पशुओं में बढ़े पथरी के मामले, आईवीआरआई ने इजाद की इलाज की नई तकनीक

यूरोलीथियसिस नाम की यह बीमारी जानवर के यूरिनरी ब्लैडर की पथरी खिसक कर यूरेथ्रा (मूत्रनली) को ब्लॉक कर देती है और यूरिनरी ब्लाडर में मूत्र भरने से फट जाता है और मूत्र शरीर में भर जाने से संक्रमण जानवर के पूरे शरीर में फैल जाता है, जिससे पशु की मौत भी हो जाती है।

Update: 2018-06-20 08:09 GMT

इज्जतनगर (बरेली)। अभी आपने इंसानों में ही पथरी के बारे में सुना होगा लेकिन यह जानलेवा बीमारी न सिर्फ इंसानों में होती है बल्कि गाय-भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, बिल्ली समेत कई जानवरों में तेजी से बढ़ रही है। भारतीय पशु अनुंसधान संस्थान (आईवीआरआई) में हर साल 700 से 800 पथरी के मामले आ रहे है।

"पिछले आठ वर्ष पहले इस बीमारी से ग्रसित पशु की संख्या 50 से 60 थी लेकिन पिछले एक दो सालों में बढ़ोत्तरी हुई है। यह बीमारी मादा पशुओं की अपेक्षा नर पशुओं में ज्यादा होती है।" आईवीआरआई के रेफरल पॉली क्लीनिक के प्रभारी और सर्जरी विभाग के हेड प्रधान डॉ. अमरपाल ने बताया, "मादा पशुओं में पेशाब की नली की चौड़ाई ज्यादा होती है तो पथरी उसमें रूकावट पैदा नहीं करती है। लेकिन नर पशुओं में पेशाब की नली का आकार पतला होता है तो उसमें पथरी बनते ही रूकावट हो जाती है। इसलिए ये नर पशुओं को ज्यादा होती है।"

यूरोलीथियसिस नाम की यह बीमारी जानवर के यूरिनरी ब्लैडर की पथरी खिसक कर यूरेथ्रा (मूत्रनली) को ब्लॉक कर देती है और यूरिनरी ब्लाडर में मूत्र भरने से फट जाता है और मूत्र शरीर में भर जाने से संक्रमण जानवर के पूरे शरीर में फैल जाता है, जिससे पशु की मौत भी हो जाती है। सही समय पर इलाज ही इस बीमारी से पशुओं को बचा सकता है।

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डॉ अमरपाल के मुताबिक इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण है पशुओं को संतुलित आहार न देना। "ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं को संतुलित आहार नहीं देते है। उदाहरण के लिए पशुपालक अपने बकरे को बढ़ा करने के लिए अत्याधिक मात्रा में दाना खिलाते है, जिसमें फास्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और ये फास्फोरस पशु के यूरीन में पहुंचकर वहां पर पथरी बना सकता है तो पशुपालको को बहुत जरूरी है कि वो पशुओं को संतुलित आहार दें।" डॉ अमरपाल ने बताया।


पशुओं को इस बीमारी से बचाने के लिए आईवीआरआई में नई तकनीक भी विकसित की है। "पहले हम जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे थे उसमें पशुओं को बचने की संख्या काफी कम थी। लेकिन ट्यूब सिस्टोस्टॉमी तकनीक के इस्तेमाल से इस बीमारी का इलाज आसान हो गया है।" डॉ अमरपाल ने जानकारी देते हुए बताया, "कई बार पशुपालक पेशाब रुकने पर उन्हें लैसिक्स (पेशाब बनाने वाले) इंजेक्शन लगा देते हैं, यह काफी हानिकारक है। इससे पाड़े की पेशाब की थैली फटने का डर रहता है। पशुपालक इस बात का ध्यान रखें कि पशु को पेशाब बढ़ाने वाली दवा न दें उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।"

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क्या है नई विधि

पहले जो पशु की पेशाब की नली होती थी उसमें एक चीरा लगाकर पथरी को निकाल देते थे। लेकिन नर पशुओं को दुबारा यह बीमारी होने पर बचा पाना मुश्किल होता था क्योंकि नर पशुओं में पेशाब की नली पतली होती है चीरा लगाने के बाद टांके लगाते है तो टांके लगाने से उसका आकार और छोटा हो जाता है। इस विधि से पशु की सारी पथरी निकल भी नहीं पाती थी। तो ऑपरेशन करने पर पशु के शरीर में इंफेक्शन फैल जाता था और इसके अलावा पेट के नीचे की खाल भी कई बार सड़ने लगती थी।

लेकिन नई विधि के द्वारा अब एक पाईप को सीधे पशु के पेशाब की थैली (यूरिनर ब्लेडर) के अंदर फिक्स कर देते है और सारा यूरिन पेशाब की नली में न जाकर इस पाइप के माध्यम से बाहर निकलता रहता है। इसके अलावा पशुओं को ऐसी दवाईयां देते है जिनके द्वारा यूरिन की एसिडिटी बढ़ जाती है और कुछ दवाईयां देने पर पेशाब से ही पथरी निकल जाती है। और पशु 10 से 15 दिनों में ठीक हो जाता है।

लक्षण

  • बार-बार पेशाब करने की कोशिश करना है लेकिन कर न पाना। यह लक्षण पशुपालक बहुत आसानी से पहचान सकता है।
  • इसके अलावा पशु चारा खाना छोड़ देता है।
  • आंखे अंदर की ओर धंस जाती है।
  • पेट फूला-फूला सा लगता है।
  • कई बार वह बार-बार उठने बैठने की कोशिश करता है।
  • लक्षण दिखने पर पशु को नजदीकी पशुचिकित्सालय में दिखाएं।


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