आखिरकार बच्चे को मिला पिता का नाम

Update: 2016-05-27 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

लखनऊ। राजकीय बाल गृह बालिका मोतीनगर में रहने वाली किरन (बदला हुआ नाम) को अचानक से रायबरेली भेजा जा रहा था, तभी उसका मेडिकल चेकअप हुआ और गर्भवती होने की पुष्टि हुई। चार अप्रैल को पता चला उसका राहुल नाम के लड़के के साथ सम्बन्ध था। 

किरन बताती है, “पिछले कई दिनों से यह डर सता रहा था कि मेरा उसका क्या होगा? बच्चा दुनिया में आएगा या नहीं? शादी होगी भी या नहीं? कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं बिना शादी की मां बन जाऊं? इसी तरह के सवालों से मैं घिरी थी।” 

आगे कहा, “इतनी जांच और समस्याओं के चलते यह उम्मीद नहीं थी कि मेरी शादी होगी। पर आज बहुत खुश हूं कि मेरे बच्चे को पिता का नाम और मुझे इज्जत मिली। आज डर से आजादी और परिवार दोनों मिल गए। चार साल पहले अपना सब कुछ खो दिया था, पर आज घर मिल रहा है।”

नव विवाहिता के पति राहुल (25 वर्ष) ने कहा, “मैं इसे तीन साल से जानता हूं, जब यह इंटर में पढ़ती थी, तभी से मैं इससे प्यार करता हूं। दो साल पहले ही शादी के लिए राजकीय बाल गृह में अप्लीकेशन दिया था, लेकिन तब वो पढ़ना चाहती थी, इसलिए हम लोगों ने शादी नहीं की।” 

आगे कहा, “पिछले तीन महीने में जब यह समस्या आई तभी से हमने शादी करने का फैसला किया, इसमें मेरे परिवारवालों ने भी साथ दिया। मैं अपनी पत्नी और बच्चे दोनों का पूरा ख्याल रखूंगा।” शादी के समय लड़के वालों की तरफ से पूरा परिवार था, वहीं लड़की पक्ष से सिर्फ किरन की छोटी बहन स्वाती (17 वर्ष।) थी। जब लड़की के गवाहों की बारी आई तो सिर्फ नाबालिक बहन जिसका बयान दर्ज नहीं किया जा सकता था। तब चाइल्ड लाइन के निदेशक अंशुमाली शर्मा ने गवाही और कन्यादान के लिए हाथ आगे बढ़ाया और गवाही दी। 

वहीं, राजकीय बालिका गृह में रसोईया का काम करन वाली शान्तिदेवी (52) को कुछ विवादों के कारण नौकरी से निकाल दिया गया। शन्तिदेवी बताती हैं, “मेरे बेटे ने लड़की को वहीं देखा था और पसंद करने लगा, इस तरह दोनों में प्यार हो गया। बेटे ने प्यार किया और शादी भी कर रहे हैं। पिछले तीन महीने से बहुत सी समस्याओं का समना करना पड़ा, यहां-वहां दौड़ते रहे, विभागों में चक्कर लगाने के साथ हर जगह बयान दर्ज कराए। बहुत मुश्किलों के बाद किरन मेरे घर की बहू बन पाई।” 

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