गंदे नाले में बदल गईं पश्चिमी यूपी की छोटी नदियां

Divendra Singh | Mar 18, 2018, 14:50 IST
water pollution
जल प्रदूषण पर काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था नीर फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस प्रदूषित जल ने अधिकतर स्थानों के भू-गर्भ जल को इतना जहरीला बना दिया है कि पिछले कई वर्षों में मेरठ ज़िले के कई गाँव दर्जनों लोग कैंसर जैसी घातक बीमारी का शिकार हो चुके हैं और सैकड़ों की संख्या में अन्य जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं।
कभी पश्चिमी यूपी के कई ज़िलों के लिए वरदान साबित हो रहीं छोटी नदियां आज वहां के लोगों के लिए अभिशाप बन गईं हैं, पिछले कुछ वर्षों तेजी से बढ़ रहे उद्योगों ने इन नदियों को नाले में बदल दिया।

केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने का वादा कर रही है, लेकिन जबतक गंगा की सहायक छोटी-छोटी नदियों में उद्योगों के गंदे पानी छोड़ने पर कड़ा कानून नहीं बनाया जाता है, गंगा जैसी बड़ी नदियां भी प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाएंगी।

हिण्डन और उनकी सहायक काली व कृष्णा नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब आधा दर्जन ज़िलों से होकर गुजरती हैं, जहां पर इन नदियों में कई उद्योगों का प्रदूषित पानी छोड़ा जाता है, ये नदियां किसी गंदे नाले से भी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी हैं।

जल प्रदूषण पर काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था नीर फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस प्रदूषित जल ने अधिकतर स्थानों के भू-गर्भ जल को इतना जहरीला बना दिया है कि पिछले कई वर्षों में मेरठ ज़िले के कई गाँव दर्जनों लोग कैंसर जैसी घातक बीमारी का शिकार हो चुके हैं और सैकड़ों की संख्या में अन्य जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं।

नीर फाउंडेशन के सर्वेक्षण के अनुसार, हर दिन सहारनपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, व गौतम बुद्ध नगर जैसे जिलों की चीनी मिलों, पेपर मिलों सहित दर्जनों उद्योगों का लगभग 98 हजार लीटर तरल गैर-शोधित कचरा नदियों में डाल दिया जाता है।

शामली ज़िले के भिटवाला गाँव के श्रवण कुमार (47 वर्ष) कहते हैं, "पहले जिस नदी का पानी हम अपने जानवरों के पीने और खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल करते थे, अब उसी नदी के पास जाने भी जाने से डर लगता है।" भिटवाला गाँव के पास ही काली नदी बहती है। बीस साल पहले जहां लोग इस पानी का उपयोग करते थे, अब उसके पास भी नहीं जाना चाहते हैं। ये अकेले भिटवाला गाँव की समस्या नहीं है, पश्चिमी यूपी के आठ जिलों के ज्यादातर गाँवों का यही हाल है।

नलोंं से निकलता है प्रदूषित पानी मेरठ ज़िले की गैर सरकारी संस्था 'नीर फाउंडेशन' व 'जनहित फाउंडेशन' ने अलग-अलग इन तीनों नदियों के किनारे बसे कई गाँवों में पानी और फसलों का सर्वेक्षण किया। संस्था के सर्वेक्षण में सामने आया कि नमूनों में भारी मात्रा में आयरन, लेड जैसे कई हैवी मेटल्स मिले हैं। जल का पीएच मान मानक से अधिक और प्रतिबंधित कीटनाशकों की मात्रा बढ़ी मिली। जो नदी के साथ ही भूगर्भ और हैंडपंप के नल को जहरीला बना चुकी हैं।

प्रदूषित नदियों से भूगर्भ जल पर प्रभाव पड़ा है, किसान खेतों में सिंचाई के लिए भी उसी पानी का प्रयोग करते हैं और पीने के पानी में भी रिसकर प्रदूषित पानी मिल जाता है। प्रदूषित पानी पीने से लोगों में कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं।
डॉ. राजेश सिंह सेंगर, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय, मेरठ इन दूषित जल के सेवन के कारण महिलाओं के बच्चों के जन्म देने की क्षमता में कमी पायी गई है। बच्चों में मानसिक विकार, विकास में रुकावट, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर, हड्डियों में कमजोरी पायी गई।

