असम चुनाव 2021: असम के चाय बागान मजदूर और टूटे चुनावी वादों की कहानी

असम में 27 मार्च से तीन चरण के विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। पिछले चुनावों के दौरान राज्य की कुल आबादी के 17% चाय बागान मजदूरों को एक दिन में 351 रुपए देने का वादा किया गया था, लेकिन यह वादा आजतक पूरा नहीं हुआ। वे अभी भी 200 रुपए से कम में मजदूरी कर रहे हैं। इस बार वादा 365 रुपए का है। क्या इस बार उनकी कमाई बढ़ेगी?

Update: 2021-03-31 07:00 GMT

असम में चाय-जनजातियों और पूर्व-चाय-जनजातियों की आबादी 17 प्रतिशत है। (सभी तस्वीरें- सीमांता बर्मन)

सीमांता बर्मन

तेजपुर (असम)। तेजपुर की मार्शा धनवर सुबह-सुबह काफी जल्दीबाजी में आलू-चावल खा रही हैं। उन्हें सुबह 7 बजे काम के लिए निकलना हैं। वह सोनितपुर के सोनाभील टी स्टेट में चाय की पत्तियां तोड़ने का काम करती हैं। कभी-कभी लगातार सात घंटे काम करने के लिए वह पानी मिलाकर अधिक रसेदार वाली सब्जी बना लेती हैं, ताकि भूख लगने पर उनका काम उसी सब्जी से चल सके।

धनवर की उम्र 30 के आसपास है और वह सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक काम करती हैं। हालांकि बीच में उनको दो घंटे का ब्रेक भी मिलता है, मगर काम पर उन्हें हफ्ते के 6 दिन आना पड़ता है। इस कमर तोड़ काम के लिए मार्शा को 167 रुपए प्रति दिन मिलता है, जो कि सरकार द्वारा तय किए गए न्यूनतम दैनिक वेतन 176 रुपए से भी कम है। वहीं मार्च 2018 तक तो उन्हें सिर्फ 137 रुपए ही मिलते थे।

असम के लगभग 800 चाय बागानों में काम करने वाले बागान मजदूरों का यही हाल है जो देश की आधी से अधिक चाय का उत्पादन करते हैं।

क्या यह राज्य चुनाव जो 27 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेंगे धनवार जैसे 7,50,000 लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव ला पाएंगे? यहां चुनावी घोषणाओं के दौरान चाय बागान मजदूरों के दैनिक वेतन को 365 रुपए तक करने जैसे वादे किए गए हैं। क्या बंगाल में चुनाव लड़ रही दो बड़ी पार्टियां, बीजेपी और कांग्रेस इन चाय मजदूरों की आवाज सुनेंगी?

असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज गोवाला गांव कनेक्शन से कहते हैं, "हम फिलहाल तीन सौ पंद्रह रुपए की मजदूरी के लिए लड़ रहे हैं, जो कि सरकार द्वारा गठित सलाहकार समितियों द्वारा ही प्रस्तावित है। सरकार अपने कमेटियों के सुझावों पर भी अमल नहीं करती है।"

असम में धनवार और चाय बागानों में काम करने वाले लोगों को टी-ट्राइब्स और एक्स टी- ट्राइब्स कहा जाता है। असम में इनकी आबादी 17 प्रतिशत है और इनमें से 35 प्रतिशत मतदाता हैं। कुल 126 निर्वाचन क्षेत्रों में से लगभग 40 में कोकराझार, उदलगुरी, सोनितपुर, बिश्वनाथ, नागांव, गोलाघाट, जोरहाट, शिवसागर, चराइदेव, डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जैसे जिलों में चाय श्रमिकों का मजबूत आधार है।

असम में चाय-जनजातियों और पूर्व-चाय-जनजातियों की आबादी 17 प्रतिशत है।

चाय जनजातियों का इतिहास

चाय के बागानों में रहने वाले लोग स्वदेशी मजदूरों के वंशज हैं, जो 1800 के दशक में वर्तमान के झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के हिस्सों से असम में अंग्रेजों द्वारा लाए गए थे। असम में 100 से अधिक टी ट्राइब्स (चाय जनजातियां) हैं, जिनमें मुंडा, तेली, कोइरी, कुर्मी, घाटोवर, गौला और बनिया शामिल हैं।

टी ट्राइब्स वे लोग हैं जो वर्तमान में चाय-बागानों में काम कर रहे हैं, जबकि एक्स- टी ट्राइब्स ऐसे लोग हैं, जो रोजगार के अन्य अवसरों के लिए ये काम छोड़ चुके हैं। यहां तक की ये लोग अब कंपनी द्वारा दिए गए क्वार्टरों में नहीं रहते हैं।

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असम में 7,50,000 चाय बागान मजदूरों में से केवल 20 फीसदी के पास ही जमीन है। अन्य लोगों को इतने वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद भी कोई भूमि पट्टा नहीं दिया गया है। भौगोलिक विविधता और सामाजिक-राजनीतिक कारकों के कारण, टी ट्राइब को स्वास्थ्य, स्वच्छता और समग्र विकास के लिए गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है।

