मनरेगा: 'मैंने खेत गिरवी रखकर कुआं बनाया, अब सरकार पैसा नहीं दे रही'

Update: 2019-08-16 05:41 GMT

''मनरेगा के तहत मेरे नाम से कुएं का निर्माण होना था। मैं खुश था कि अब सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा और मैं सब्‍जियां उगाकर कुछ कमा लूंगा। मैंने खेत गिरवी रखकर, उधार लेकर कुआं तैयार कर दिया, लेकिन एक साल होने को आए अब तक सरकार ने कुएं का पैसा नहीं दिया है। लोग तकादा कर रहे हैं, मैं बहुत तनाव में हूं।'' जन्‍मेजय सिंह (48 साल) यह बात कहते हुए फोन पर ही रोने लगते हैं।

जन्‍मेजय झारखंड के चान्‍हो प्रखंड के पतरातू ग्राम पंचायत के आरा गांव के रहने वाले हैं। चान्‍हो प्रखंड में जन्‍मेजय जैसे करीब 250 किसान हैं, जिनके नाम से मनरेगा के तहत कुएं बनने थे, लेकिन कुआं तैयार होने के बाद भी उसका पेमेंट उन्‍हें नहीं मिल सका है। इसकी वजह से ये किसान प्रखंड कार्यालय के चक्‍कर लगा रहे हैं, वहीं धरना भी दे चुके हैं।

अभी पिछले महीने की ही बात है। चान्हो प्रखंड के पतरातू गांव के एक किसान लखन महतो (45 साल) ने 26 जुलाई को खुदकुशी कर ली थी। इस किसान ने मनरेगा योजना के तहत कुआं बनाया था, जिसका पेमेंट नहीं हो रहा था।

लखन महतो के नाम पर वित्तीय वर्ष 2017-18 में मनरेगा के तहत 3.54 लाख रुपये का कूप (कुआं) स्वीकृत हुआ था। उसने अपने पैसे से कुआं का निर्माण करवाया। इस दौरान योजना से उसे 2,01,471 रुपये का भुगतान हुआ, लेकिन शेष 1.53 लाख रुपये का भुगतान नहीं होने से वह परेशान चल रहा था।

मृतक किसान लखन महतो का फाइल फोटो

लखन महतो ने कूप का निर्माण कराने के लिए अपने तीन रिश्तेदारों से डेढ़ लाख (1,50,000 रुपये) रुपये कर्ज ले रखा था। एक रिश्तेदार से उसने 80 हजार रुपये लिये थे, जबकि दूसरे और तीसरे से क्रमश: 40 और 30 हजार रुपये लिये थे।

लखन महतो की तरह ही चान्‍हो प्रखंड के कई किसानों ने कूप का निर्माण खुद के पैसों से कराया है। इनमें से बहुतायत में पेमेंट के लिए प्रखंड कार्यालय का चक्‍कर लगा रहे हैं।

ऐसे ही एक किसान हैं यमुना उरांव (44 साल), जोकि चान्‍हो प्रखंड के बदरी गांव के रहने वाले हैं। यमुना बताते हैं, ''मुझे 3.54 लाख रुपये का कूप स्वीकृत हुआ था। तीन महीने पहले ही मैंने कूप बनाकर तैयार कर दिया। मैंने कुएं के लिए 1 लाख रुपए का ईंट ले रखा है, कुछ और उधार लिया है। प्रखंड कार्यालय की ओर से अबतक पैसा नहीं मिला है। मैं बहुत परेशान हूं।''

यमुना कहते हैं, ''अभी लखन ने आत्‍महत्‍या कर ली। वो मजबूर था, मैं भी मजबूर हूं। लोग बकाया पैसा मांगते हैं, इस डर से मैं उनसे छिपकर रहता हूं। कुछ दिन पहले प्रखंड कार्यालय पर धराना भी दिया, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है। सरकार से बस यह अपील है कि गरीब किसानों का पैसा दे दें, हमारा पैसा रोक कर उन्‍हें क्‍या मिलेगा।''

किसान यमुना उरांव का तैयार किया हुआ कुआं। 

बात करें मनरेगा के बकाया पेमेंट की तो मनरेगा की वेबसाइट पर जो आंकड़ा है उसके मुताबिक, झारखंड के 24 जिलों में कुल 1 करोड़ 5 लाख के करीब बकाया है। हालांकि चान्‍हो प्रखंड के ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) संतोष कुमार बताते हैं, नियम के अनुसार किसानों का बकाया हो ही नहीं सकता। कुएं का निर्माण मनरेगा की योजना के तहत हो रहा है। ऐसे में जो भी लाभुक (कुआं जिनके नाम से स्वीकृत हुआ) है वो कुएं के निर्माण में जॉब कार्ड के आधार पर मजदूर के तौर पर काम करता है। वो जितने दिन काम करेगा उसे उसकी मजदूरी दी जाएगी।''

बीडीओ संतोष कुमार बताते हैं, ''इसके अलावा निर्माण सामग्री पंजीकृत वेंडर के द्वारा ही लेनी होती है। जो किसान अपने पेमेंट की बात कर रहे हैं वो किस आधार पर कर रहे हैं, मुझे नहीं पता। क्‍या उनके पास बाहर से निर्माण सामग्री लेने का कोई लिखित आदेश है। जब वेंडर ही निर्माण सामग्री देगा तो किसान को भुगतान करने की बात ही नहीं आती।''

बीडीओ की इस बात पर इस मामले को लेकर प्रखंड कार्यालय पर धरना देने वाले कृष्‍ण मोहन कहते हैं, ''वेंडर से सप्‍लाई की बात गलत है। प्रखंड के पास केवल 7-8 वेंडर हैं। ऐसे में सबको सामान सप्‍लाई करना उनके बस की बात नहीं है। ऐसे में किसान खुद ही सामान खरीद कर कुआं बना रहे हैं। वेंडर से सप्‍लाई पर इस लिए भी जोर दिया जा रहा है कि ऐसे में अध‍िकारी कमीशन खा सकते हैं। किसानों के अकाउंट में सीधे पैसे भेजने में उन्‍हें कमीशन नहीं मिलेगा।''

कृष्‍ण मोहन कहते हैं, ''मेरी जानकारी में 250 ऐसे किसान हैं जो पेमेंट न मिलने की वजह से परेशान हैं। किसी ने खेत गिरवी रखकर कुआं बनाया है तो किसी ने उधार लेकर, अब उनका पेमेंट नहीं मिल रहा।'' कृष्ण मोहन बताते हैं, ''लखन महतो की मौत के बाद ऐसा कहा गया था कि किसानों का पेमेंट जल्‍द से जल्‍द किया जाएगा। फिलहाल तो ऐसा होते नहीं दिखता। अगर यही स्‍थ‍िति रहीं तो किसान फिर से धरना देने को मजबूर होंगे।'' 

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