मौसम की मार से हजारों एकड़ फसल बर्बाद: किसान बोले, 'बादलों को देखकर लगता है डर'
फरवरी का महीना किसानों पर भारी पड़ रहा है। भारी बारिश और ओलावृष्टि से मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में फसलों को पहुंचा है भारी नुकसान।
हृदयेश जोशी, अरविंद शुक्ला, अमित सिंह, गाँव कनेक्शन
नई दिल्ली/लखनऊ। फरवरी में बदमिजाज मौसम की मार किसानों पर भारी पड़ रही है। बेमौसम बारिश और भारी ओलावृष्टि के चलते यूपी, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अब तक किसानों की हजारों एकड़ फसल चौपट हो चुकी है।
सबसे ज्यादा नुकसान मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ पश्चिमी यूपी में हुआ है। ओलावृष्टि से सब्जियों की फसल, सरसों, दलहनी फसल के साथ अफीम की खेती को नुकसान पहुंचा है।
मध्य प्रदेश में इंदौर से 40 किलोमीटर दूर सकलोडा गाँव के किसानों की कई बीघे फसल मौसम की भेंट चढ़ गई है। बुधवार मध्यरात्रि (13 फरवरी) के बाद भारी बारिश और ओलावृष्टि हुई। देपालपुर तहसील के इन किसानों ने गाँव कनेक्शन को अपनी बर्बाद हुई फसल की तस्वीरें भेजीं और बताया कि उनके लिये यह साल बेहद ख़राब रहा है।
महेश्वर सिंह पटेल (55 वर्ष) कहते हैं, "15 से 20 बीघा में लगी सारी फसल बर्बाद हो गई है। कुछ नहीं बचा।"बर्बाद हुई फसल में गेहूं, चना और मसूर जैसी फसलें शामिल हैं। पटेल के साथी कैलाश चौहान केंद्र और राज्य सरकार से मदद की गुहार कर रहे हैं। वह कहते हैं, "मोदी सरकार हो या कमलनाथ सरकार... हमें नहीं जानना... कोई भी हमारी मदद करे क्योंकि हम किसान बहुत परेशान हैं।"
मध्य प्रदेश में इस बार बारिश से सबसे ज्यादा नुकसान एमपी के मंदसौर और उससे सटे राजस्थान के इलाकों में हुआ है। यहां सैकड़ों एकड़ में अफीम की फसल चौपट हो गई। पानी प्रभावित इस इलाके में ये ही मुख्य फसल है।
मंदसौर निवासी भगत सिंह गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हमारे यहां लगभग 50 गाँव इस ओले और तेज बारिश की चपेट में है और फसलें सब चौपट हो गईं हैं। गेहूं, सरसों सहित अन्य फसल खेतों में तेज बारिश से तहस-नहस हो गए हैं। अफीम की खेती भी लगभग 40 से 90 प्रतिशत तक नष्ट हो गयी है।"
उज्जैन जिले के बड़नगर तहसील और माधवपुरा क्षेत्र में भी जमकर ओलावृष्टि हुई है। देवास जिले के टोंक-खुर्द ब्लॉक में तेज हवाओं से खेतों में फसल एकदम सपाट हो गई है। मौसम की मार से किसान भयभीत नजर आ रहे हैं। हरियाणा के प्रगतिशील किसान और किसान वैज्ञानिक ईश्वर सिंह कुंडू ने ट्वीटर पर लिखा, "अब बादलों को देखकर किसानों को डर लगता है।"
इस वर्ष 20 जनवरी के बाद 14 फरवरी तक 4 बार भारी तेज बारिश और ओलावृष्टि हुई। मौसम का ये बदला रुख 2 से 3 दिनों तक रहा है। इस बार भी मौसम विभाग ने 14, 15 और 16 फरवरी के लिए चेतावनी जारी की थी। भारत मौसम विज्ञान विभाग, नई दिल्ली के वैज्ञानिक चरन सिंह बताते हैं, "पश्चिमी विक्षोभ ईरान और उसके आस-पास के क्षेत्र में केंद्रित है, जिसके चलते उत्तर भारत में मौसम का रुख बदला रहेगा।"यूपी में कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विषय के शोधार्थी विजय दुबे के मुताबिक शिवरात्रि के बाद मौसम साफ होने की संभावना है।