शराबबंदी, निरक्षरता और आर्थिक पिछड़ेपन जैसी स्थितियां इन समुदायों को परेशान करती हैं। उनके रहने की व्यवस्था भी स्वच्छता और बुनियादी सुविधाओं से परे है।

सोनाभील टी इस्टेट की चाय कार्यकर्ता बीबियाना टोपनो कहती हैं, "पंद्रह साल पहले जब बच्चे पैदा होते थे, तब बच्चों की देखभाल करने के लिए केयर टेकर दिए जाते थे। इसके अलावा उन्हें दूध के पैकेट भी मिलते थे। मगर अब ऐसा नहीं होता।"

महिला चाय कर्मचारी दिन के अंत में इकट्ठा होती हैं। वे उचित वेतन की मांग कर रही हैं।

उचित मजदूरी की लड़ाई

दिलचस्प बात यह है कि असम में दैनिक मजदूरी में भी काफी असामनता है। ब्रह्मपुत्र घाटी के श्रमिकों को एक दिन में 167 रुपए मिलते हैं जबकि बराक घाटी के श्रमिकों को केवल 145 रुपए मिलते हैं।

काफी लंबे समय से चाय एस्टेट के कर्मचारी 351 रुपए की दैनिक मजदूरी की मांग कर रहे हैं, जिसे बीजेपी ने 2016 में सत्ता में आने से पहले वादा किया था। वहीं अब कांग्रेस ने 365 रुपए का वादा किया है जोकि बीजेपी के वादे से 14 रुपए ज्यादा है। इसकी तुलना में दक्षिणी राज्य केरल में चाय के मजदूरों को प्रति दिन 380 रुपए से अधिक की कमाई होती है। इसके अलावा सांविधिक लाभ 600 रुपए प्रति दिन का है।

पोल बेट

सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार 2016 के अपने वेतन वादे को पूरा नहीं कर सकी। सरकार ने अंतरिम राहत के रूप में इसे बढ़ाकर 217 रुपए कर दिया और सांविधिक लाभों के लिए 101 रुपए अतिरिक्त कर दिए। हालांकि इस साल 10 मार्च को गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इंडियन टी एसोसिएशन और 17 चाय बागानों द्वारा दायर एक याचिका पर मजदूरी बढ़ाने के प्रस्ताव पर रोक लगा दी।


ग्यारह दिन बाद 21 मार्च को अंतरिम सुनवाई होने तक इंडियन टी एसोसिएशन ने इस वर्ष 22 फरवरी से अंतरिम वेतन को 26 रुपए बढ़ाने का फैसला किया जो कि ब्रह्मापुत्र घाटी के लिए 167 रुपए से बढ़ाकर 193 रुपए था और बराक घाटी के लिए 145 रुपए से बढ़ाकर 171 रुपए था।

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इस बीच चुनावी साल होने के कारण राजनीतिक दल चाय श्रमिकों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले महीने 1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक कार्यक्रम की अध्यक्षता की जहां प्रत्येक चाय श्रमिकों के खाते में 3,000 रुपए पहुंचाए गए थे। यह वितरण 2018 की असम चाह बगैचा धन पुरस्कार स्कीम का हिस्सा था जिसके तहत 2017-18 और 2018-19 के बीच 750,000 लाभार्थियों को दो इंस्टालमेंट में 2500 रुपए दिए गए। इसके अलावा सीतारमण ने असम और पश्चिम बंगाल में चाय श्रमिकों के कल्याण के लिए 1,000 करोड़ रुपए के पैकेज की भी घोषणा की गई है।

वेतन वृद्धि के लिए संगठित विरोध प्रदर्शन

वर्षों से वेतन वृद्धि की मांग को लेकर असम सामुदायिक चाय संघ और असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन जैसे सामुदायिक संगठन राज्य भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। गोवाला कहते हैं, "चाय बागान मालिकों को अदालत में याचिका दायर नहीं करनी चाहिए थी। यह गलत है। हमने उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की है और जल्द ही फैसले का इंतजार कर रहे हैं।

लंबे समय से चाय एस्टेट कर्मचारी 351 रुपये की दैनिक मजदूरी की मांग कर रहे हैं।

छात्र सभा ने राज्य विधानसभा चुनावों के लिए रन-अप में "जागरूकता अभियान" की भी शुरूआत की है। यह चाय समुदायों को उन राजनीतिक पार्टियों की याद दिलाता है जो अपने वादों को निभाने और सावधानीपूर्वक मतदान करने में विफल रहे।

विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाली महिला चाय बागान मजदूर हैं। जुनिका सुरीन, सोनाबेल टी एस्टेट में चाय तोड़ने वाली महिलाओं की सुपरवाइजर कहती हैं, "हम अपनी शिफ्ट शुरू करने से पहले धरना करते हैं।"

इस महीने की शुरुआत में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सैकड़ों महिला मजदूर राज्य की राजधानी दिसपुर से लगभग 145 किलोमीटर दूर ढेकियाजुली में कम वेतन के विरोध में इक्कठा हुईं थी। वे लोग जो दूसरों की सुबह में स्वाद और खुशी घोलते हैं उनका खुद का कप असंतोष से भरा हुआ है।

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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