महज ओडीएफ होना काफी नहीं, जरूरी है पूर्ण स्वच्छता, यूपी सरकार और सीएसई ने मिलाए हाथ

Update: 2018-10-22 08:15 GMT

उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों से निकलने वाला 86.73 प्रतिशत मल-मूत्र अपशिष्ट (सेप्टेज) या तो नदियों में बहाया जाता है, खेती योग्य जमीन पर फेंक दिया जाता है या फिर यूं ही खुले में डाल दिया जाता है। प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) कराने के अभियान के तहत जिस तादाद में शौचालयों का निर्माण हो रहा है अगर उनसे निकलने वाले सेप्टेज के उचित निस्तारण की व्यवस्था नहीं की तो पूरा प्रदेश इस गंदगी में डूब जाएगा। ये आंकड़े हैं पर्यावरण से जुड़ी प्रमुख संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के। उत्तर प्रदेश में सेप्टेज की समस्या से निबटने के लिए सीएसई ने यूपी के शहरी विकास विभाग के साथ मिलकर एक संयुक्त पहल की है। इसी पहल के तहत सोमवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएसई और शहरी विकास विभाग, उत्तर प्रदेश ने एक दिवसीय राज्य स्तरीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया।

प्रदेश में 86.73 प्रतिशत मल-मूत्र अपशिष्ट (सेप्टेज) या तो नदियों में बहाया जाता है, खेती योग्य जमीन पर फेंक दिया जाता है। फोटो: सीएसई

इस वर्कशॉप का मकसद था, उत्तर प्रदेश के शहरों को ओडीएफ की स्थिति से परे सभी के लिए कुल स्वच्छता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करना। इसके लिए सेप्टेज प्रबंधन पर कारगर रूप से आगे बढ़ने और तकनीकी मुहैया कराने में अहम सीएसई की अहम भूमिका होगी। वर्कशॉप में सीएसई ने सेप्टेज का प्रबंधन करने वाले शहरों का फोरम लॉन्च करने का ऐलान किया। साथ ही सेप्टेज प्रबंधन की योजना बनाने और उसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए दो वेब आधारित टूल्स भी जारी किए। वर्कशॉप की अध्यक्षता सीएसई प्रमुख सुनीता नारायण और मनोज सिंह, प्रमुख सचिव नगर विकास विभाग, उत्तर प्रदेश ने की।

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इस मौके पर सीएसई की प्रमुख सुनीता नारायण का कहना था, "उत्तर प्रदेश अपने शहरों और कस्बों में स्वच्छता का प्रबंधन कैसे करता है यह हमारे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्रभावित करेगा साथ ही यह भी तय करेगा कि हम उन्हें प्राप्त कर सकेंगे या नहीं। यहां मिली कामयाबी दूसरे प्रदेशों को प्रोत्साहित करेगी जिससे अंतत: पूरे देश में कामयाबी मिलेगी। उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश सरकार के साथ हमारी साझेदारी दूसरों के लिए एक मिसाल बनेगी।"

प्रदेश में महज 28 प्रतिशत घरों में सीवर कनेक्शन

सीएसई के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के शहरी और कस्बाई क्षेत्रों के 47 प्रतिशत घरों में सैप्टिक टैंक हैं लेकिन महज 28 प्रतिशत घरों में सीवर कनेक्शन हैं। राज्य वार्षिक कार्य योजना 2017-20 के अनुसार, अधिकांश शहरों में 80 प्रतिशत शौचालय हैं। लेकिन प्रदेश के 60 अमृत शहरों में से 34 शहरों में सीवेज के कलेक्शन और उसके ट्रीटमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून 2015 को शहरी भारत की तस्वीर बदलने के लिए अमृत परियोजना ( AMRUT : Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation) की शुरूआत की थी। अमृत मिशन का मुख्य उद्देश्य है घरों में जल आपूर्ति, सीवरेज, शहरी परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना ताकि सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधरे खासकर गरीब और विकलांग लोगों के जीवन की।

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उत्तर प्रदेश में एक भी ऐसा शहर नहीं है जहां हर घर सीवर से जुड़ा हो। ऐसी स्थिति में अधिकतर घर, संस्थान, वाणिज्यिक इलाके, सार्वजनिक शौचालय सेप्टिक टैंक या पिट लैट्रिन जैसे ऑनसाइट सेनिटेशन सिस्टम के भरोसे हैं। चूंकि इनसे निकलने वाले मलबे को फेंकने का कोई तय स्थान नहीं है इसलिए इसे खुले नालों, खेतों में डाला जाता है जो अंतत: प्रदेश की गंगा जैसी नदियों और दूसरे जल स्रोतों में प्रदूषण का कारण बनता है। 

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