आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, डॉक्टर, नर्स या फिर पुलिसकर्मी, कोविड वैक्सीन सबसे पहले किसे लगना चाहिए?

दुनियाभर में कोरोना से अब तक 17 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अब सरकार दावा कर रही है कि जनवरी 2021 में कोविड-19 वैक्सीन लगनी शुरु हो जायेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार को ये वैक्सीन लगाने के लिए किसे प्राथमिकता देनी चाहिए? दिसंबर 2020 में गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" ने एक सर्वे किया है। पढ़िए इस सवाल के जवाब में क्या है लोगों की राय?

Update: 2020-12-29 06:00 GMT
आशा वर्कर्स, एएनएम, आंगनवाड़ी को 35% लोगों ने वैक्सीन लगने की पहले प्राथमिकता दी.

कोविड-19 के संक्रमण से दुनियाभर में अब तक 17 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस महामारी से विश्व भर में 78.7 मिलियन लोग संक्रमित हो चुके हैं। राहत भरी खबर अभी यह है कि सरकार ऐसा दावा कर रही है कि जनवरी 2021 में कोविड वैक्सीन लगनी शुरू हो जायेगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार को वैक्सीन लगाने के लिए सबसे पहले किसे प्राथमिकता देनी चाहिए?

गाँव कनेक्शन सर्वे में शामिल 34.8% लोगों ने कहा है कि फ्रंटलाइन वर्कर्स (आशा, आंगनवाड़ी आदि) को कोरोना वैक्सीन लगाने के लिए सरकार को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए। वहीं 43.5% लोगों ने कहा कि ये वैक्सीन डॉक्टर और नर्स को पहले लगनी चाहिए। 34.7% ने कहा कि सफाई कर्मचारियों को 31.7% ने पुलिसकर्मियों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

गाँव कनेक्शन सर्वे में उत्तरदाताओं ने वैक्सीन लगाने की जो प्राथमिकता बताई है, इन प्राथमिकताओं पर पटना की रहने वाली शशि यादव कहती हैं, "डॉ और नर्स को टीका लगना सबसे जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा फ्रंटलाइन वर्कर्स को है क्योंकि इनके पास सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। ये अपने रिस्क पर हर दिन अपनी जान जोख़िम में डालकर हर तरह के लोगों से मिलती हैं इन्हें नहीं पता कि इनमे से कौन कोरोना संक्रमित है?" ये 'आशा कार्यकर्ता संघ' बिहार की अध्यक्ष हैं।

शशी यादव आगे कहती हैं, "मुझे लगता है सरकार भी कोशिश करेगी की आशा वर्कर्स को ही वैक्सीन सबसे पहले लगे क्योंकि वैक्सीन लगवाने में इनका ही सबसे ज्यादा उपयोग होना है। इस पूरे साल इन फ्रंटलाइन वर्कर्स ने दिन रात एक करके स्वास्थ्य विभाग की तरफ से माँगी जाने वाली हर जानकारी को उपलब्ध कराया है। जिसके बदले इन्हें जो पैसा मिला वो न के बराबर था कई जगह तो पैसा मिला ही नहीं, पर इन्होंने काम में कोई कोताही नहीं बरती।"

देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" ने देश के 16 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 60 जिलों के 6040 परिवारों के बीच 01-10 दिसंबर 2020 के बीच एक फेस टू फेस सर्वे किया। इस सर्वे में लोगों से एक सवाल पूछा गया ...

सवाल : आपके अनुसार कोरोना वैक्सीन लगाने के लिए सरकार को किसे प्राथमिकता देनी चाहिए ?

