'मेरी नजरों के सामने ही मेरा घर नदी में समा गया'

वर्ष 2018 में आई प्रलयकारी बाढ़ में घाघरा नदी में समा गए थे करीब100 घर, बेघर हुए लोग जिंदगी को एक बार फिर पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटे हैं

Update: 2019-07-13 10:38 GMT

चन्द्रकान्त मिश्रा/ वीरेंद्र सिंह

बाराबंकी। " एक-एक तिनका जोड़कर घर बनाया था। सोचिए हम पर क्या गुजरी होगी जब अपनी आंखों के सामने अपने सपनों के घर को नदी में समाते देखा होगा। खेतों में लहलहाती फसल नदी की धार में कहीं गुम हो होते देखा होगा।" इतना कहते-कहते महबूब अली(50वर्ष) फफक कर रो पड़े।

महबूब अली उत्तर प्रदेश के जनपद बाराबंकी के कंचनापुर के रहने वाले हैं। वर्ष 2018 में आई प्रलयकारी बाढ़ ने जिले में काफी तबाही मचाई थी। जनपद के कंचनापुर गांव के करीब 100 मकान घाघरा नदी की कटान से बह गए थे। लोगों ने किसी तरह से अपनी जान बचाई थी। महबूब का घर भी उसी बाढ़ में बह गया था। कुछ लोग अपने परिवार के साथ आसपास के तटबंधों पर झोपड़ी बनाकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग पास के कस्बे लालपुर में बचे खुचे पैसों से जमीन खरीदकर नए सिरे से जिंदगी बसाने में लगे हैं।

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बेघर हो चुके लोगों के सामने हैं कई चुनौतियां। 

कंचनापुर निवासी मो. तुफैल(28वर्ष) का घर भी बाढ़ में बह गया है। बचे-खुचे पैसों से तुफैल ने पास के कस्बे लालपुर में थोड़ी सी जमीन खरीद जिंदगी को एक बार फिर पटरी पर लाने में लगे हुए हैं। तुफैल ने बताया, " वहां अब कुछ बचा ही नहीं। कभी-कभार जब मन करता है नदी के किनारे तक जाते हैं। घंटों बैठकर उन दिनों को याद करके लौट आते हैं। वो बात नहीं है यहां।" इतना कहते कहते तुफैल की आंखों में आंसू आ गए।

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जिले की रामनगर तहसील में बाढ़ हर साल तबाही मचाती है। घाघरा नदी ऐसा कहर बरपाती है कि गाँव के गाँव नदी में समा जाते हैं। हजारों लोग बेघर होते हैं। अनाज और आशियाना नदी का पानी निगल लेता है। बाढ़ पीड़ितों के पास सिर्फ बेबसी, लाचारी और जिंदगी को नए तरीके से शुरू करने की बेचारी बसती है। इन ग्रामीणों के लिए बाढ़ नियति बन गई है, जो हर साल दर्द दे रही है।

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झोपड़ी डालकर कर रहे हें जिंदगी का गुजर बसर।

एक छोटी सी प्लास्टिक की पन्नी तानकर आशियाना बनाकर रहने वाली नूरजहां(35वर्ष) ने बताया, " एक साल हो गया। उस रात को याद कर सिहर जी जाती हूं। एक झटके में हमारा सब कुछ पानी में बह गया। संभलने तक का मौका नहीं मिला। छोटे-छोटे बच्चों को लेकर किसी तरह जान बचाई। जान तो बच गई, लेकिन अब हर रोज जान बचाने की जददोजहद करनी पड़ती है। खेत भी नदी में बह गया। मेरे शौहर मजदूरी करके कुछ रुपए लाते हैं, उसी से जिंदगी का गुजर बसर हो रहा है।"

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बढ़ते घाघरा नदी के जल स्तर से ग्रामीणों में दहशत है।

बेघर लोगों को कहना है कि अभी तक सरकार की तरफ से उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली है। नए सिरे से घर बनाने के लिए जमीन नहीं मिल रही है। सड़क के किनारे झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं। ठंड हो या गर्मी किसी तरह जिंदगी काट रहे हैं। सबसे ज्यादा चिंता बच्चों के भविष्य को लेकर है। वहीं घाघरा नदी का जलस्तर बढ़ने लगा है। शुक्रवार की शाम चार बजे तक जलस्तर खतरे के निशान 106.070 के सापेक्ष 105.556 मीटर रहा। जल स्तर बढ़ने से तराई क्षेत्र में हलचल तेज हो गई है। नदी के किनारे रहने वाले लोग सुरक्षित ठौर तलाशने में जुट गए हैं। 

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