हरे चारे और मिनिरल की कमी से दुधारू पशुओं में हो रहा बांझपन

Update: 2019-05-18 09:47 GMT

देहरादून। "देश के दुधारू पशुओ में बांझपन एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है क्योंकि अभी भी पशुपालकों यह जानकारी नहीं है कि अपने दुधारू पशुओं को कितनी मात्रा में हरा चारा और दाना देना है। इस बीमारी से पशुपालक को पैसे का काफी नुकसान होता है।'' ऐसा कहना था महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रसूति शास्री प्रोफेसर सुधीर सहतपुरे का।

गाय में एक प्रसव प्रतिवर्ष और भैंस में 13-15 माह के अंतराल में होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। दुधारू पशुओ में बांझपन का अर्थ है-गर्भ धारण न करना। इस बीमारी से ग्रसित मादा प्राकृतिक और कृत्रिम गर्भाधान से भी गर्भधारण नही करती। मादा पशुओं में प्रजनन शक्ति का हृास होना बांझपन कहलाता है।

प्रोफेसर सुधीर बताते हैं, "हर राज्य में दुधारू पशुओं के लिए अलग-अलग चारे का उत्पाद होता है। जैसे पंजाब में गेहूं की खली ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है। महाराष्ट्र में स्वरगम बंगाल में राइस ब्रेन प्रयोग करते है लेकिन बछिया को कितनी मात्रा में आहार देना है और ग्याभिन को कितनी मात्रा में आहार देना है इसकी जानकारी लोगों में नहीं है। उनके पास जो उपलब्ध हो खिला देते हैं। इस पर किसानों को ध्यान देने की बहुत जरूरत है।"


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बाझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम रखने के लिए पशु ब्याने के बाद 45-60 दिनों के मध्यांतर मद में आ जाना चाहिए और 100 दिनों के भीतर गाभिन हो जाना चाहिए। लेकिन बहुत कम ही ऐसा हो पाता है। दुधारू पशुओं में बांझपन के कारण के बारे में प्रोफेसर सहतपुरे बताते हैं, दुधारू पशुओं को अगर सही समय पर हरा चारा और मिनिरल की कमी को पूरा किया जाए तो इस बीमारी को रोका जा सकता है। 15 लीटर वाली गाय को 15 किलो हरा चारा 5 से 8 किलो सूखा चारा और कम से कम 3 किलो मिनिरल देना चाहिए। "

अपनी बात को जारी रखते हुए प्रोफेसर सुधीर बताते हैं, "दूध देने वाली गायों में मिनिरल की कमी को पूरा करना बहुत जरूरी है क्योंकि दूध निकालते समय वो सारा मिनिरल्स निकल जाता है जो आपने पशु को दिया। अगर मिनिरल की पूर्ति को पूरा नहीं करेंगे तो खून में कमी और रिपीड ब्रीडिंग जैसी कई प्रजनन संबंधी समस्याएं आती है।"

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पशु आहार में प्रोटीन, खनिज लवण और विटामिन की कमी से दुधारू पशुओं के जननांग पूरी तरह से विकसित नही हो पाते हैं। कैल्शियम, फास्फोरस, कॉपर, आयोडीन, खनिज लवण, पशु आहार में विटामिन 'ए' तथा 'ई' की कमी होने से मादा पशु के अण्डाशय समय पर विकसित नही हो पाते हैं, जिससे बांझपन की समस्या आती है।

पशुओं को बांझपन बीमारी से बचाने के लिए पशुओं को किस तरह का आहार दिया जाए इसके बारे में श्रावस्ती जिले के पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ अमर सिंह ने बताया, ''एक कुंतल संतुलित आहार बनाना है तो 20 किलो खल जिससे वसा मिलती है। 20 किलो दालों की चूनी भूसी, प्रोटीन के लिए एक से दो किलो मिनिरल मिक्चर और एक से दो किलो तक नमक मिलाकर पशुओं को खिलाएं। अगर बछिया है तो एक किलो प्रतिदिन खिलाएं और दूध देने वाली गाय है तो करीब 3-4 किलो दें। पशुओं में बांझपन की समस्या नहीं होगी।''

संतुलित आहार

गाय (10 लीटर दूध देने वाली ), भैंस (10 लीटर दूध देने वाली ) के ये है संतुलित आहार