जवाब: डॉक्टर और नर्स : 43.5%

फ्रंटलाइन वर्कर्स (आशा, आंगनवाड़ी आदि) : 34.8%

सफाई कर्मचारी : 34.7%

पुलिस के जवान : 31.4%

60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग : 20.8%

10 साल से कम उम्र के बच्चे : 19.8%

गर्भवती महिलाएं : 15.3%

नोट- इस सवाल के जवाब में लोगों ने एक से ज्यादा विकल्प चुने हैं।

35% लोगों ने सफाई कर्मचारियों को वैक्सीन लगवाने की प्राथमिकता दी है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर डॉ शैलेश साकल्ले से जब गाँव कनेक्शन ने यह सवाल पूछा कि गाँव कनेक्शन सर्वे के अनुसार 34% लोगों ने कहा कि फ्रंटलाइन वर्कर्स को कोरोना वैक्सीन लगाने की प्राथमिकता हो।आपके अनुसार यह कितना महत्वपूर्ण है? इस सवाल के जवाब में डॉ शैलेश साकल्ले ने कहा, "मैं इस सवाल का जवाब देने के लिए अधिकृत नहीं हूं।"

लॉकडाउन से लेकर पूरे कोविड काल में भारत के गांवों में क्या चल रहा है? किसे खांसी, जुकाम और बुखार है? गाँव में कितने लोग दूसरे राज्यों से आये हैं? किसे कहां रखा गया है? कितने लोगों की कोविड-19 की जांचे हुई हैं या होनी हैं?. इस सभी सवालों की सटीक जानकारी स्वास्थ्य विभाग की फ्रंटलाइन वर्कर्स के पास थी।


गाँव कनेक्शन ने पंजाब के फरीदकोट जिले में रहने वाली आशा संगिनी सरबजीत कौर मचाकी को फोन किया। सरबजीत कौर मचाकी कहती हैं, "मीटिंग में हमें बताया गया कि जनवरी के पहले सप्ताह में सबसे पहले यह वैक्सीन आशा वर्कर्स को लगनी शुरू हो जायेगी।"

सरकार की इस पहल से आप खुश हैं? इस सवाल के जवाब में सरबजीत बोलीं, "बहुत सी आशा वर्कर्स को इस बात का डर है कि कहीं ये वैक्सीन उन्हें नुकसान न कर जाए पर सरकार लगवाने के लिए कह रही है इसलिए लगवाना उनकी मजबूरी है। सरकार इसलिए भी पहले हमें वैक्सीन लगवा रही है जिससे दूसरों लोग इसे लगवाने के लिए तैयार हो सकें। जब हमें ये वैक्सीन लगी रहेगी तभी तो हम गाँव के लोगों को लगवाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।" सरबजीत एक आशा संगठन 'डेमोक्रेटिक मुलाजिम फेडरेशन' की प्रधान मीट सदस्य हैं और आशा संगिनी भी। इस संगठन में 22,000 आशा वर्कर्स जुड़ी हैं।


यह स्पष्ट है कि इतने बड़े जनसंख्या वाले देश में पूरी आबादी को एक बार में टीकाकरण लगना संभव नहीं होगा। भारत सरकार ने COVID-19 वैक्सीन लगाने के लिए सबसे पहले किसे प्राथमिकता में रखा जाए इसकी कोई योजना बनाई होगी।

इस मामले में ग्रामीण भारत की क्या राय है ये जानने के लिए गाँव कनेक्शन ने रैपिड सर्वे किया। इस सर्वे में देश की विविधता को ध्यान में रखते हुए सभी जाति, धर्म, लिंग, आय-वर्ग, समुदाय और क्षेत्र के लोगों को शामिल किया है। सर्वे में राज्यों का चयन केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के कोविड-19 से संबंधित आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए किया गया। देश के उत्तरी राज्यों के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर और हरियाणा को शामिल किया गया है। वहीं दक्षिणी राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक शामिल है। पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश व पूर्वी व उत्तर-पूर्वी राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश को शामिल किया गया है।

सरकार के दावे के अनुसार लोगों को उम्मीद है कि नये साल से वैक्सीन लगनी शुरू हो जायेगी और दुनिया इस महमारी पर काबू पा लेगी। कई देशों में इसे रोकने के लिए टीकाकरण (वैक्सीनेशन) शुरू हो चुका है। भारत सरकार भी स्वदेशी टीका लगाने की तैयारी कर रही है। कई रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि कोविड वैक्सीन के लिए लोगों को पैसे चुकाने होंगे, लेकिन क्या पैसे देकर टीका लगवाना सबके लिए संभव हो पायेगा?


