महिलाएं भले पुरुषों के मुकाबले ज्यादा योग्य हों लेकिन वेतन के मामले में अभी भी पीछे 

Update: 2017-12-19 18:54 GMT
कामकाजी महिलाओं की परेशानियां।

महिलाएं भले हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे हों लेकिन जहां बात आती हैं सैलरी की, महिलाएं पुरुषों से पीछे हो जाती हैं। भले काम का अनुभव, शिक्षा, उम्र और पेशा समान हों या ज्यादा हो। उन्हें वेतन पुरुष सहकर्मी से कम मिलता है।

ऑनलाइन करियर ऐंड रिक्रूटमेंट सलूशन प्रवाइडर मॉनस्टर इंडिया के हालिया सर्वे से पता चलता है कि देश में महिलाओं की औसत सैलरी पुरुषों के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है। पुरुषों की औसत सैलरी जहां 288.68 रुपए प्रति घंटा है, वहीं महिलाओं की 207.85 रुपए प्रति घंटा है। सरकारी नौकरियों को छोड़कर ये भेदभाव हर क्षेत्र में हैं।

लखनऊ की रहने वाली कविता मिश्रा (35 वर्ष ) एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं। वो बताती हैं, “हम भले बराबर मेहनत करते हों लेकिन हमारी सैलरी स्टॉफ के दूसरे पुरुषों से कम ही होती है इसके पीछे कई कारण भी होते हैं। हम देर रात रुक कर काम नहीं कर सकते। उन्हें लगता है महिलाएं छुट्टियां भी ज्यादा लेती हैं।”

ओईसीडी (आर्गनाइजेशन फार इकोनॉमिक को आपरेशन एंड डेवलपमेंट ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों के जन्म के कारण महिलाओं के करियर में अक्सर एक ठहराव आ जाता है। इसके अलावा उनके दफ्तरों में भेदभाव भी होता है। इन सब कारणों की वजह से वह पुरुषों जितना नहीं कमा पाती हैं।

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अक्सर ये भी देखा गया है कि महिलाओं के करियर में बच्चे के जन्म के बाद ठहराव आ जाता है। दिल्ली की रहने वाली प्रियंका शर्मा (40 वर्ष ) बताती हैं, “मैं एक प्राइवेट कंपनी पर अच्छे पद पर कार्यरत थी लेकिन बच्चा होने के बाद दोनों जिम्मेदारी संभालना मेरे बस की बात नहीं थी इसलिए नौकरी बीच में छोड़नी पड़ी।”

स्त्री-पुरुष पर मॉनस्टर वेतन सूचकांक (एमएसआई) के अनुसार मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में औसत पुरूष-महिला वेतन अंतर 29.9 फीसदी है जो विश्व में सबसे ज्यादा भारत में है। वहीं ओईसीडी रिपोर्ट कहती है कि अगर 2025 तक महिला और पुरुषों के वेतन में अंतर को 25 फीसदी भी कम कर लिया जाता है तो ओईसीडी के 35 सदस्य देशों में आर्थिक विकास की संभावनाएं बहुत बेहतर होंगी। थिंकटैंक के मुताबिक अगर महिला और पुरुष उद्यमियों की संख्या बराबर होती तो वैश्विक जीडीपी में 2 प्रतिशत बढोत्तरी की उम्मीद की जा सकती है जो 1.5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास होगी।

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महिलाओं को रिटायरमेंट के बाद सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं भी कम मिलती हैं, क्योंकि उनकी जिंदगी की कुल जमा कमाई कम हो पाती है। ऐसा इसलिए भी होता है कि वे किसी साल अपने बच्चों का ध्यान रखने के लिए काम नहीं कर पातीं या फिर घर के किसी बीमार की देखभाल के लिए अवकाश की वजह से उनकी आमदनी कम रह जाती है। जाहिर है, रिटायरमेंट संबंधी सुविधाओं का आकलन आपकी कमाई पर ही होता है।

महिलाओं के काम न कर पाने के पीछे कारण

एक पुरुष के पास आय भुगतान वाली नौकरी करने की उम्मीद की जाती है। जब वह ऐसी नौकरी चाहता है तो उसे किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है। दूसरी तरफ, लड़कियों और महिलाओं को काम करने, रोजगार योग्य नए कौशल सीखने के लिए अपने पिता, भाई, पति और कुछ मामलों में ग्राम पंचायत तक से अनुमति लेनी पड़ती है।

हरियाणा के झज्जर जिले में, ज्योति कादियन एक स्टील फैक्ट्री में काम करती है। ज्योति की शादी नवंबर में नौसेना में काम करने वाले एक लड़के से होने वाली है। ज्योति के काम करने पर उसे कोई एतराज नहीं है। लेकिन यह एतराज केवल सरकारी नौकरी करने पर नहीं है। कादियन कहती हैं, “सरकारी नौकरी पाने के लिए मैं प्रयास कर रही हूं, लेकिन यह आसान नहीं है। ”

मजदूर महिलाओं की भी यही स्थिति

देश भर में सर्वे करने वाली संस्था, नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में पुरूषों को महिलाओं की अपेक्षा 56 प्रतिशत ज्यादा दिहाड़ी मिलती है, जबकि 1961 के वेतन पारिश्रामिक अधिनियम के अनुसार महिला और पुरूष दोनो को समान वेतन देने का नियम है। शहरों की तरफ पलायन कर रही महिलाओं के साथ मनरेगा और खेती में काम करने वाली महिलाओं को भी रोजगार पाने के लिए कम पैसे में काम करना पड़ रहा है।

मजदूर महिलाएं।

सेहत पर भी बुरा असर

ऑफिस और घर संभालने की दोहरी जिम्मेदारी के कारण तनाव बढ़ता है और बीमारियां पैदा होती हैं। एसोचैम के सर्वे के अनुसार 78 फीसदी कामकाजी महिलाओं को कोई ना कोई लाइफस्टाइल डिसॉर्डर है। 42 फीसदी को पीठदर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की शिकायत है। इसी सर्वे के अनुसार कामकाजी महिलाओं में दिल की बीमारी का जोखिम भी तेजी से बढ़ रहा है। 60 प्रतिशत महिलाओं को 35 साल की उम्र तक दिल की बीमारी होने का खतरा है। 32 से 58 वर्ष उम्र की महिलाओं के बीच हुए इस सर्वे के अनुसार 83 प्रतिशत महिलाएं किसी तरह का व्यायाम नहीं करती और 57 फीसदी महिलाएं खाने में फल-सब्जी का कम उपयोग करती हैं।

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