यूपी में पुष्टाहार संकट के बीच लड़ी जा रही कुपोषण से जंग

Ajay MishraAjay Mishra   16 April 2018 2:19 PM GMT

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यूपी में पुष्टाहार  संकट के बीच लड़ी जा रही कुपोषण से जंगबच्चों को काफी दिनों से नहीं मिला पुष्टाहार।

एक तरफ देश से कुपोषण खत्म करने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। अरबों का बजट खर्च कर योजनाएं भी चलाई जाती हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं किया जाता है। बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए दिया जाने वाला पोषाहार उत्तर प्रदेश में प्रतिमाह नहीं आ रहा है, जिससे गांव के लोगों को पौष्टिक आहार न मिलने से स्वस्थ्य रहने के दावे करना बेईमानी होगी।

जिला कन्नौज के उमर्दा ब्लाक क्षेत्र के पट्टी पवोरा की आंगनबाड़ी कार्यकत्री द्रोपदी देवी बताती हैं, ‘‘ फरवरी से पोषाहार नहीं आया है। मेरे केंद्र पर 66 बच्चे पंजीकृत हैं, लेकिन पोषाहार न आने की वजह से कम बच्चे आ रहे हैं।’’

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आंगनवाड़ी केंद्र पर आने वाली पांच साल की बच्ची रोहिणी बताती है, ‘‘बहुत दिनों से मेरे केंद्र पर पंजीरी नहीं मिलती है। ’’

अतिकुपोशित बच्चों के स्वास्थ्य की जांच करते डाॅ. वरूण सिंह कटियार और उनकी टीम।

उन्नाव के जिला कार्यक्रम अधिकारी दुर्गेश प्रताप सिंह बताते हैं, ‘‘हमारे यहां जीरो से पांच साल तक के 3,48,368 बच्चे पंजीकृत हैं। सामान्य श्रेणी में 2,37,688 बच्चे, आंशिक 78,175 बच्चे और गंभीर 23,223 बच्चे हैं।’’ जिला कार्यक्रम अधिकारी ने आगे बताया, ‘‘मार्च 2018 में विभाग की ओर से जिले को पुष्टाहार की आपूर्ति नहीं की गई है। छह महीने से तीन साल तक के 1,89,349 बच्चों को फरवरी में पोषाहार से लाभान्वित करने का लक्ष्य था, जिसके सापेक्ष 1,25,963 बच्चे लाभान्वित किए गए।’’

कन्नौज के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज कुमार मौर्य ने बताया, ‘‘शून्य से तीन साल तक के 88,632 बच्चे, तीन से छह साल तक के 98,927 बच्चे, 18,348 गर्भवती और 19,520 धात्री महिलाएं पंजीकृत हैं। लाल श्रेणी के अतिकुपोशित बच्चों की अक्तूबर 2017 में संख्या 5,210 थी, जो मार्च 2018 में 3,889 रह गई है। कुपोशित बच्चे जो पीली श्रेणी में रखे गए हैं, वर्तमान संख्या 14,717 है। अक्तूबर 2017 में यह फीगर 17,581 था। फरवरी 2018 से पोषाहार नहीं आ रहा है, जिसकी वजह से वितरण संभव नहीं है।”

आंगनवाड़ी केंद्र नुनारी द्वितीय पर पसरा सन्नाटा।

इलाहाबाद के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज कुमार राव बताते हैं, ‘‘ जनपद में कुल 4499 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। उसी हिसाब से कार्यकत्रियों की नियुक्ति होती है। पद खाली ही होते जा रहे हैं। भर्ती न होने की वजह से कमी है । 128 सुपरवाइजर और 18 सीडीपीओ तैनात हैं, इसमें चार पद खाली हैं।’’

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कन्नौज जिले के सखौली निवासी सुमन बताती हैं कि ‘‘पंजीरी नहीं मिलती है। मेरे मायके में सबकुछ मिलता है। यहां मुझे कुछ समझ में नहीं आता है कि यहां मिलता भी है या नहीं। चार महीने हो गए कुछ भी पंजीरी नहीं मिली। ”

कन्नौज के मकरंदापुर केंद्र की आंगनवाड़ी कार्यकत्री सुनीता देवी ने बताया, ‘‘27 जनवरी 2018 से पुष्टाहार प्राप्त नहीं हुआ है। न मिलने की वजह से बच्चे कम आते हैं। जब पुष्टाहार मिलता है तो बैठते हैं और पढ़ते भी हैं।’’

जानिए क्या है ये है योजना

छह महीने से तीन साल तक के लाभार्थियों को वीनिंग फूड का पोषाहार 120 ग्राम वजन के साथ हर रोज दिया जाता है। एक किलो का पैकेट तीन टीएचआर दिवस लगातार बांटा जाता है। यह दिवस महीने की पांच, 15 और 25 तारीख को कार्यकत्री द्वारा पुष्टाहार लाभार्थी को दिया जाता है। तीन से छह साल तक के बच्चे को एमाइलेज रिच एनर्जी फूड (मार्निंग स्नैक्स) 50 ग्राम प्रतिदिन दिया जाता है। हाट कुक्ड फूड प्रति बच्चा साढे़ तीन रुपए की दर से पका पकाया भोजन सोमवार, बुधवार को खिचड़ी, मंगलवार और वृहस्पतिवार को मीठा दलिया एवं षनिवार को हलुआ दिया जाता है। वर्श 2017-18 में षासन ने इस योजना के लिए बजट आवंटित नहीं किया।

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टेंडरिंग न होने से फरवरी से पोषाहार नहीं आया है। तीन महीने बढ़ा दिए गए थे, जो पूरे हो गए हैं। अब आपूर्ति होने पर ही आंगनवाड़ी केंद्रों पर पोषाहार बंटवाया जाएगा।’
मनोज कुमार राव, जिला कार्यक्रम अधिकारी, इलाहाबाद

एसीएमओ कन्नौज डा. राममोहन तिवारी बताते हैं, ‘‘गर्भवती माताओं व बच्चों के शरीर के लिए पोषाहार जरूरी होता है। यह पौष्टिक होने की वजह से शरीर के विकास के लिए जरूरी होता है। गाँव में गरीब परिवार को इसका ज्ञान नहीं होता है। खाना तो बनता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि पौष्टिक हो, इसलिए इसे दिया जाता है।’’

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कन्नौज से आरबीएसके टीम के डा. वरूण सिंह कटियार बताते हैं, ‘‘पुष्टाहार की वजह से बच्चे केंद्र पर आते हैं। अब नहीं मिल रहा है तो बच्चे केंद्र पर नहीं दिखते हैं। आंगनवाड़ी केंद्र पर बच्चे बैठना सीखते हैं। मां-बाप उनको इसलिए छोड़कर जाते हैं कि कुछ खाएंगे-पिएंगे और खेलेंगे। पुष्टाहार न आने से कुपोषण बढ़ रहा है।”

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