इंदौर से 40 किलोमीटर दूर सकलोडा गांव के किसानों की कई बीघे ज़मीन पर लगी फसल मौसम की भेंट चढ़ गई है। बुधवार मध्य रात्रि के बाद हुई बारिश और ओलावृष्टि ने यहां किसानों पर एक बार फिर चोट की। पाला पड़ने से किसानों की फसल को पहले ही काफी नुकसान हुआ है और अब उन्हें सब कुछ बरबाद हुआ लगता है।
देपालपुर तहसील के इन किसानों ने गांव कनेक्शन को अपनी बर्बाद हुई फसल की तस्वीरें भेजीं और बताया कि उनके लिये यह साल बेहद ख़राब रहा है। 55 साल के महेश्वर सिंह कहते हैं, "15 से 20 बीघा में लगी सारी फसल बर्बाद हो गई है। कुछ नहीं बचा।" बर्बाद हुई फसल में गेहूं, चना और मसूर जैसी फसलें शामिल हैं।
पटेल के साथी कैलाश चौहान केंद्र और राज्य सरकार से मदद की गुहार कर रहे हैं। "मोदी सरकार हो या कमलनाथ सरकार… हमें नहीं जानना… कोई भी हमारी मदद करे क्योंकि हम किसान बहुत परेशान हैं।" इस साल जनवरी और फरवरी में तेज़ बरसात और ओला वृष्टि ने उत्तर भारत के किसानों का काफी नुकसान किया। पंजाब के संगरूर ज़िले में ही 3000 एकड़ से अधिक ज़मीन पर लगी रबी की फसल बर्बाद हो गई। किसानों को 7 से 15 लाख तक का नुकसान उठाना पड़ा।
मध्य प्रदेश के अलावा किसानों का नुकसान पंजाब, हरियाणा, यूपी से दिल्ली एनसीआर के इलाकों में भी हुआ है। फरवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली में ओले गिरे। इससे इन राज्यों में गेहूं, सरसों, चना, बाजरा के साथ-साथ आलू, मटर, फूलगोभी और दूसरी सब्ज़ियां बर्बाद हो गईं। कृषि अधिकारी कह रहे हैं कि कितना नुकसान हुआ है इसका पता लगाने में वक्त लगेगा।
संगरूर ज़िले के मानकी गांव के कुलविन्दर सिंह करते हैं कि पहली बार ओलावृष्टि जनवरी में हुई जबकि खेतों में कई फीट ऊंची परत जम गई। घनघोर बारिश से इकट्ठा हुआ पानी अब भी खेतों में जमा है।
किसानों को ऐसी विपत्ति से बचाने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना है। संगरूर के जिन किसानों से हमने बात की उन्होंने अपनी फसल का बीमा नहीं कराया था लेकिन देश के जिन दूसरे हिस्सों में किसानों ने फसल बीमा कराया वह योजना भी कुछ काम नहीं आ रही।
इंदौर की देपालपुर तहसील के एक किसानों ने हमें बताया, "किसान (बर्बाद फसल के) सर्वे के लिये फोन करते हैं लेकिन बीमा एजेंट सर्वे के लिये नहीं आ रहे हैं। टॉलफ्री नंबर पहले तो चलता नहीं और जब उस पर बात होती है तो कोई हमारे पास नहीं आता।"
साल 2016 में लागू हुई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वैसे तमाम दूसरे राज्यों में सवालों के घेरे में है। सूचना अधिकार कानून के ज़रिये जो आंकड़े बाहर आये वह बताते हैं कि साल 2016-17 और 2017-18 में कुल 47000 करोड़ से अधिक राशि प्रीमियम के लिये वसूली गई लेकिन कुल भुगतान की रकम 32000 करोड़ से भी कम है।
किसानों की कवरेज इस दौर में आधा प्रतिशत से कम बढ़ी लेकिन प्रीमियम 350 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा। ऐसे में देपालपुर के किसान हों या संगरूर के वह मौसम की बदमिजाजी और फसल को होने वाले दूसरे ख़तरों के प्रति बेहद असुरक्षित हैं।