इन पशु सखियों की बदौलत झारखंड में छोटे पशुओं की मौतें हुई कम
सुदूर गांवों में ये पशु सखियाँ न्यूनतम दरों पर पैरावेटनरी की सुविधाएं दे रही हैं। इन पशु सखियों की बदौलत राज्य में बकरियों की मृत्यु दर जो पहले 35 फीसदी होती थी वो घटकर केवल पांच फीसदी बची है।
रांची(झारखंड)। पशु सखी पुतुल तिग्गा हर सुबह अपनी मोटर साइकिल से उन सुदूर और दुर्गम गांवों में छोटे पशुओं की इलाज के लिए निकल पड़ती हैं जहां पशु चिकित्सक आज भी नहीं पहुंच पाते।
पेड़ की छाँव में बैठी पुतुल तिग्गा (28 वर्ष) के चेहरे पर ये बताते हुए आत्मविश्वास और सुकून था, "छोटे पशुओं का इलाज करके जो आमदनी होती है उससे महीने का खर्च हमारा निकल आता है। मेरे दोनों बेटे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं। सबसे अच्छा मुझे तब लगता है जब हम किसी बीमार बकरी का इलाज करके उसे ठीक कर देते हैं।"
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पुतुल तिग्गा अपने आसपास के 5-10 किलोमीटर दूर तक उन गांव में बकरियों का इलाज करने जाती हैं जहाँ आज भी आवागमन चुनौतियों भरा है। वो अपना अनुभव साझा करती हैं, "हमारे यहाँ के लोग हमेशा से बकरी और मुर्गी ही पालते हैं। लेकिन इन पशुओं के इलाज के लिए डॉ कभी गाँव नहीं आते थे। समय से इलाज न मिलने की वजह से इनकी मौतें बहुत होती थीं। इसलिए लोगों ने बकरी और मुर्गी पालन करना कम कर दिया था। लेकिन अब सब ठीक है।"
पुतुल तिग्गा की तरह झारखंड में 5,000 से ज्यादा पशु सखियाँ सुदूर गांवों में न्यूनतम दरों पर पैरावेटनरी की सुविधाएं दे रही हैं। जिससे इनकी मासिक आमदनी 5,000-8,000 हो जाती है। इन पशु सखियों की बदौलत राज्य में बकरियों की मृत्यु दर जो पहले 35 फीसदी थी वो घटकर पांच फीसदी पर आ गई है। जो पशुपालक पहले 5-7 बकरियां पालते थे अब वही 15-20 बकरियां पालने लगे हैं।
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झारखंड ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी सखी मंडल से जुड़ी उन महिलाओं को पशु चिकित्सा का प्रशिक्षण देता है जो बकरी पालती हों और उन्हें छोटे पशुओं की इलाज करने में दिलचस्पी हो। पशु सखी महिलाओं का एक महत्वपूर्ण कैडर है। झारखंड की पशु सखी योजना को अब देश के कई राज्यों में लागू किया जा रहा है। बिहार जैसे राज्य में पशु सखी की ट्रेनिंग का जिम्मा भी झारखंड की इन पशु सखियों को मिला हैं।
इनकी हुनर और मेहनत को देखकर लोग इन्हें अब डॉक्टर दीदी कहने लगे हैं। ब्लॉक स्तरीय ट्रेनिंग के बाद ये महिलाएं बकरियों में पीपीआर, खुरपका, मुंहपका जैसी बीमारियों का इलाज करती हैं। साथ ही उन्हें अच्छे पोषण, रखरखाव बेहतर पशुपालन कैसे करें की जानकारी भी देती हैं। पशु सखी पालको देवी (55 वर्ष) बताती हैं, "हम लगभग 800 बकरियों का इलाज करते हैं। बकरियों को किसी तरह की कोई बीमारी न हो इसके बचाव के लिए मौसम के अनुसार टीके और कृमिनाशक देने होते हैं।" पालको देवी के पास 45 बकरियां हैं और ये सालाना लगभग एक लाख रुपए की बकरे-बकरियां बेच लेती हैं।
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जिस बकरी के इलाज के लिए पहले शहर से आने वाले डॉक्टर 200 रुपए लेते थे अब वही इलाज पशु सखी 5 से 10 रुपए में कर देती हैं। पिछले तीन-चार वर्षों में पशु सखियों की बदौलत न सिर्फ झारखंड के लाखों परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरी है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आजीविका का जरिया भी मिला है। राज्य में 75 फीसदी ग्रामीण बकरी पालन करते हैं। जिनकी देखरेख के लिए राज्य में 5,000 से ज्यादा पशु सखियां हैं।
राज्य स्तरीय पशु सलाहकार लक्ष्मीकांत स्वर्णकार ने बताया, "एक पशु सखी 100-150 परिवारों की 200-300 बकरियों और 500-700 मुर्गियों को बीमारी से पहले टीकाकरण और कृमिनाशक देती है। ये पशु सखी हर पशु पालक का चारा, दाना और पानी स्टैंड बनवाती हैं। इसके आलावा महीने में दिया जाना वाला आहार भी तैयार करवाती हैं।"
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