किसान वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किसानों की जिंदगी बदलने वाला एक कृषि पत्रकार

डॉ. मधुप कहते हैं, "देश भर में कृषि पत्रकार और पत्रकारिता की हालत बेहद नाज़ुक है। जो अखबार-पत्रिकाएं निकल रही हैं, मैं उनमें से अधिकांश से संतुष्ट नहीं हूं।

Update: 2018-09-18 05:25 GMT
पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से वरिष्ठ कृषि पत्रकार डॉ. महेंद्र मधुप को मिला कृषि पत्रकारिता के क्षेत्र में सम्मान।
मोटाराम शर्मा (सीकर) कहते हैं, बाढ़ में मेरा सबकुछ बह गया था पर डॉ. मधुुप के लेख से 5000 फोन कॉल आए, ज़िंदगी बदल गई। धर्मवीर कंबोज (हरियाणा) जब पहली बार जयपुर में मिले, रिक्शा चलाते थे। आज करोड़ों रुपए की प्रोसेसिंग मशीनें बेच चुके हैं।

कृषि प्रधान देश भारत में खेती करने वाले अन्नदाता किसानों की स्थिति हमेशा से हाशिये पर रही है। मगर देश के किसानों को इन तकलीफों से निजात दिलवाने के लिए कृषि पत्रकार डॉ. महेंद्र मधुप ने कमर कसी और अपने उद्देश्य में कामयाब भी हुए। वे दिन रात किसान वैज्ञानिकों की सेवा में जुटे हैं।

राजस्थान के जोधपुर में 2 मार्च 1947 को जन्मे डॉ. महेंद्र मधुप से जुड़े देश भर के कई किसान वैज्ञानिक आज जीरो से हीरो गए हैं, कृषि से जुड़ा करोड़ों रुपयों का कारोबार करते हैं। इतना ही नहीं, ये सभी किसान वैज्ञानिक गुरु दक्षिणा के तौर पर खुद की ऊर्जा से देश के अन्य किसानों को भी जीवन जीने और खेती से जुड़े रहकर नवाचार करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। वरिष्ठ कृषि पत्रकार और ‛मिशन फार्मर साइंटिस्ट'के प्रणेता डॉ. महेंद्र मधुप से जयपुर स्थित उनके आवास पर लम्बी वार्ता हुई, पेश हैं प्रमुख अंश:

पिता और चाचा की वजह से बनें कलमकार

डॉ. महेंंद्र मधुप

बातचीत की शुरुआत में डॉ. मधुप बताते हैं, "पिता ज्ञानमल जी सरकारी नौकरी में थे। राजस्थान विधानसभा की सेवा में चीफ एडीटर और समिति अधिकारी रहे। लेखन में गहरी रुचि रही, उन्होंने खूब लिखा और दो पुस्तकें भी छपीं। चाचा प्रकाश जैन अजमेर से ‛लहर' मासिक पत्रिका निकालते थे, जिसके कारण अजमेर को पूरे देश में पहचाना जाता था। इन दोनों के लिखने-पढ़ने के शौक के चलते ही लेखन में रुचि जाग्रत हुई। बारह साल की उम्र में स्कूल में गुरुजी कृष्ण कुमार सौरभ भारती से संबंद्ध ‛दैनिक अधिकार' में लिखना शुरू किया।" आगे बताया, "आकाशवाणी में पहली सजीव वार्ता बच्चों की कहानी के रूप में 1959 में ‛मुकुल' में प्रसारित हुई। मानदेय स्वरूप 5 रुपये मिले, उन 5 रुपयों की खुशी, आज के लाखों रुपयों से बढ़कर है।"

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डॉ. मधुप बताते हैं, "इसी तरह विश्वविद्यालय में भी कई पत्रिकाओं का संपादन किया। राष्ट्रदूत, राजस्थान पत्रिका, लोकवाणी और नियमित मंडी आदि पत्रिकाओं में निरंतर लिखा। इस बीच दूरदर्शन से जुड़ने का मौका मिला और चौपाल कार्यक्रम की एंकरिंग करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दूरदर्शन, टीवी चैनलों और आकाशवाणी के करीब 2500 से अधिक कार्यक्रमों में मैं एंकर रहा।"

किसानों की सफलता की कहानियों का दौर

डॉ. मधुप बताते हैं, "साल 2005 में महाराष्ट्र के ख्यातिप्राप्त कृषि विपणन विशेषज्ञ डॉ. बीडी पवार जयपुर आए। ‛शरद कृषि' नामक प्रयोधर्मी कृषि पत्रिका की अवधारणा पुणे में हुई। ‛सेंटर फॉर इंटरनेशनल ट्रेड इन एग्रीकल्चर एंड एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज'(सिटा) ने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर जयपुर में मुझे इसके हिंदी संस्करण का मानद संपादक बनाने की इजाज़त चाही, इज़ाज़त मिली। मार्च 2005 से हिंदी संस्करण का मानद संपादक बना, जो मई तक जारी रहा। जून से जनवरी 2017 तक हिंदी संस्करण का संपादक रहा।"

