बंबई उच्च न्यायालय ने पूछा, क्या कानून पशु की शारीरिक संरचना बदल सकता है?

Update: 2017-10-11 17:14 GMT
फाइल फोटो 

मुंबई (भाषा)। बंबई उच्च न्यायालय ने बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने से महाराष्ट्र सरकार को रोकने संबंधी अपना स्थगनादेश वापस लेने से आज इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि बैंलों की शारीरिक संरचना इस तरह की नहीं है कि वह दौड़ में शामिल हों। प्रदर्शन करने वाले पशुओं के रुप में उनका इस्तेमाल करना उनके साथ क्रूरता होगी।

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जल्लीकट्टू पर वर्ष 2014 में आए उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर और न्यायमूर्ति एनएम जामदार की पीठ ने कहा कि बैलों की शारीरिक संरचना इस तरह की नहीं है कि उनका इस्तेमाल प्रदर्शन करने वाले जीव के तौर पर किया जाए। दौड़ में यदि उनका इस्तेमाल किया जाता है तो वह स्वाभाविक तौर पर क्रूरता के समान होगा।

पीठ ने राज्य के उस निवेदन को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि उसने पशुओं के साथ क्रूरता रोकथाम (महाराष्ट्र संशोधन) अधिनियम 2017 में संशोधन किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी दौडों में शामिल होने वाले बैलों के साथ कोई क्रूरता नहीं बरती जाए और ना ही उन्हें कोई शारीरिक कष्ट पहुंचाया जाए।

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पीठ ने कहा, क्या कानून पशु की शारीरिक संरचना को बदल कर उसे प्रदर्शन करने वाला पशु बना सकता है? आप चाहे कोई भी सुरक्षा उपाय आजमा लें लेकिन तथ्य यही है कि बैल प्रदर्शन करने वाले पशुओं मसलन घोडे, कुत्ते या तोते से अलग होते हैं। प्रदर्शन करने वाले पशुओं की तरह उनका इस्तेमाल उनके साथ क्रूरता करना होगा।

अदालत पुणे के कार्यकर्ता अजय मराठे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उन्होंने इस तरह की दौडों को मंजूरी देने वाले पशुओं के साथ क्रूरता रोकथाम अधिनियम (महाराष्ट्र संशोधन) को चुनौती दी थी। याचिका पर उच्च न्यायालय ने इस वर्ष 16 अगस्त को अंतरिम आदेश पारित कर महाराष्ट्र सरकार पर राज्यभर में कहीं भी बैलगाडी दौडों की मंजूरी देने पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद राज्य सरकार ने अदालत में कहा था कि वह जल्द ही उक्त अधिनियम में संशोधन करेगी।

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