मधुबनी रेलवे स्टेशन को सजाने में जुटे हैं 150 कलाकार

Update: 2018-02-02 18:53 GMT
मधुबनी रेलवे स्टेशन की दीवारें खूबसूरत चटख रंगों से सजी हैं

अभिजीत कुमार

अगर आप शहर की सबसे ज्यादा गंदी जगहों की लिस्ट बनाएं तो यकीनन रेलवे स्टेशन टॉप 5 जगहों में से एक होगा। रेलवे स्टेशन पर आपको हर जगह गंदगी दिखाई देगी, खासकर दीवारों पर आपको हर किस्म की मैल मिल जाएगी। लेकिन अगर आप पाएं कि किसी स्टेशन की दीवारें खूबसूरत चटख रंगों के चित्रों से सजी हैं तो बहुत मुमकिन है आप खुद को चिकोटी काटकर देखेंगे कि कहीं सपना तो नहीं देख रहे। बिहार के मधुबनी रेलवे स्टेशन पर भी आपको कुछ ऐसा ही लगेगा।

यहां आपको ढेरों कलाकारों की भीड़ मिलेगी जो इस स्टेशन की दीवारों को मधुबनी पेंटिंग स्टाइल चित्रकारी से सजा रही है। दरअसल यह पहल है पूर्व मध्य रेलवे की जो मधुबनी स्टेशन को देश का सबसे सुंदर रेलवे स्टेशन बनाने के लिए प्रयासरत है। इस स्टेशन पर 10 हजार वर्ग फीट में पेंटिंग बन चुकी है, 5 हजार वर्ग फीट को सजाने के लिए 150 से ज्यादा स्थानीय कलाकार जुटे हुए हैं। ये कलाकार अपनी इच्छा से मधुबनी रेलवे स्टेशन को सजाने-संवारने के काम में दिन-रात एक किए हुए हैं।

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अकेले मधुबनी ही नहीं बल्कि क्रमवार रुप से जयनगर-दरभंगा रेल खंड के सभी स्टेशनों को मधुबनी पेंटिंग से संवारने का लक्ष्य है। मधुबनी स्टेशन की इस अनोखी साज-संवार की खबर सुनने के बाद देश के दूसरे हिस्सों में बने रेलवे स्टेशनों को भी स्थानीय कला से सजाने का काम शुरु हो गया है।

मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है। यह चित्रकला शैली बिहार के मिथिलांचल में प्रचलित है। इसमें बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ इलाके भी आते हैं। शुरुआत में यह कला रंगोली के तौर पर शुरु हुई, धीरे-धीरे यह आधुनिक समय में कपड़ों, दीवारों और कागज पर देखने को मिलने लगी। ऐसी किंवदंती है कि इसे राजा जनक ने राम-सीता विवाह के समय महिला कलाकारों से बनवाया था। हालांकि आज महिलाओं के साथ पुरुष चित्रकार भी मधुबनी पेंटिंग बना रहे हैं।

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इस चित्रकला में देवी-देवताओं के साथ सूरज, चांद, तुलसी, पीपल के वृक्ष वगैरह बनाए जाते हैं। इसमें चटख रंगों का इस्तेमाल होता है। एक समय में इन रंगों की खूबी यह होती थी कि पीले, गुलाबी, हरे रंग हल्दी, केले के पत्तों और पीपल की छाल वगैरह से बनाए जाते थे। मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होती है – दीवार पर बनाई जाने वाली भित्ति चित्रकला और दरवाजे के बाहर बनाई जाने वाली अल्पना। इसकी पांच स्टाइल हैं : भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना और कोहबर। पेंटिंग करने के लिए ब्रश की जगह माचिस की तीली या बांस की कलम का इस्तेमाल होता है। रंग छूटे नहीं इसके लिए पारंपरिक रुप से इसमें बबूल के पेड की गोंद मिलाई जाती थी।

मधुबनी पेंटिंग की ख्याति धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैली। एक समय वह आया जब इसे बौद्धिक संपदा अधिकार नियम के तहत जीआई स्टेटस मिला। मतलब यह माना गया कि बिहार के मधुबनी इलाके में पाई जाने वाली यह चित्रकला ही असली मधुबनी पेंटिंग है। यहीं से इसका जन्म हुआ है। ठीक उसी तरह जैसे पश्चिम बंगाल को बंगाली रसगुल्ले का जीआई स्टेटस मिला है।

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आधुनिक समय में मधुबनी चित्रकला को पहचान दिलाई बिहार की सीता देवी ने। इन्हें 1969 में बिहार सरकार ने सम्मानित किया था। 1981 में इन्हें राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया, 2006 में इन्हें शिल्प गुरु सम्मान मिला। इनके अलावा जगदंबा देवी, गंगा देवी, महासुंदरी देवी समेत कई कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

अब देखना यह है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर के जरिए रेलवे स्टेशन को सजाने और उसे बनाए रखने के काम में जनता कितना योगदान देती है।

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