वाह ! 29 साल की उम्र में हजारों एड्स पीड़ित परिवारों का सहारा बन युवक ने कायम की मिसाल

Update: 2017-06-14 19:00 GMT
महेश जाघव फोटो- महेश फाउंडेशन फेसबुक पेज 

लखनऊ। जहां एक तरफ आज भी एड्स पीड़ित व्यक्ति को समाज नकार देता है, उसके साथ उठाना-बैठना पसंद नहीं करता है। कभी-कभी तो अपने परिवार वाले भी छोड़ देते है। वहीं कर्नाटक के महेश जाघव (29 वर्ष) एड्स पीड़ित लोगों के सहारा बने हुए हैं।

महेश कहते हैं, ‘ 2009 की एक दोपहर मुझे बेलगाँव के सरकारी अस्पताल में एक रोता हुआ लड़का मिला। वो भूख से रो रहा था। उसके पिता की मौत एड्स से हो चुकी थी और उसकी माँ और वो दोनों को एड्स था। उस दिन के बाद मैं लड़के से मिलता रहा। एक साल बाद उसकी माँ भी मर गयी। माँ की मौत के बाद लड़के को अपने घर लाया। इसके साथ ही एड्स पीड़ित बच्चों और लोगों के लिए काम शुरू कर दिया।’

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कर्नाटक के बेलगाँव जिला के रहने वाले महेश जाघव आज उन एड्स पीड़ित बच्चों और महिलाओं का सहारा बने है जिसे उनके अपनों ने बेसहारा छोड़ दिया है। महेश जब इक्कीस साल के थे तब से ही महेश फाउंडेशन के जरिए लोगों की सेवा कर रहे हैं। एड्स पीड़ित बच्चों को हॉस्टल में रहने और पढ़ने के इंतजाम के कर रहे हैं तो महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए उधोग चला रहे हैं।

महेश फाउंडेशन के हॉस्टल में एड्स पीड़ित लड़कियाँ फोटो- विक्की रॉय 

महेश बताते हैं, ‘महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा पर स्थित बेलगाँव जिला में लगभग 32000 हज़ार लोग एचाईवी से पीड़ित हैं। जिसमें से 20 हज़ार महिलाएं हैं। ये सभी महिलाएं विधवा हैं। इनके पति की मौत एड्स के ही कारण हो चुकी है। यहाँ 3500 बच्चों को एचाईवी है। ज्यादा संख्या में एड्स होने का कारण सीमा का इलाका होना है।’

जब काम शुरू किया तब लोग

2009 में जब से एड्स पीड़ित लड़के से मिला उसके बाद से उनके लिए काम करने का मन हुआ। तब मैं सिर्फ 21 साल का था और ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था। 2010 में मैंने अपना फाउंडेशन शुरू किया। लोग मुझपर अलग-अलग तरह के कमेन्ट कर रहे थे। यहां अभी भी लोग एड्स होने का कारण पिछले जन्म में किए ‘गलत काम’ को मानते हैं। लोग एड्स पीड़ित को स्वीकार नहीं करते है। लोगों ने कमेन्ट तो किया लेकिन मैंने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और एड्स पीड़ित लोगों के लिए काम करना जारी रखा।

महेश फाउंडेशन फोटो- विक्की रॉय 

सरकार से नहीं लेता मदद

महेश फाउंडेशन को चलाते हुए सात साल हो गए लेकिन सरकार से हमने कोई मदद नहीं लिया। हमारे होस्टल में 40 बच्चे रहते हैं। उनके पढ़ने, रहने और खाने सब कुछ हम लोग ही करते है। इसके अलावा जिले के 3500 एड्स पीड़ित बच्चों में से 2200 बच्चों की शिक्षा का ध्यान रखते है। पहले एड्स पीड़ित बच्चों को यहां के स्कूल एडमिशन नहीं देते थे। स्कूल का कहना था कि इन बच्चों से बाकि बच्चों को भी एड्स होने की संभवना हो सकती है। 2012 में एक बच्चे को एग्जाम के समय ही स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद हमने आन्दोलन शुरू किया। मीडिया में मुद्दा उठा तब से स्कूल में एडमिशन होने लगा।

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एड्स पीड़ित विधवा महिलाओं के साथ महेश

एड्स पीड़ित विधवा महिलाओं के लिए ‘महिला उधोग’ की स्थापना

महेश बताते हैं, ‘यहाँ लगभग 20000 हज़ार एड्स से पीड़ित महिलाएं हैं, जो विधवा हैं। ज्यादा विधवा महिलाओं के पति की मौत एड्स से ही हुई है। परिवार वाले महिला को ही पति की मौत का दोषी मानते है। इन महिलाओं को घर से निकाल दिया जाता है। घर से निकाले जाने के बाद ये महिलाएं अपने मायके जाती हैं। मायके में भी इनके साथ गलत व्यवहार होता है तो फिर ये महिलाएं अकेले रहने लगती है। अकेले रहने वाली महिलाओं का शोषण होता है। इसको ध्यान में रखते हुए हमें महिला उधोग की शुरुआत किया है। यहां महिलाएं बैग बनती हैं। अभी इसमें सिर्फ 22 महिलाएं काम कर रही हैं। आने वाले समय में इसमें ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को काम का मौका दिया जाएगा।

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फोटो- महेश फाउंडेशन फेसबुक पेज 

कौन करता है मदद

हम फाउंडेशन चलाने के लिए सरकार से मदद नहीं लेते है। मेरे साथ पढ़ चुके और यहां के लगभग 3500 युवा अपने पॉकेट के खर्चे से पैसे बचाकर हमें देते हैं। यहां 70 लोग काम करते हैं।

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