लखनऊ। नहाय खाय के साथ शुरू हुआ सूर्य उपासना का महापर्व छठ। बिहार और पूर्वांचल समेत देश के कोने-कोने में छठ पूजा की आस्था बढऩे लगी है।
छठ पूजा सुहागिनों का पर्व है जिसे संतान की प्राप्ति और पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाता है। यह कहना है अंजू मोदी का। वे बताती हैं, ''छठ पूजा के चार दिन पहले से ही घर को गोबर से लीपना, सारे बर्तनो को साफ़ करना शुरू हो जाता है। पर्व में उपयोग आने वाली सभी चीजों में ख़ास सफाई की व्यवस्था होती है।"
छठ पर्व का महत्व पहले दिन से ही शुरू जात्ता है। महिलाएं सुबह उठकर नहा धोकर श्रृंगार करती हैं, फिर व्यंजन में कद्दू या लौकी को अरहर या चने की दाल के साथ घर के सभी लोगों को खाने में दिया जाता है।
अगले दिन प्रसाद का एक कार्यक्रम होता है, जिसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बर्तनों में प्रसाद रखा जाता है, जिसमें से लोग बारी-बारी से लोग प्रसाद को थोड़ा-थोड़ा लेकर कहते हैं, इसमें यह भी कहा जाता है की जो व्यक्ति प्रसाद को पाने नहीं जा पता है उसके लिए अलग से एक बरतन में प्रसाद उसके घर भेजा जाता है। यह प्रसाद अरवा चावल और गुड़ से बनता है।
शारदा देवी बताती हैं, ''इस कार्यक्रम के बाद एक मौन पूजा होती है जिसे घर का दरवाजा बंद करके किया जाता है इस दौरान घर का कोई भी सदस्य इस पूजा में सम्मिलित नहीं होता है।"
अगली सुबह से पूजा के उपयोग में आने वाले प्रसाद को बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जिसमे ठेकुआ और बहरोरी बनाया जाता है। ठीक शाम को लगभग चार बजे महिलाएं सिर पर डलिया रख कर नदी पर पूजा करने जाती है।
शारदा आगे बताती हैं, ''नदी किनारे पुरुष या महिला भगवान से वर मांगती हैं।" पहले शाम की पूजा डूबते सूरज की जाती है। अगले दिन सूरज उगने से पहले ही महिलाएं नहा धोकर अपने परिवार के साथ सिर पर डलिया लेकर नदी पर जाती है। उसके जमीन की सफाई की जाती है इसके बाद महिलाएं सूरज को अर्घ देती हैं, साथ ही परिवार के अन्य सदस्य उस महिला द्वारा दिए गए दूध के लोटे से सूर्य भगवन को अर्घ देते है। इसके बाद सभी को प्रसाद वितरण किया जाता है।
रिपोर्टर - विनय गुप्ता