गोबर खरीदकर पशुपालकों की आमदनी बढ़ाएगी छत्तीसगढ़ सरकार

Update: 2020-06-27 07:19 GMT

रायपुर (छत्तीसगढ़)। सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं से निजात दिलाने के लिए प्रदेश सरकार पशु पालकों से गोबर खरीदेगी, जिससे वर्मी कंपोस्ट बनायी जाएगी।

देश के कई राज्यों में छुट्टा जानवरों की समस्या है, छत्तीसगढ़ भी उन्हीं में से एक है। लेकिन अब यहां पर लोग अपने पशुओं को खुला नहीं छोड़ेंगे। गोबर खरीदी की शुरुआत 'गोधन न्याय योजना' के तहत सरकार 21 जुलाई को हरेली त्योहार के दिन से की जाएगी।। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा जो गोबर की खरीद करेगा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गोबर प्रबंधन की दिशा में प्रयास करने वाली ये देश की पहली सरकार है। आने वाले समय में सरकार गोमूत्र खरीदने पर भी विचार कर सकती है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बेहतर परिणाम होंगे। सरकार चाहती है कि प्रदेश जैविक खेती की तरफ आगे बढ़े। फसलों की गुणवत्ता में सुधार हो।


मुख्यमंत्री बघेल ने बताया कि प्रदेश में करीब 2200 गौठान बन चुके हैं। जहां ये काम तत्काल शुरू हो सकता है। उन्होंने बताया कि कृषि मंत्री रवींद्र चौबे की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय मंत्रिमंडल उपसमिति बनाई गई है। ये उपसमिति फैसला करेगी कि गोबर को कैसे खरीदा जाएगा, कैसे प्रबंधन होगा। इसके अलावा मुख्य सचिव आरपी मंडल की अध्यक्षता में अधिकारियों की एक कमेटी बनाई गई है जो इसके वित्तीय प्रबंधन पर रिपोर्ट तैयार करेगी।

गोठानों में होगी गोबर की खरीदी

छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते डेढ़ सालों में छत्तीसगढ़ की चरों चिन्हारियों को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। गांवों में पशुधन के संरक्षण ओर संवर्धन के लिए गौठानों का निर्माण किया गया है। राज्य के 2200 गांवों में गौठानों का निर्माण हो चुका है और 2800 गांवों में गौठानों का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले दो–तीन महीने में लगभग 5 हजार गांवों में गौठान बन जाएंगे। इन गठानों को आजीविका केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण और महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से शुरू किया जा रहा है।

 राज्य में खुले में चराई की परंपरा रही है। इससे पशुओं के साथ-साथ किसानों की फसलों का भी नुकसान होता है। शहरों में आवारा घूमने वाले मवेशियों से सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिससे जान-माल दोनों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि गाय पालक दूध निकालने के बाद उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। यह स्थिति इस योजना के लागू होने के बाद से पूरी तरह बदल जाएगी। पशु पालक अपने पशुओं के चारे-पानी का प्रबंध करने के साथ-साथ उन्हें बांधकर रखेंगे, ताकि उन्हें गोबर मिल सके, जिसे वह बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकें।


सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में पशुओं से हर साल 100 मिलियन टन गोबर मिलता है जिसकी कीमत 5,000 करोड़ रुपए है। इस गोबर का ज्यादातर प्रयोग बायोगैस बनाने के अलावा कंडे और अन्य कार्यों में किया जाता है।

भारत पिछले कई वर्षों से विश्व में सबसे ज्यादा पशु और सबसे ज्यादा दूध देने वाला देश है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि भारत में प्रति पशु दुग्ध उत्पादकता बहुत कम है। 20वीं पशुगणना के अनुसार भारत में गाय-भैंसों की संख्या करीब 30 करोड़ है, जिसमें से 14.51 करोड़ सिर्फ गाय हैं। अगर दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) को देखें तो पूरे देश में ये आंकड़ा सिर्फ 12 करोड़ 50 लाख के आसपास है। देश में एक बड़ी आबादी ऐसे पशुओं की है, जो न दूध देते हैं, न किसानों के काम आते हैं। जिन्हें, छुट्टा, बेसहारा और अवारा पशु कहा जाता है। यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कई राज्यों में ये छुट्टा, बेसहारा पशु किसानों के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। 

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