प्रकाशित पुस्तकें।

डॉ. महेंद्र ने बताया, "इस पत्रिका ने भू-मण्डलीकृत कृषि व्यवस्था और दूसरी हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश में बदलती कृषि प्रबंधन व्यवस्था की नवीनतम जानकारी और संभावनाओं के आकलन लिए इसका बेसब्री से इंतजार किया जाता था। ‛शरद कृषि' में ‛खेतों के वैज्ञानिक', ‛खेतों के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल', ‛कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' जैसे कॉलमों में किसान वैज्ञानिकों की सफलताओं पर लिखी कहानियों की लंबी सीरीज छपी। किसानों के पते, ईमेल, मोबाइल नंबर आदि भी छापें, ताकि उनकी पहचान देशभर में कायम हो।"

‛मिशन फार्मर साइंटिस्ट' की शुरुआत

डॉ. मधुप आगे बताते हैं, "जनवरी 2017 में ‛शरद कृषि' का आखिरी अंक निकालकर नौकरी छोड़ दी और ‛मिशन फार्मर साइंटिस्ट' के जरिए नई पारी खेलने की तैयारी हुई। हरियाणा में किसान वैज्ञानिक ईश्वरसिंह कुंडू के घर पर मेरे अग्रणी साथी और युवा कृषि पत्रकार मोईनुद्दीन चिश्ती के साथ मिलकर रूपरेखा तैयार की। सोचा कि क़िताबों के माध्यम से इन किसान वैज्ञानिकों के कार्यों को पूरी दुनिया से अवगत करवाएंगे।"

किसान वैज्ञानिकों के कारनामों पर लिखीं तीन किताबें...

डॉ. मधुप बताते हैं,"नवाचारी किसानों की कहानियों पर लिखी पुस्तकें ‛खेतों के वैज्ञानिक' (मार्च 2017), ‛वैज्ञानिक किसान' (जुलाई 2017) और ‛प्रयोधर्मी किसान' (फरवरी 2018) को मित्र यशवंत व्यास ने अंतरा इन्फोमीडिया पब्लिकेशन के तहत प्रकाशित किया। इससे पहले दुनिया की किसी भी भाषा में किसान वैज्ञानिकों के जीवन, संघर्ष और शोध पर एक भी पुस्तक नहीं थी।" आगे कहा, "किसान वैज्ञानिकों के साथ निभाए उम्र भर के स्नेह का ही परिणाम था कि लगभग 80% पुस्तकें लोकार्पण के दिन ही किसान वैज्ञानिकों ने खरीद ली और अपने मिलने जुलने वालों को तोहफे में देने का सिलसिला शुरू किया।"

हिंदुस्तान में पैसे की कोई कमी नहीं

डॉ. मधुप ने आगे कहा, "किसानों के लिए लोन, सब्सिडी आदि की सुविधाओं के लिए लड़ने की कोई जरूरत नहीं। कहीं भी कोई किसान अच्छा काम कर रहा है तो उसके बारे में हमें बताइये। अगर उसे 10 लोग जानते हैं तो 10 लाख लोग जानने लगें, इसका जिम्मा हमारा। अगर उसकी पहचान व्यापक हो गई तो हिंदुस्तान में पैसे की तो कोई कमी है ही नहीं। लोगबाग उसके शोध पर इतना पैसा लगा देंगे कि उसकी जिंदगी ही बदल जाए।"Full View

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देखते-देखते बदली हैं ज़िंदगियां


तीनों किताबों के 52 किसानों में से अनेक किसानों का मत है कि हमारी आर्थिक सुदृढ़ता में आपका योगदान अमूल्य है। मोटाराम शर्मा (सीकर) कहते हैं, बाढ़ में मेरा सबकुछ बह गया था पर ‛अहा! ज़िंदगी' में छपे लेख से 5000 फोन कॉल आए, ज़िंदगी बदल गई। धर्मवीर कंबोज (हरियाणा) जब पहली बार जयपुर में मिले, रिक्शा चलाते थे। आज करोड़ों रुपए की प्रोसेसिंग मशीनें बेच चुके हैं।