दाना

गाय- पशुपालक को पूरे दिन में लगभग 4 किलोग्राम दाना

भैंस- लगभग 3.5 किलोग्राम दाना

भूसा

गाय को गेंहू का भूसा लगभग 3 किलो

भैंस को पूरे दिन में लगभग 4 किलो भूसा

हरा चारा

  • गाय को पूरे दिन में लगभग 15-20 किलो
  • हरा चारा भैंस को दिन में लगभग 20-25 किलो हरा चारा
  • सौ किलो संतुलित दाना बनाने की विधि
  • दाना (मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा) इसकी मात्रा लगभग 35 प्रतिशत होनी चाहिए। चाहें बताए गए दाने मिलाकर 35 प्रतिशत हो या अकेला कोई एक ही प्रकार का दाना हो तो भी खुराक का 35 प्रतिशत दे।
  • खली(सरसों की खल, मूंगफली की खल, बिनौला की खल, अलसी की खल) की मात्रा लगभग 32 किलो होनी चाहिए। इनमें से कोई एक खली को दाने में मिला सकते है।
  • चोकर(गेंहू का चोकर, चना की चूरी, दालों की चूरी, राइस ब्रेन,) की मात्रा लगभग 35 किलो।
  • खनिज लवण की मात्रा लगभग 2 किलो।
  • नमक लगभग 1 किलो

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बांझपन के कारण

संक्रामक बीमारियां- मादा पशुओ के जननांगों में जीवाणुओं और विषाणुओ का संक्रमण होने की स्थिति में पशुओ में गर्भाधारण नही हो पाता या गभिन पशुओ में गर्भपात हो जाता है। ऐसी स्थिति में पशुचिकित्सक से जांच कराना चाहिए और पशुओं को इन बीमारियो से बचाने के लिए इन बातो का ध्यान रखना चाहिए।

  • कृत्रिम गर्भाधान अपनाना चाहिए।
  • नर पशु की समयानुसार जांच करनी चाहिए व संक्रमित नर पशु को अलग करना चाहिए।
  • संक्रमित व स्वस्थ मादा पशुओ को अलग-अलग रखना चाहिए।
  • गर्भपात की स्थिति में जेर व अन्य स्त्रावो को जमीन में दबा देना चाहिए।
  • संक्रमण से मरे हुए पशु को जमीन में दफन करना चाहिए।

पशु का गर्मी में न आना

देशी नस्ल की गाय-भैसो की बछिया-पाड़ी, लगभग ढाई से तीन साल की उम्र में गर्मी में आ जानी चाहिए और संकर नस्ल की गायो की बछिया 15-18 माह की उम्र में गर्मी में आ जानी चाहिए। उम्र के साथ-साथ शारीरिक वजन भी महत्वपूर्ण होता है। बछिया एवं पाड़ी को उनकी नस्ल के अनुसार उचित शारीरिक वजन होने के उपरान्त ही गाभिन करवाना चाहिए।

पशु का बार-बार अनियमित रूप से हीट में आना

गाय व भैसें लगभग 21 दिन के अन्तराल पर गर्मी (मद) में आती है और लगभग एक दिन मद में रहती हैं लेकिन इसके विपरीत यदि पशु कम समय या एक दिन से ज्यादा समय तक गर्मी में रहता है तो ऐसे पशु में बच्चे नही ठहरते। ऐसे पशु की जांच पशुचिकित्सक से करवानी चाहिए।

पशुओं में रिपीट ब्रीडिग- अगर पशु नियमित समय या बार-बार मद (गर्मी) में आते हैं लेकिन गर्भ नही ठहरता तो ऐसे पशु रिपीट ब्रीडर (कुराव) कहलाते हैं। ऐसे पशुओ की जांच पशुचिकित्सक से करवानी चाहिए।

जन्मजात बीमारियां एवं बांझपन- कभी-कभी मादा पशुओ के जननांगो में कुछ ऐसे दोष होते हैं जो बांझपन का कारण बनते हैं। ये दोष जन्म से ही मादा पशुओ में होते हैं और वंशानुगत भी होते हैं। इस तरह का बांझपन बछियों में कभी-कभी पाया जाता है। 

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