झारखंड की महिलाओं का आविष्कार, बांस के इस जुगाड़ में छह महीने तक नहीं सड़ेंगे आलू

आलू किसानों के काम की खबर, हर साल हजारों टन सड़ने वाले आलू को सुरक्षित रखने के लिए झारखंड की इन महिला किसानों ने देसी कोल्ड स्टोर बनाया है।

Update: 2018-05-29 12:51 GMT
रांची (झारखंड)। आलू किसानों के काम की खबर, हर साल हजारों टन सड़ने वाले आलू को सुरक्षित रखने के लिए झारखंड की इन महिला किसानों ने देसी कोल्ड स्टोर बनाया है। जिसकी लागत 1500-2000 रुपए आती है और छह महीने तक इसमें आलू सड़ते नहीं हैं। ये आलू पूरी तरह जैविक तरीके से उगाए गये हैं।

देश में कोल्ड स्टोरेज की कमी की वजह से हर साल हजारों टन आलू या तो सड़ जाते हैं या फिर किसान उचित मूल्य न मिलने की वजह से उन्हें सड़क पर फेक देते हैं। इन दोनों समस्याओं से निपटने के लिए झारखंड के इन किसानों ने बांस से 'बम्बू' नाम का देसी कोल्ड स्टोर बनाया है, जिसे किसान अपने घर में रख सकते हैं। एक कोल्ड स्टोर में 9 कुंतल आलू का भंडारण हो जाता है। आलू के अलावा किसान इसमें प्याज और हरी सब्जियां भी रखी जा सकती हैं। कम लागत में कोई भी किसान इस देसी कोल्ड स्टोर को सीखकर आसानी से बना सकता है।  
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झारखंड राज्य के रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर मांडू ब्लॉक के मांडूडीह गाँव की रहने वाली गीता देवी (42 वर्ष) बांस से बने आलू के देसी कोल्ड स्टोर की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं, "इस कोल्ड स्टोर में 9 कुंतल आलू एक साथ रख देते हैं जो छह से सात महीनें तक सड़ते नहीं हैं। हमारे यहां आसपास कोई कोल्ड स्टोर नहीं है, इसलिए ये कोल्ड स्टोर हमारे लिए बड़े काम की चीज है।"
उन्होंने आगे बताया, "इसे कोई भी किसान बड़ी आसानी से सीख सकता है। अगर किसान के पास बांस खुद का है तो इसमें सिर्फ कीलों का खर्चा दो सौ से तीन सौ रुपए ही आएगा। हम जो आलू उगाते हैं वो पूरी तरह से जैविक होते हैं। इसमें हम आलू के अलावा प्याज और हरी सब्जियां भी रख लेते हैं।"
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ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत देश भर में सरकार की महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना चल रही है। इस परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को खेती के आधुनिक तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं जिससे इनकी लागत कम हो सके और आय में इजाफा हो। अबतक महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना के अंतर्गत देश के 22 राज्यों के 196 जिलों में 32.40 लाख महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। जिसमें से गीता देवी एक हैं। 
झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी के अंतर्गत गीता देवी की तरह अबतक 400 से ज्यादा किसान देसी बम्बू बना चुके हैं। वर्ष 2018 तक 5000 देसी कोल्ड स्टोर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। गीता देवी की तरह अब सैकड़ों किसानों को आलू रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। ये देसी कोल्ड स्टोर का न सिर्फ खुद लाभ ले रहे हैं बल्कि गाँव-गाँव जाकर दूसरे किसानों को भी बनाना सिखा रहे हैं।
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ऐसे बनता है आलू का देसी कोल्ड स्टोर (बम्बू)

बांस और कील की मदद से तीन फिट चौड़ाई और छह फिट लम्बाई के तीन खानों का एक ढांचा बनाते हैं। बांस की हर लकड़ी के बीच में एक इंच का गैप रखते हैं जिससे आलू को हवा मिलती रहे। हर बांस की लकड़ी को कील की मदद से एक दूसरी लकड़ी को जोड़ते हैं। इस देसी कोल्ड स्टोर को एक बार बनाने के बाद तीन से चार साल तक इसका उपयोग कर सकते हैं। इसकी लागत बांस सहित 1500 से 2000 रुपए तक आती है।
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