देश में कृषि पत्रकारिता की स्थिति संतोषजनक नहीं

डॉ. मधुप कहते हैं, "देश भर में कृषि पत्रकार और पत्रकारिता की हालत बेहद नाज़ुक है। जो अखबार-पत्रिकाएं निकल रही हैं, मैं उनमें से अधिकांश से संतुष्ट नहीं हूं। आत्मा योजनाओं का लिटरेचर छापा जाता है। व्यावसायिक कंपनियों के विज्ञापन छपते हैं। ऐसा करने से आप इन कंपनियों के रक्षा कवच बन जाते हैं।" आगे कहा, "‛शरद कृषि' ने 2005 से 2017 तक किसी भी खाद, बीज कंपनी का कोई विज्ञापन नहीं छापा। अब बदलाव आ रहा है। कुछ अखबार-पत्रिकाएं अन्नदाता की सफलता की कहानियों को छापने में रुचि दिखा रहे हैं। ‛फार्म एन फ़ूड', ‛कृषि गोल्डलाइन', ‛कृषि परिवर्तन' और ‛गाँव कनेक्शन' अच्छा कार्य कर रहे हैं। दूरदर्शन के ‛कृषि दर्शन' और ‛किसान चैनल' सहित ईटीवी के ‛अन्नदाता' कार्यक्रमों ने भी क्रांति ला दी है।"

एग्रीकल्चर मीडिया की जिम्मेवारी...

डॉ. मधुप कहते हैं, "आपके अखबार-पत्रिका को सीधे किसानों तक पहुंचाने की जिम्मेवारी आपकी है। आपने कृषि पत्रकारिता करली, विज्ञापन भी ले लिए। सरकार से मिलकर सर्कुलेशन भी बढ़ा लिया, बीज निर्माताओं-खाद कंपनियों से पैसा भी ले लिया, समृद्ध कोठी बन गई- पर जिस किसान की ज़िंदगी बदलनी थी- उस तक तक तो वह पहुंचा ही नहीं?" आगे बताया, "हमने 2017 और 2018 में विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित किसान वैज्ञानिकों के 3 राष्ट्रीय मंथन कार्यक्रमों में किसी भी मंत्री को नहीं बुलाया, व्यवस्था के नाम पर किसी भी किसान से एक पैसे का भी सहयोग नहीं लिया। किसानों के कामों को निरंतर विस्तार दिया। दूरदर्शन द्वारा लिए गए मेरे साक्षात्कार में उन्होंने माना कि हमने खेतों के वैज्ञानिकों पर जो कहानियां दिखाईं, उनका आधार हमारी 3 पुस्तकें थीं।"

गाँवों में प्रोसेसिंग मशीनें लगाए सरकार

डॉ. मधुप सरकार को सुझाव देते हैं, "सरकार को सुझाव है कि हर ग्राम पंचायत में किसानों को फसलों के उचित दाम दिलवाने के लिए प्रोसेसिंग मशीनें लगाए। पैदावार तो किसान ने कर ली। अब तिल उपजता है तो घाणी की मशीन लगा दे। टमाटर, आलू या सरसों होता है तो इनकी प्रोसेसिंग मशीनें लगवा दे।" आगे कहा, "सीएफटीआरआई, मैसूर ने सस्ती मशीनें बनाई हैं। गाँव के युवाओं को ट्रेनिंग दिलवाकर प्रोसेसिंग, पैकेजिंग सिखाए। स्थानीय ब्रांड बनाए। आसपास के गाँवों-कस्बों में बेचे। बाजार में जो बोतल 150 की है, उसे 50 में दे।" डॉ. मधुप ने कहा, "चाहें तो क्या कुछ नहीं हो सकता? पहले गाँवों से दूध, शहद, घी, घाणी का तेल आता था। लोगबाग विश्वास से लेते थे। जब आपके उत्पाद पर भरोसा पैदा हो जाएगा, 50 की जगह 70 भी मिलेंगे। पहले जिस किसान को 10 रुपये मिल रहे थे, 10 और 70 में कितना बड़ा अंतर है? ख़र्च निकाल कर 50 रुपये भी बचे तो मुनाफ़ा तो हुआ न!"

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मिले कई सम्मान


♦ केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय हिंदी संस्थान का विज्ञान और तकनीकी साहित्य के विकास के लिये दिए जाने वाले ‛आत्माराम पुरस्कार' (2005) से सम्मानित। दिसंबर 2007 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में यह सम्मान प्रदान किया।

 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली द्वारा दिये जाने वाले देश के सर्वोच्च कृषि पत्रकारिता सम्मान (प्रिंट मीडिया) ‛चौधरी चरणसिंह पुरस्कार' को पाने वाले पहले राजस्थानी हैं। 2007 का यह पुरस्कार जुलाई 2008 में प्रदान किया गया।

 कृषि विपणन सुझाव पुरस्कार, कोसांब अवार्ड, अशोक माथुर स्मृति मीडिया सम्मान, जनसंपर्क कर्मी के विशिष्ट प्रोत्साहन पुरस्कार- माणक अलंकरण, 5 बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड फ़ॉर एक्सीलेंस इन एग्रीकल्चरल जर्नलिज्म के लिए एआरए डिजिटल मीडिया, मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी जोधपुर, पैसिफिक यूनिवर्सिटी उदयपुर, राजुवास बीकानेर और जनहित मंच द्वारा सम्मानित। 

डॉ. महेंद्र मधुप का मोबाइल- 9414265720 ईमेल-madhup.mahendra@gmail.com

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