इस साल पहले जनवरी और फरवरी में तेज़ बरसात और ओला वृष्टि ने उत्तर भारत के किसानों का काफी नुकसान किया। पंजाब के संगरूर ज़िले में ही 3000 एकड़ से अधिक ज़मीन पर लगी रबी की फसल बर्बाद हो गई। किसानों को 7 से 15 लाख तक का नुकसान उठाना पड़ा। संगरूर के मलेरकोटला में 108 साल की रिकॉर्ड़ तोड़ बारिश और ओलावृष्टि हुई थी।
बदमिजाज मौसम की मार और किसान लाचार
यहां मानकी गाँव के किसान कुलविंदर सिंह बताते हैं, "20 जनवरी जैसी ओलावृष्टि हम लोगों ने पहले कभी नहीं देखी थी। अकेले मेरे गाँव में 200-300 एकड़ फसल बर्बाद हुई है। खेतों में कई फीट की बर्फ जम गई थी, जिसका पानी निकलने में कई दिन लगे। सरकार (पंजाब) के आदेश पर गिरदावरी हुई है। सुना है 7-8 हजार रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा मिला है।"
किसानों को ऐसी विपत्ति से बचाने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना है। पंजाब उन राज्यों में शामिल है, जिन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नहीं अपनाई है। लेकिन देश के जिन दूसरे हिस्सों में किसानों ने फसल बीमा कराया, वह योजना भी कुछ काम नहीं आ रही।
इंदौर की देपालपुर तहसील के एक किसानों ने हमें बताया, "किसान (बर्बाद फसल के) सर्वे के लिये फोन करते हैं लेकिन बीमा एजेंट सर्वे के लिये नहीं आ रहे हैं। टॉल फ्री नंबर पहले तो चलता नहीं और जब उस पर बात होती है तो कोई हमारे पास कोई नहीं आता।"
हालांकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट करके बताया , "कल (13 फरवरी को) मंदसौर जिले में व प्रदेश में कुछ अन्य स्थानों पर ओले और बारिश से फसलों को नुकसान हुआ। किसान भाई चिंता ना करें, सरकार आपके साथ है। सर्वे करवाकर मुआवज़ा दिया जायेगा।"
साल 2016 में लागू हुई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वैसे तमाम दूसरे राज्यों में सवालों के घेरे में है। सूचना अधिकार कानून के ज़रिये जो आंकड़े बाहर आये वह बताते हैं कि साल 2016-17 और 2017-18 में कुल 47,000 करोड़ से अधिक राशि प्रीमियम के लिए वसूली गई, लेकिन कुल भुगतान की रकम 32000 करोड़ से भी कम है।
किसानों की कवरेज इस दौर में आधा प्रतिशत से कम बढ़ी, लेकिन प्रीमियम 350 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा। ऐसे में देपालपुर के किसान हों या संगरूर के, वह मौसम की बदमिजाजी और फसल को होने वाले दूसरे ख़तरों के प्रति बेहद असुरक्षित हैं।
मौसम की मार से बिहार के किसान भी भयभीत है। सीमांचल में पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड के माधव झा बताते हैं, "मक्के में 15-25 हजार रुपए एकड़ का खर्चा आता है, अगर कुदरत का प्रकोप हो जाए तो एक पैसा नहीं मिलेगा। 2015-16 में भीषण तूफान आया था, लेकिन हमें एक पैसा नहीं मिला।"
बेमौसम बारिश से फसलों को फायदा लेकिन ओले गिरे तो होगा नुकसान
रबी के सीजन में आया ये बदलाव आलू, सरसों, चना, मसूर, बाजरा, फूलगोभी, मटर और दूसरी सब्जियों के लिए घातक है। तराई इलाकों में हजारों एकड़ सब्जियां बर्बाद हुई हैं, जिसका असर बाजारों में नजर आएगा।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के किसान नारायन लाल बताते हैं, "तेज बारिश के साथ अगर ओले और हवा चलती है तो नुकसान बढ़ जाता है। खड़ी फसल गिर जाती और मौसम में नमी होने वो गल भी जाती है।"
