गाँव कनेक्शन की खबर के बाद झारखंड में नक्सल प्रभावित सारंडा के जंगलों में पहली बार पहुंची 'सरकार', एनजीओ भी आए आगे

Update: 2020-08-25 15:16 GMT

आदिवासी गांव की मुक्ता जंगल से लकड़ियां काटकर सिर पर रखकर उन्हें पहाड़ों से 16 किलोमीटर नीचे बाजार ले जाती थीं, हफ्ते में उन्हें दो बार मुश्किल से 50-60 रुपए मिलते थे, इन्हीं पैसों से पूरे हफ्ते परिवार का गुजारा चलना होता था। इस जंगल में मुक्ता जैसे सैकड़ों लोग हैं, जिनकी मासिक कमाई आपके घर के डीटीएच या मोबाइल के इंटरर्नेट पैक से काफी कम है। जंगल में पहाड़ों के बीच रहने वाले ये ज्यादातर आदिवासी भात (चावल) और नमक खाकर जिंदा हैं, दाल और सब्जी इनके यहां पर्व त्योहार में समझिए बनती है। सरकारी योजनाओं और अधिकारियों से इनका दूर तक कोई वस्ता नहीं था।

लेकिन 24 तारीख की सुबह इन आदिवासियों के लिए उम्मीद की रोशनी बन कर आई थी, दशकों बाद ऐसा हुआ था एक दो अधिकारी नहीं झारखंड में चाईबासा जिले का पूरा प्रशासनिक अमला इन गांवों में पहुंच गया था, ग्रामीणों का हैरान होना लाजिमी भी था, जहां एक कर्मचारी तक न पहुंचता हो वहां कलेक्टर से लेकर दूसरे तमाम विभागों के मुखिया खुद पहुंच गए थे। प्रशासनिक अधिकारी यहां एक खबर पर मुख्यमंत्री के आदेश के बाद पहुंचे थे। 

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गाँव कनेक्शन में 21 अगस्त को छपी थी ये खबर- 

गांव कनेक्शन ने 21 अगस्त 2020 को सारंडा के जंगलों में रहने वाले इन ग्रामीणों पर खबर प्रकाशित की थी। खबर का शीर्षक था "झारखंड: सारंडा जंगल की ये गर्भवती महिलाएं नमक, भात खाकर पहाड़ चढ़ती हैं, कुल्हाड़ी चलाती हैं" खबर प्रकाशित होने के बाद न सिर्फ सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हुई बल्कि 22 अगस्त को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खबर पर संज्ञान लेते हुए चाईबासा के जिलाधिकारी को इन गांवों में तुरंत सरकारी राशन, दवाएं और जरुरी चीजें पहुंचाने का आदेश दिया था। उन्होंने लिखा था कि यह स्थिति बर्दाश्त योग्य नहीं है।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एक्टिव हुए जिला प्रशासन ने आनन फानन में तैयारियां शुरु कर दी थीं। सीएम को जवाब देते हुए डीसी अरवा राजकमल ने कहा कि चारों वनग्राम नुइयांगरा, बोरदाबाटी, होंजोरदिरी, रांगरिंग में 72 घंटे के अंदर स्वास्थ्य कैंप एवं सहायता शिविर लगाउंगा. छूटे हुए उन सभी गर्भवती माताओं का निबंधन होगा, आवश्यक खाद्यान्न पहुंचाऊंगा। साथ ही इस क्षेत्र की महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु विशेष योजना बनाते हुए संबंधित जानकारी से आपको अवगत कराऊंगा।



ठीक 72 घंटे बाद पूरा सरकारी अमला पहुंच गया। जंगली रास्तों में पैदल चल पहुंचे कमिश्नर, डीआईजी, डीसी, एसपी अधिकारियों ने पहले तो उन गांवों में पहुंचने का दर्द समझा। जिन रास्तों से वो महिलाएं सालों से पैदल चलती आ रही है, उन्हीं रास्तों से सिंहभूम प्रमंडल के कमिश्नर डॉ मनीष रंजन, डीआईजी राजीव रंजन सिंह, चाईबासा जिलाधिकारी अरवा राजकमल, एसपी इंद्रजीत महथा, डीएफओ रजनीश कुमार, प्रशिक्षु आईएफएस प्रजेश जेना, एसडीएम स्मृता कुमारी, एसडीपीओ डॉ हीरालाल रवि, अंचलाधिकारी सुनील चन्द्रा, बीडीओ समरेश प्रसाद भंडारी, मनोहरपुर के बीडीओ जितेन्द्र कुमार सहित बड़ी संख्या में पुलिस बल नुईयागड़ा गांव पहुंचे। ग्रामीणों से बात की. उनकी जरूरतों को समझा। सिलसिलेवार ढ़ंग के विकास का खाका तैयार किया गया।

