अभी तक यूरिया की एक बोरी का पचास किलो का पैक आता था, लेकिन जल्द ही किसानों को 45 किलो की बोरी मिलने लगेगी, इससे यूरिया की खपत में कमी आएगी।
सीतापुर जिले के इफको के असिस्टेंट मैनेजर शिव शुक्ला का कहते हैं, "किसानों ने ये मानक बना लिया है कि कितने क्षेत्रफल में कितनी यूरिया डालनी है, इससे खेत में मानक से अधिक यूरिया का छिड़काव कर देते हैं, लेकिन 45 किलो की बोरी आने से यूरिया कम डालेंगे, जिससे उनका खर्च भी होगा और पर्यावरण पर भी ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।'
अभी तक किसानों को 50 किलो की एक बोरी के लिए 326 रुपए 50 पैसे देने पड़ते थे, लेकिन 45 किलो की इस बोरी का दाम 295 रुपए रखा गया है। भारत यूरिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश का यूरिया उत्पादन कुल मांग 320 लाख टन से कम रहने के कारण करीब 50-70 लाख टन यूरिया का सालाना आयात करना पड़ता है। यूरिया सबसे आम उर्वरक है और इस पर सरकार बहुत अधिक सब्सिडी देती है। सरकार यूरिया पर सालाना 40,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी देती है।
शिव शुक्ला आगे बताते हैं, "नीम लेपित यूरिया आने से यूरिया की खपत में कमी आएगी, क्योंकि ये ज्यादा प्रभावशाली होता है, क्योंकि इसके आने के बाद भी किसान अपने हिसाब से ही यूरिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अब इससे इसकी खपत में कमी आएगी।"
45 किलो की बोरी को बाजार में लाने का मुख्य उद्देश्य यूरिया की खपत को कम करना और उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना है। क्योंकि यूरिया अन्य उर्वरकों से सस्ता है, इसलिए किसान इसका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। सरकार की ओर से इसके लिए सब्सिडी भी मिलती है। भारत में पिछले वर्ष से करीब 2.4 करोड़ टन यूरिया का उत्पादन हो रहा है जो 2.2 करोड़ टन की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।