विलुप्त होते व्यवसाय को मिट्टी के खिलौनों ने दी रफ्तार

Arun MishraArun Mishra   13 Feb 2018 11:24 AM GMT

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विलुप्त होते व्यवसाय को मिट्टी के खिलौनों ने दी रफ्तारखिलौने बेचता दुकानदार।

आधुनिकता के इस दौर में मिट्टी के बर्तनों के विलुप्त होते व्यवसाय को मिट्टी के खिलौनों ने नया व्यवसाय दिया है। देवा मजार पर इनकी काफी मांग के चलते कई परिवारों को रोजगार का जरिया मिला है।बाराबंकी मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर कस्बा देवा के मजार रोड पर मिट्टी के खिलौने बनाकर बेचने का कार्य व्यापक स्तर पर होता है। कभी कुल्हड़, दीये, मटका आदि बना कर गुजारा करने वाले कसगर परिवारों के धंधे को आधुनिकता का ग्रहण लग गया।

सारा धंधा दीवाली के दीयों पर टिक गया। इससे इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि परिवार का गुजारा हो सके। मन्द पड़े धंधे को देवा मजार से नई जान मिली है। यहां मिट्टी के कलात्मक सामानों की दुकानों पर मिट्टी के खिलौने, सजावटी सामान, बर्तन और एक से बढ़कर एक ऐसे नायाब सामान हैं जिनकी खरीददारी जायरीन बड़े चाव से करते हैं।

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गाँवों के कई कसगर परिवार इन दुकानों पर डिमांड के अनुसार बर्तन बनाकर आपूर्ति करते हैं। जिससे इनकी चाक की रफ़्तार आज भी तेज है। विशुनपुर कस्बे के बाबू कसगर दीयों के बाद अब पीढ़ा,बेलन और कई छोटे छोटे खिलौने बना कर इन दुकानों पर आपूर्ति करते हैं। क्षेत्र के कई अन्य परिवार भी खाली दिनों में मिट्टी के खिलौने और बर्तन बनाकर अच्छी आय कर रहे हैं। बाबू बताते हैं कि मजार पर आने वाले जायरीन यहां से यादगार के रूप में मिट्टी से बने सामान ले जाते हैं। जिससे यहां मांग अच्छी रहती है और मंद पड़े धंधे को जायरीन की बदौलत नई जान मिली है।

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मिट्टी के खिलौने और अन्य उपयोगी वस्तुएं।

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बाबू कहते हैं कि अभी मिट्टी मोल खरीदनी पड़ती है। झीलों और तालाबों से अब मिट्टी नहीं मिल पाती है। सरकार ने कुम्हार परिवारों को मिट्टी के लिए जमीन के पट्टे देने का प्राविधान कर रखा है लेकिन आज तक पट्टा नहीं मिला है। जिससे फिलहाल धंधे में लागत अधिक और मुनाफा कम है।

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