गाँव कनेक्शन सर्वे में लोगों से एक सवाल यह भी पूछा गया कि कोविड वैक्सीन आ जायेगा तो क्या वे इसके लिए भुगतान (पैसे खर्च) को तैयार हैं? इस सवाल के जवाब में 44% (2,658).परिवारों ने हां कहा वहीं लगभग 36% लोगों ने जवाब दिया कि वो पैसे देकर वैक्सीन लगवाने में सक्षम नहीं हैं। वे लोग जो भुगतान करने को तैयार है यानी 2,658 परिवारों में से 66% उत्तरदाता यह भी चाहते हैं कि कोविड वैक्सीन की कीमत 500 रुपए से कम होनी चाहिए। महज 25% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे वैक्सीन की दो खुराक के लिए 500 से 1,000 रुपए खर्च कर सकते हैं। लगभग 6% ने 1,000 से 1,500 रुपए और 2% लोगों ने 1,500 से 2,000 रुपए तक खर्च की बात कही। महज आधा फीसदी यानी कि .5% ही ऐसे लोग हैं जो वैक्सीन के लिए 2,000 रुपए से ज्यादा भी खर्च करने के लिए तैयार हैं। 

भारत में इस महमारी से अब तक लगभग डेढ़ लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस पूरे कोविड काल में डॉ, नर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स, सफाई कर्मचारी और पुलिसकर्मियों ने अपनी जान जोख़िम में डालकर दिन-रात अपनी ड्यूटी निभाई है। गाँव कनेक्शन सर्वे के आंकड़ों में लोगों ने यही राय दी है कि कोरोना वैक्सीन सबसे पहले इन्हें ही लगे जो हर दिन अपनी जान जोख़िम में डाल रहे हैं।


डॉ वीना गुप्ता कहती हैं, "अगर सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस वैक्सीन को लगवाएं तो सबसे पहले यह वैक्सीन फ्रंटलाइन वर्कर्स को ही लगे। आशा बहू और आंगनवाड़ी कार्यकत्री ही लोगों में ये इसे लगवाने का आत्मविश्वास पैदा करेंगी।

इस पूरे कोविड में सबसे ज्यादा आंगनवाड़ी प्रभावित हुई हैं, ऑन रिकॉर्ड तीन की मौत भी हुई है। इसका एक कारण इनकी बढ़ती उम्र भी हो सकती है। सरकार को अगर कम्युनिटी स्प्रेट रोकना है लोगों में इस लगवाने का भरोसा पैदा करना है तो सबसे पहले वैक्सीन इन्हें ही लगे।" डॉ वीना लखनऊ में रहती हैं और ये आशा कर्मचारी युनियन उत्तर प्रदेश की स्टेट प्रेसिडेंट हैं। 

सर्वे में मार्जिन ऑफ एरर की संभावना 5 फीसदी है। सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों की मासिक आय 5,000 रुपए से भी कम है, वहीं 37 फीसदी लोग 5000 से 10,000 के बीच कमाई करने वाले हैं। प्रति माह एक लाख से ज्यादा कमाई करने वालों का प्रतिशत 0.1 फीसदी (दशमलव एक फीसदी) है। सर्वे में लोगों से कोरोना वैक्सीन की जररुत, उस पर भरोसा, कोरोना की गंभीरता, उनके आसपास के कोविड मरीज निकलने, उनके इलाज, खानपान, कोरोना से बचने के लिए आजमाए गए उपायों पर सवाल किए है। इस सर्वे के सभी नतीजों को आप "द रूरल रिपोर्ट 3 : कोविड-19 वैक्सीन एंड रूरल इंडिया" नाम से जारी किया है, जिसे आप www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

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