अपराधियों के लिए कठिन हुई राजनीति की डगर
राजनीति में आज भी कायम है अपराध जगत का दबदबा ...जानिए कितनी है देश में दागी सांसदों की संख्या
लखनऊ। "धनबल-बाहुबल की राजनीति से लोग एक न एक दिन उकता जायेंगे ...जो काम सरकार को करना चाहिए वो काम सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भारतीय राजनीति में एक नए युग का आरम्भ हो सकता है, ये फैसला देश की राजनीति के लिए मील का पत्थर साबित होगा। आने वाले समय में साफ-सुथरी छवि के पढ़े-लिखे युवा , सामाजिक कार्यकर्त्ता, आम लोगों के लिए राजनीति के दरवाजे खुलेंगे ...पिछले एक साल से की जा रही मेहनत रंग लायी है।"
ये कहना है, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्वनी कुमार दुबे का जो भाजपा नेता व् अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे थे।
अश्विनी दुबे ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया, " नवम्बर-2018 में याचिका दायर की गयी थी, जिसका निर्णय अब आया है। फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सभी राजनितिक दलों को अपने आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवारों का पूरा ब्योरा पार्टी के ऑफिसियल सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रदर्शित करना होगा। इसके साथ एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अख़बार में प्रकाशन कराना होगा और इसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। साथ ही ये भी स्पष्ट करना होगा कि आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवार को टिकट देने की वजह क्या है। यदि राजनीतिक दल ऐसा नहीं करते है तो उसे सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना माना जायेगा और सम्बंधित राजनीतिक दल पर कार्यवाही की जायेगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राजनीतिक दलों पर क्या असर पड़ेगा? राजनीति में आपराधिक लोगों का प्रवेश क्या बंद होगा? इस पर याची अश्विनी उपाध्याय ने फोन पर कहा, "पहला प्रभाव ये है कि चुनाव आयोग की शक्तियों में वृद्दि हुई है और आपराधिक प्रवृत्ति और आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवारों में एक डर रहेगा और वो खुद को अपराध से दूर रखने का प्रयास करेंगे ताकि उनकी उम्मीदवारी चुनाव के दौरान रद्द न हो। चुनाव के दौरान जो नेता जाति-धर्म के नाम पर हेट स्पीच (घृणित भाषण) देते हैं, और राजनीतिक फायदे के लिए समाज को तोड़ने का प्रयास करते हैं, उन पर भी निश्चित रूप से अंकुश लगेगा। इस तरह के भाषण व कृत्य पर भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।"
दूसरा प्रभाव इस तरह के राजनीतिक दलों पर भी पड़ेगा जो अपने फायदे के लिए आपराधिक इतिहास वाले लोगों को टिकट देकर उनके लिए राजनीति के दरवाजे खोल देते हैं। निर्देशों का पालन न करने पर सुप्रीम कोर्ट सम्बंधित दलों पर कार्यवाही भी कर सकता है। चुनाव आयोग का काम अब सिर्फ चुनाव करवाना ही नहीं है, बल्कि मानीटिरिंग करना भी है। चुनाव आयोग अपने विवेक के आधार पर किसी भी आपराधिक उम्मीदवार की दावेदारी को निरस्त कर सकता है।
उपाध्याय आगे कहते हैं "मैं ये नही कहता कि राजनीति में आपराधिक लोगों का प्रवेश बंद हो जाएगा, लेकिन कोर्ट के इस फैसलें से इसका प्रतिशत निश्चित तौर पर कम हो जायेगा। आपराधिक मुकदमे वाले नेताओं पर अंकुश के लिए स्पेशल एमपी/ एमएलए कोर्ट का होना जरूरी है। मेरी ही जनहित याचिका पर एमपी /एमएलए कोर्ट का गठन हुआ था। अभी तक ये कोर्ट देश के सभी जिलों में नही बन पाई हैं। जितना स्पेशल कोर्ट प्रभावी होंगी उतना ही देश की राजनीती में अपराध जगत का हस्तक्षेप कम होगा और हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं।"
"देश में आजादी के तीन दशक बाद तक तो स्वतंत्रता सेनानी राजनीति में बने रहे और चुनाव जीतते रहे, फिर अस्सी के दशक का एक दौर आया जब संरक्षण के लिए अपराधी परदे के पीछे से कुछ राजनेताओं की मदद करते रहे और बदले में नेता उन्हें संरक्षण देते रहे। वही नब्बे के दशक के बाद जब अपराधियों को ये लगने लगा कि अगर वो चुनाव जिता सकते हैं, तो खुद भी जीत सकते हैं ...इसी दौर में राजनीति में अपराधियों ने सीधे तौर पर प्रवेश करना शुरू कर दिया," उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पूर्व सलाहकार और सेवानिवृत्त न्यायाधीश चंद्रभूषण पाण्डेय कहते हैं।
चंद्रभूषण पांडेय आगे कहते हैं, "देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में नेता अपने नाम के आगे बाहुबली लिखने म गर्व महसूस करने लगे। सिर्फ उत्तर प्रदेश की पिछले 30 वर्ष के राजनितिक इतिहास पर नजर डालें तो आपको पर्दे के पीछे से मदद करने वालों और बाद में सीधे राजनीति में प्रवेश करके सांसद,विधायक,मंत्री बन्ने वालों के नाम ढूढने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। विभिन्न दलों में आज भी इस तरह के लोग राजनीतिक दलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये सिर्फ मेरा ही आकलन नहीं है बल्कि आज राजनीति की जब आप बात करते हैं तो लोगों की आम राय भी लगभग ऐसे ही हैं। अच्छा है कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग इस पर सख्त रहे और राजनीति में भविष्य में पढ़े लिखे और कमजोर तबके के युवा भी प्रवेश कर सकें।"
दागी सांसदों वाले दल और उनकी संख्या ...
देश में चुनावी प्रक्रिया पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की साल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में निर्वाचित सांसदों में सबसे बड़ी संख्या में दागी सांसद भाजपा में हैं, जिनकी संख्या 87 है। दूसरे नम्बर पर कांग्रेस पार्टी जिसमे 37 सांसद, तीसरे नम्बर पर जद (यूं) के 8 सांसद , चौथे नम्बर पर डीएमके पार्टी के 6 सांसद और पांचवे नम्बर पर एआईटीसी पार्टी के 4 सांसद है।
वहीं, अगर प्रतिशत के आधार पर देखा जाए तो जद (यूं) के पचास फ़ीसदी, कांग्रेस के 37 फ़ीसदी, भाजपा के 29 फीसदी, डीएमके 26 फ़ीसदी, और एआईटीसी के 18 फीसदी निर्वाचित सांसद दागी है जिनके ऊपर आपराधिक मुकदमें लंबित हैं। निर्वाचित 539 सांसदों में से 233 (43 प्रतिशत) सांसद ऐसे हैं जिनका आपराधिक इतिहास है, इनमे 159 सांसद यानी कुल संख्या का 29 प्रतिशत सांसद ऐसे है जिन पर बलात्कार, हत्या,हत्या का प्रयास, अपहरण, और महिलाओं पर अत्याचार से जुड़े मामले लंबित हैं।