"प्रदूषित नदियों से भूगर्भ जल पर प्रभाव पड़ा है, किसान खेतों में सिंचाई के लिए भी उसी पानी का प्रयोग करते हैं और पीने के पानी में भी रिसकर प्रदूषित पानी मिल जाता है। प्रदूषित पानी पीने से लोगों में कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं, "सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं तकनीकि विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रोफेसर डॉ. राजेश सिंह सेंगर ने कहा।

नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन कांत बताते हैं, "पहले चरण में हिंडन व उसकी दोनों सहायक नदियों कृष्णा व काली नदी का सर्वेक्षण किया गया। हिण्डन और उसकी सहायक नदियों के किनारे गाँवों में बड़ी संख्या में लोग गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं और उनमें से कई लोगों की मौत भी हो गई।"

नदियों को प्रदूषित करने वाले उद्योग

हिण्डन नदी में सबसे पहले सहारनपुर ज़िले के पैरंगपुर गाँव में स्टार पेपर मिल से निकला गंदा पानी नाले में मिलता है। फिर मुजफ्फपुर ज़िले के तितावी शुगर मिल, बुढ़ाना के बजाज शुगर मिल का प्रदूषित पानी, मेरठ ज़िले के सरधना में स्थित सरधना पेपर मिल, मेरठ के किनौनी में स्थित बजाज शुगर मिल, गाजियाबाद के छितारसी का छितारसी बदरपुर प्लांट का का प्रदूषित नाला। हिण्डन नदी में काली नदी पिठलोकर में आकर मिलती है। काली नदी में रोहाना शुगर मिल व शुभम शुगर मिल का प्रदूषित पानी छोड़ा जाता है। इसी तरह कृष्णा नदी में ननौता शुगर मिल व डिस्टलरी, बजाज शुगर मिल (थानाभवन), मारूती पेपर मिल (सिक्का), सिक्का पेपर मिल(सिक्का), शामली पेपर मिल (सिक्का) व शामली पेपर मिल का पानी छोड़ा जाता है। ये तो बड़े उद्योग से निकलने वाले गंदे नाले हैं, इसके अलावा दर्जनों बूचड़खाने से निकलने वाला गंदा पानी, शहरों से निकलने वाला गंदा पानी सीधे नदियों में डाल दिया जाता है।

हिण्डन व उसकी सहायक नदियां

  • हिण्डन नदी (355 किमी.)- ये नदी सहारनपुर के शिवालिक पहाड़ियों से निकलती है और गौतमबुद्ध नगर में यमुना में मिल जाती है।
  • कृष्णी नदी (153 किमी.) - ये नदी सहारनपुर के दरारी गाँव से निकलकर बागपत ज़िले के बरनावा गाँव में हिण्डन नदी में मिल जाती है।
  • काली नदी (145 किमी.) - ये सहारनपुर के गंगाली गाँव से निकलती है और मेरठ के अटाली गाँव में हिण्डन से मिल जाती है।
  • शीला नदी (61 किमी.) - उत्तराखण्ड के हरिद्वार से निकलकर सहारनपुर के मतौली गाँव में मिल जाती है।
  • धमोला नदी (52 किमी.) - सहारनपुर के संसारपुर गाँव से निकलती है और सहारनपुर जिले के शरकथाल गाँव में हिण्डन में मिल जाती है।
  • पांवधोई नदी (7 किमी.) - सहारनपुर के शंकलापुरी से निकलकर हिण्डन में मिल जाती है।
  • नागदेव नदी (45 किमी.) - सहारनपुर के कोठारी गाँव से निकलकर सहारनपुर घोंघ्रेकी गांव में हिण्डन में मिल जाती है।
  • चाचारौ नदी (18 किमी.) - सहारनपुर के कालूवाला गाँव से निकलती है और कमालपुर गाँव में हिण्डन में मिल जाती है।

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