कि कोई भी उपचारात्मक कक्षाओं के लिए चुने जाने से निराश हो। वे पढ़ते हैं जबकि उनके दोस्त खेलते हैं।” उन्होंने कहा। इसलिए हर कोई कक्षा में बैठता है, मैं बस उन छात्रों पर कड़ी नज़र रखती हूँ जिनपर ज़्यादा देने की ज़रूरत होती है, और वे सभी एक साथ अच्छा प्रदर्शन करते हैं ” शिक्षिक ने कहा।

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इसके अलावा, निधि सिंह शिक्षण की एक 'पिरामिड शैली' का उपयोग करती हैं जिसमें वह कमज़ोर छात्रों को पढ़ाने के लिए अपनी कक्षा में तेज़ी से सीखने वालों को नियुक्त करती हैं।

शिक्षण की पिरामिड शैली के माध्यम से सीखने के अपने अनुभव के बारे में पूछे जाने पर उसी कक्षा के एक छात्र सत्यम निषाद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मुझे अपने दोस्तों से सीखना बेहतर लगता है क्योंकि वो जानते हैं कि मैं क्या नहीं जानता।"

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लेकिन, निधि सिंह के लिए एक और चुनौती है, उपस्थिति की।

“मुझे याद है कि करण को नियमित रूप से क्लास में आने के लिए मनाना कितना कठिन था। वह एक प्रतिभाशाली बच्चा था। मैंने उसे दो महीने तक पढ़ाया, वह अच्छी तरह सीख रहा था, लेकिन अचानक, वह हफ्तों के लिए गायब हो गया। जब वह वापस लौटा, तो उसने जो कुछ भी सीखा था वह सब भूल गया था, ''उन्होंने अफसोस जताया।

अभिभावकों को पुरस्कार

अनुपस्थिति से निपटने के लिए, छात्रों के माता-पिता को नियमित रूप से बैठकों में आमंत्रित किया जाता है और कहा जाता है कि सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे नियमित रूप से कक्षाओं में उपस्थित हों। वार्षिक समारोहों के दौरान सर्वाधिक जागरूक अभिभावकों को सम्मानित किया जाता है।

निधि सिंह ने बताया कि ऐसे माता-पिता जो अपने बच्चे की प्रगति के बारे में लगातार संपर्क में रहते हैं, जो माता-पिता नियमित रूप से पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में शामिल होते हैं, और खुद अपने बच्चे की शिक्षा के बारे में प्रश्न पूछते हैं, उन्हें 'जागरूक' माता-पिता माना जाता है।

करण की 30 साल की माँ संजू गौर पुरस्कार पाने वालों में से एक हैं। “मुझे एक अभिभावक के रूप में सम्मानित किया गया। मुझे अपने बेटे पर गर्व महसूस हुआ। समारोह में बहुत भीड़ थी और गाँव के सभी लोगों ने मुझे बधाई दी। यह अच्छा लगा। '' माँ ने कहा।

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