World Milk Day: जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगा पशुओं में टेंशन, 2050 में भारत में होगी दूध की किल्लत

Update: 2019-05-31 13:44 GMT

लखनऊ। दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक वाले देश भारत को आने वाले समय में दूध की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है, जिसका कारण है जलवायु परिवर्तन। इससे जहां दूध उत्पादन में भारी नुकसान होगा वहीं फल और सब्जियां भी इसके दायरे में आएगी।

पिछले दिनों कृषि मंत्रालय के पूर्व वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने संसद में रिपोर्ट पेश की, जिसके मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण दूध उत्पादन को लेकर नहीं संभले तो इसका असर 2020 तक 1.6 मीट्रिक टन दूध उत्पादन में कमी के रूप में दिखेगा वहीं 2050 तक यह गिरावट दस गुना तक बढ़ कर 15 मीट्रिक टन हो जाएगा।

जलवायु के अनुकूल खेती और पशुधन करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय नवोन्वेषण (निकरा) परियोजना चला रही है। इस परियोजना में जलवायु परिवर्तन से दुधारू पशुओं पर पड़ने वाले असर के बारे में आईवीआरआई के जैविक मानवीकरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अशोक तिवारी बताते हैं, दुग्ध उत्पादन पर संकट इसलिए आएगा क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग से आने वाले समय में पशुओं के लिए चारा कम होगा, शुद्व पानी नहीं मिलेगा, मच्छर, मक्खी, और जू जैसे परीजीवियों से बीमारियां बढ़ेगी, उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा, जिससे दूध उत्पादन घटेगा।''


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इस समस्या के हल के बारे में डॉ तिवारी ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, जलवायु परिवर्तन से पशुओं पर असर को रोकने के लिए सरकार के निकरा प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है जिसमें पशुओं में बीमारियों को रोकने और उनके लिए कम पानी वाले और उस तापमान में अनुकूल चारा उत्पादन पर काम किया जा रहा है जिससे पशुपालकों के खर्च को रोका जा सके।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 155.50 मीट्रिक टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन हुआ। इतने उत्पादन के बावजूद भी देश में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता मात्र 355 ग्राम ही है जो और देशों की तुलना में बहुत कम है। अगर जलवायु परिवर्तन में होने असर से अभी नहीं संभले तो आने वाले समय में दूसरे देशों से दूध और उनसे बने उत्पादों का आयात करना पड़ सकता है।


मथुरा स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गो-अनुसंधान संस्थान के प्रोफेसर के डॉ सर्वजीत यादव बताते हैं, ''ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए देश के लिए स्वदेशी नस्लें ही कारगर है जिसको बढ़ावा देने के लिए सरकार भी देसी गायों पर काम कर रही है। हमारी स्वदेशी नस्लें विपरीत मौसमी परिस्थितियों को झेलने में अधिक सक्षम होती हैं जबकि संकर नस्ल और विदेशी नस्ल में यह क्षमता है ही नहीं। किसान खर्चा करेगा लेकिन उत्पादन उसके अनुरूप नहीं होगा। इसलिए किसानों को देसी गाय पालन पर जोर देना होगा।''

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पूर्व भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार दुग्ध उत्पादन में सर्वाधिक गिरावट उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में यह भी हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण, ये राज्य दिन के समय तेज गर्मी के दायरे में होंगे और इस कारण पानी की उपलब्धता में गिरावट पशुधन की उत्पादकता पर सीधा असर डालेगी।

पशुओं को पानी की महत्वता के बारे में पशु वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह बताते हैं, "जैसे इंसानों को साफ पानी की जरूरत होती है वैसे ही पशुओं के लिए साफ और स्वच्छ पानी की आवश्यकता होती है। अगर पशुओं को साफ पानी नहीं मिलेगा तो पैरासाइट्स के जरिए सीधा असर पशु की पाचन क्रिया पर पड़ता है। पशु कम खाता है और उसका दूध उत्पादन भी घट जाता है। एक पशु को एक दिन में 40 से 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।"

जलवायु परिवर्तन से जहां विदेशी और संकर नस्ल की गायों पर असर पड़ेगा वहीं इससे भैंसों पर भी बड़ा असर देखने को मिलेगा। देश के दूध उत्पादन में 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देशी प्रजाति की गायों से और 25 प्रतिशत विदेशी प्रजाति की गायों से आता है। शेष हिस्सा बकरी जैसे छोटे दुधारू पशुओं से आता है। भैंसों पर पड़ने वाले असर के बारे में डॉ ए.के तिवारी बताते हैं, ''जब तापमान बढ़ता है तो भैंसों में तनाव भी बढ़ता है। इसके साथ-साथ उनमें शांत हीट होती है जिसको किसान जल्दी नहीं पहचान पाएगा जिससे उसकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा। हमारे यहां डेयरी उद्योग में ज्यादा दूध उत्पादन के लिए भैंसों को लोग ज्यादा पालते है ऐसे में दूध उत्पादन घटेगा।''


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