दंतेवाड़ा: पुलिस कैंप के विरोध में एक साथ इकट्ठा हुए सैकड़ों आदिवासी
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक बार फिर कई जिलों के सैकड़ों आदिवासी विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं, इस बार पुलिस कैंप के विरोध में सब इकट्ठा हुए हैं।
दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)। एक बार फिर सैकड़ों आदिवासी विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं, तीन जिलों के आदिवासियों ने पारम्परिक हथियारों के साथ प्रदर्शन किया।
दंतेवाड़ा के गुमियापाल पंचायत के आश्रित ग्राम आलनार के पहाड़ में लौह अयस्क की खदान है जिसे एक निजी कम्पनी को खनन के लिए दे दिया गया है, लेकिन नक्सली गतिविधियों की वजह से निजी कम्पनी अब तक लौह अयस्क का खनन नहीं कर सकी है। खनन के लिए गुमियापाल में पुलिस का नया कैंप स्थापित होना है, जिसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस कैम्प के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण करेगी और आलनार की लौह अयस्क खदान निजी कम्पनी के लिए शुरू करवाएगी।
बैलाडीला क्षेत्र के ग्रामीण माइंस और जमीन अधिग्रहण का विरोध करते हुए एक साथ हो गए हैं। हजारों ग्रामीण किरंदुल थाना क्षेत्र के ग्राम गुमियापाल में इकट्ठे हुए। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन वास्तविक ग्रामसभा की बजाए फर्जी तरीके से ग्राम सभा करके लौह अयस्क खनन साथ दूसरे काम भी करने लगते हैं। अब ऐसा होने नहीं देंगे।
जनपद सदस्य राजू भास्कर ने कहा कि आलनार ग्रामसभा को भी हिरोली की तरह शून्य घोषित किया जाए। ग्रामीणों ने आरती स्पंज आयरन कंपनी को दी गई लीज को निरस्त करने की मांग की है।
ग्रामीणों ने क्षेत्र में प्रस्तावित पुलिस कैंपों का भी विरोध किया है। विरोध प्रदर्शन में शामिल ग्रामीणों ने कहा कि सुरक्षाबलों का काम हमारी सुरक्षा करना है लेकिन सुरक्षाबलों का इस्तेमाल बड़ी कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए किया जा रहा है इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए।
आदिवासी नेता राजकुमार ओयामी ने कहा कि इलाके में पुलिस का विरोध नहीं है, लेकिन उनकी मौजूदगी से जीवन जीने का डर है। पुलिस कैंप खुलने के बाद आदिवासी नक्सली और फोर्स के बीच फंस जाते हैं। फोर्स उन्हें नक्सली कहकर मारती है तो नक्सली पुलिस का मुखबिर और सहयोगी बताकर हत्या करते हैं। आदिवासी इलाके का विकास चाहते हैं पर खून खराबे से नहीं। इसलिए गांव में स्कूल, आश्रम, हॉस्पिटल, सड़क बनाएं।
ग्रामीणों के मुताबिक पूर्व में हिरोली की ग्रामसभा आखिर फर्जी साबित हुई और आलनार ग्रामसभा की स्थिति भी वैसी ही है। पूरे बस्तर सभंग में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244(1) पांचवीं अनुसूची लागू है, इसके बावजूद ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर गांवों के जमीन का अधिग्रहण कर सरकार लीज पर दे रही है। यह आदिवासियों के अधिकार पर प्रहार है। साथ ही इलाके में प्रस्तावित पुलिस कैंपों का विरोध करते ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है लेकिन प्रशासन इन्हीं पुलिस का भय दिखाकर ग्रामीणों का जमीन अधिग्रहण बड़ी कंपनियों के लिए कर लेती है। इसलिए इस पर भी रोक लगनी चाहिए।