पास के गांव रांगरिंग में मेडिकल कैंप लगाया गया। यहां गर्भवती महिलाओं, बच्चों की जांच की गई। जरूरत की दवाई और चिकित्सिय सलाह मुहैया कराई गई। इसके साथ ही सभी को राशन किट उपलब्ध कराया गया। इस किट में चावल, दाल, नमक सहित अन्य जरूरी सामान थे।

ग्रामीणों ने अधिकारी से कहा कि किसी तरह सड़क बनवा दीजिए। बच्चों की पढ़ाई के लिए चार गावों के बीच में कहीं स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र बनवा दीजिए। सभी अधिकारियों ने गौर से उनकी बातों को सुना. प्रमंडलीय आयुक्त डॉ मनीष रंजन ने ग्रामीणों से कहा कि आनेवाले समय में बीडीओ इन गावों में समय-समय पर पहुंचकर स्थिति की जानकारी लेते रहेंगे. साथ ही अगर कभी किसी काम से से ग्रामीण चाईबासा आते हैं तो वह सीधे उनके ऑफिस आ सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में यहां भी डॉक्टर, एएनएम, राशन, पीने का साफ पानी सहित स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। जिला प्रशासन ने यहां आकर ग्रामीणों की समस्याओं को जान लिया है। धीरे-धीरे जो भी समस्याएं हैं उनको दूर करेंगे।


चार ही नहीं, सारंडा के 40 गावों के विकास का खाका हुआ तैयार

डीसी अरवा राजकमल ने कहा कि कई सालों के बाद प्रशासन यहां पहुंचा है। विशेषकर वन ग्राम होने के कारण राजस्व ग्राम के रूप में इसकी मान्यता नहीं है। वन ग्राम होने के कारण कई विकास योजनाओं से दूर रह गया है। उनके मुताबिक 1000 की आबादी पर एक आंगनबाड़ी बनाने का प्रावधान है, जो कि कम जनसंख्या होने के कारण नहीं बनाया जा सका। ऐसे में क्षेत्र के ग्रामीणों को विकास योजनाओं का लाभ दिलवाने के लिए वन ग्रामों को एक संकुल के रूप में विकसित करेंगे।

उन्होंने कहा कि, चार-पांच वन ग्रामों के मध्य एक ऐसे ग्राम को चयनित किया जाएगा। जहां वन अधिकार पट्टा पूर्व में दिया गया हो, वैसी जगह पर सामुदायिक भवन का निर्माण किया जाएगा। इसमें आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल अथवा कोई ब्रिज कोर्स का संचालन किया जाएगा तथा संपूर्ण तंत्र को और मजबूत करने का कार्य किया जाएगा।


केवल इसी गांव में नहीं, बल्कि पूरे सारंडा वन क्षेत्र में करीब लगभग 30 से 40 वन ग्राम हैं, जो कि छोटे-छोटे टोला के रूप में हैं, आज के दिन में लोग वहां रह रहे हैं उनको मूलभूत सुविधाएं पहुंचाए जाने की आवश्यकता है। सामुदायिक भवन बना कर सामूहिक परिसंपत्ति का सृजन करेंगे, ताकि यहां के लोगों को भी स्वास्थ्य-शिक्षा संबंधित मूलभूत सुविधाएं सरकार और प्रशासन द्वारा उपलब्ध हो सकें।

ग्रामीण मुंडा जुरेन्द्र मारला व अन्य ने बताया कि हमारे गांव में सड़क, स्कूल, पेयजल, स्वास्थ्य, रोजगार आदि की कोई सुविधा नहीं है। गांव को आज तक सरकारी पहचान तक नहीं मिल पायी है। एक भी ग्रामीण को वनाधिकार का पट्टा नहीं मिला है। इतने अधिकारी गांव में एक साथ आये हैं जिससे ग्रामीणों में भरोसा जगी है कि अब हमारे गांव की सरकारी पहचान, पट्टा मिलेगी और विकास योजनाएं भी पहुंचेगी।

अधिकारियों ने गांव से लौटने के बाद पूरे मसले पर बैठक भी की। इसके बाद बताया कि सारंडा के चालीस गांवों तक सरकार की तमाम विकास योजनाएं कैसे पहुंचे, इसके लिए प्रत्येक माह बैठक की जाएगी। जिसमें योजनाओं को मुस्तैदी व गुणवता के साथ कैसे पहुंचा पायें, इस पर बात की जाएगी। साथ ही सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं को ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचाने के लिये फिल्ड औफिसर्स व सहयोगी कर्मचारियों को चुस्त दुरुस्त भी करने और उसे क्लोज मौनिटरिंग से लागू करने की बात कही। ताकि लोगों को सरकार के प्रति भरोसा बढे़ एंव उनका जीवन स्तर ऊंचा उठ सके।


पहाड़ चढ़ने के दौरान जगन्नाथपुर की एसडीएम स्मृता कुमारी की तबियत अचानक बिगड़ गई। जिसके बाद सीआरपीएफ की टीम ने उन्हें ओआरएस का घोल पिलाकर जैसे-तैसे मुख्य सड़क तक लाया। 

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