अगर धान की फसल से अधिक पैदावार चाहिए तो हमेशा ध्यान रखें ये चार सिद्धांत

Update: 2017-07-26 09:17 GMT
धान की खेती।

लखनऊ। जापान में एक किसान हुए हैं मासानोबू फुकूओका जिन्होंने करीब 65 वर्षों तक बिना जुताई किये, बिना कीटनाशक के छिड़काव किये और बिना खरपतवार हटाए खेती की और दूसरों से अधिक अनाज पैदा किया।

मासानोबू फुकूओका पर लिखी गई पुस्तक 'द वन स्ट्रा रेवोल्यूशन' के अनुसार उनके खेत में तरह-तरह के पतंगे और मधुमक्खियां उड़ा करती थीं। जरा पत्तियों को हटाकर देखो तो आपको कीड़े, मकड़ियों, मेंढक, गिरगिट तथा कुछ और छोटे-बड़े प्राणी ठंडी छांव में इधर-उधर भागते नजर आते थे। मिट्टी की सतह के नीचे दीमक और केंचुए छिपे रहते थे। फुकूओका इन्हे अपना दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त समझते थे। इन्हीं की वजह से उनके खेत में दूसरों के मुकाबले अधिक पैदावार होती थी।

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फुकूओका खेती करते समय इन चार सिद्धांतों को हमेशा ध्यान में रखते थे, जिससे खेती की लागत भी कम आती थी और पैदावार भी अच्छी होती थी। आज भी किसान अगर इन सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए खेती करे तो वो भी खेती की लगत को कम कर सकता है और पैदावार बढ़ा सकता है। इसके साथ ही खेत की मिट्टी समय के साथ-साथ ताकतवर होती जाएगी और आज जो हम राशायनिक दवाओं और कीटनाशकों के भरोसे खेती की पैदावार बढ़ाने में लगे हुए हैं उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।

ये हैं चार सिद्धांत जिन्हें ध्यान में रखकर फुकूओका करते थे खेती

पहला सिद्धांत

खेतों में कोई जुताई नहीं करना और न ही मिट्टी पलटना। सदियों से किसानों ने यह सोच रखा है कि फसलें उगाने के लिए हल अनिवार्य है। लेकिन प्राकृतिक कृषि का बुनियादी सिद्धांत खेत को न-जोतना है। धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों और सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।

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दूसरा सिद्धांत

रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करें।

किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न किया जाए।

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तीसरा सिद्धांत

फसल की निराई गुड़ाई न करें।

निंदाई-गुड़ाई न की जाए। न तो हलों से न शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए। फुकूओका अपने खेतों में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए पुआल बिछाने, फसल के बीच-बीच में सफेद मेथी उगाने तथा अस्थाई जैसे तरीके अपनाते थे।

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चौथा सिद्धांत

फुकूओका के अनुसार जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़-छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है। नुकसानदेह कीड़े तथा बीमारियां तो मौजूद हमेशा ही रहती हैं, लेकिन प्रकृति में वे इतनी ज्यादा कभी नहीं हो जाती कि उनके लिए विषाक्त रसायनों का उपयोग किया जाए। बीमारियों तथा कीटों के बारे में समझदारी वाला तरीका यही है कि स्वस्थ पर्यावरण में हष्ट-पुष्ट फसले उगाई जाएं।

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