मध्य प्रदेश के सागर जिला निवासी आकाश चौरसिया बताते हैं, "किसान मौसम के हिसाब से यदि प्रबंधन करे तो कुछ हद तक फसलों को बचाया जा सकता है। हमारे यहां बारिश तो हल्की ही हुई है, लेकिन आस-पास के जिलों में काफी बारिश हुई है। इस ओलावृष्टि का दलहन और तिलहन फसलों पर नुकसान बहुत ज्यादा है और साथ ही साथ आलू, टमाटर आदि सब्जियों पर गलन का प्रभाव उम्मीद से अधिक हुआ है। हमारे यहां खासकर टिकमगढ़, दमोह और छतरपुर में पान की खेती काफी होती है लेकिन ओले गिरने से बहुत नुकसान हुआ है।"
"करीब 5-7 मिनट तक सिर्फ पत्थर (ओले) गिरे हैं, फिर बारिश हुई। एक एक पत्थर कंचे के बराबर है। फसल का नुकसान तो होगा ही।" अभय सिंह, किसान, हरगांव सीतापुर, यूपी के सीतापुर में शुक्रवार १५ फरवरी को दोपहर को ओले गिए
मौसम की मार से छत्तीसगढ़ के किसान भी बेहाल हुए हैं। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुरुद निवासी ब्रह्मानंद साहू बताते हैं, "कुछ समय पहले हुई बारिश से चने की फसल को नुकसान पहुंचा था। इसलिए काफी किसानों को उन खेतों में धान लगाने पड़े।"छत्तीसगढ़ उन राज्यों में है जहां रबी के सीजन में भी धान की खेती होती है।
मौसम विभाग के अनुसार, वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के असर से उत्तराखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, विदर्भ, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना के कई अलग- अलग हिस्सों में ओलों के साथ आंधी आ सकती है। इसके अलावा ठंडी हवाएं चलने की संभावना जताई जा रही है। तापमान में गिरावट गेहूं के लिए फायदेमंद है। फरवरी में गेहूं की बालियां आने लगती है, ये सिलसिला मार्च तक चलता है। ऐसे में अगर फरवरी आखिर से मार्च तक तामपान बढ़ता है तो गेहूं के दाने मर जाते हैं।
बिहार में मुजफ्फरपुर के कृषि विभाग के वैज्ञानिक डॉ. ए. के. गुप्ता कहते हैं, "इस बारिश से गेहूं, मक्का और प्याज की फसलों को फायदा होगा, लेकिन अगर ज्यादा ओलावृष्टि हुई तो बहुत नुकसान होगा। ऐसे में किसानों को चाहिए कि दो-तीन दिन फसलों की सिंचाई न करें। बारिश होने के बाद यूरिया का छिड़काव करें, साथ ही किसान हल्दी, ओल व आलू की खुदाई न करें। राई, तोरी व सरसों की कटाई सावधानीपूर्वक करें।"
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बजट को वर्ष 2018-19 में 58080 करोड़ रु. से बढ़ाकर वर्ष 2019-20 में 141,174.37 करोड़ रु. किया गया है। यह एक वर्ष का बजट वर्ष 2009-14 के पाँच वर्षों के बजट 121,082 करोड़ रुपए से भी 16.6% अधिक है।
बीते वर्षों में इस तरह बदला मौसम
- - 2011 में मार्च से मई और जुलाई से अगस्त के बीच ज़्यादा बारिश हुई, वहीं नवंबर में सबसे ज़्यादा बारिश हुई, कई जगह बाढ़ आई
- - 2012 में मार्च से मई, जून से सितंबर के बीच बारिश, 13 सितंबर को उत्तराखंड में बादल फटा, काफी बारिश हुई, कई हिस्सों में बाढ़ आई, उत्तर-मध्य भारत में जून से सितंबर के बीच बारिश, असम में बाढ़
- - 2013 में केदारनाथ त्रासदी, 16-18 जून में 24.5 सेंटीमीटर से ज़्यादा बारिश, बाढ़ और भूस्खलन हुआ
- - 2014 सितंबर में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़, पुणे में लैंडस्लाइड हुआ
(पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को जलवायु परिवर्तन पर दी गई पहली द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट 2015 के अनुसार)