जानिए जग के नाथ भगवान जगन्नाथ से जुड़ी कुछ बातें

रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा अपने घर यानी कि जगन्नाथ मंदिर से रथ में बैठकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है।

Update: 2018-07-14 09:17 GMT

जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है "ब्रह्मांड के भगवान"। जगन्नाथ भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। इनका एक बहुत बड़ा मन्दिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। इन्हें हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और बांगलादेश में पूजा जाता है। जगन्नाथ को एक गैर-सांप्रदायिक देवता माना जाता है, यानी ये किसी एक धर्म, संप्रदाय या राजनीतिक समूह से नहीं जुड़ें हैं।


क्या आप जानते हैं क्यों भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है अधूरी

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में हाथ और पैर के पंजे नहीं होते। दरअसल इसके पीछे भी एक मान्यता है। मान्यता है कि मालवा नरेश इंद्रद्युम्न जो भगवान विष्णु के बड़े भक्त थे, उनके सपनों में आकर खुद श्री हरि ने उन्हें मूर्ति बनवाने को कहा था। ऐसा माना जाता है की शिल्पकार विश्वकर्मा जब मूर्ति बना रहे थे तब राजा के सामने शर्त रखी कि वह दरवाज़ा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और मूर्ति बनने तक वो दरवाज़ा नहीं खोलेंगे और अगर मूर्ति बनने से पहले दरवाज़ा खोला गया तो वो मूर्ति बनाना छोड़ देंगे। राजा ने तब तो बात मान ली लेकिन एक दिन राजा ने दरवाजे खोल दिए तब विश्वकर्मा अपने शर्त के अनुसार वहां से ग़ायब हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति अधूरी रह गई।

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जगन्नाथ रथ यात्रा, जानिए क्या है महत्व 


रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा अपने घर यानी कि जगन्नाथ मंदिर से रथ में बैठकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। ये यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस उत्सव को आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है यात्रा के दौरान रथ खींचने वालों के सारे दुःख दूर हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और यह अन्य रथों से आकार में भी बड़ा होता है। यह यात्रा में बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाशव है, इनका रंग सफ़ेद होता है. रथ के रक्षक पक्षीराज गरुड़ है। रथ की ध्वजा यानि झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है।

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पौराणिक कथाओं के लेखक देवदत्त पटनायक ने अपनी किताब 'देवलोक-2' में इस रथयात्रा का जिक्र किया है और कई ऐसे सवालों के जवाब भी दिए हैं, जो शायद आज से पहले कम ही लोगों को मालूम थे। रथयात्रा के बारे में देवदत्त बताते हैं कि जगन्नाथ मंदिर आज से 1000 साल पूर्व बना था, जबकि यहां स्थापित प्रतिमाएं हर 14 साल में बदली जाती हैं। रथयात्रा के लिए जिन रथों का निर्माण किया जाता है उनमें किसी तरह की धातु का इस्तेमाल भी नहीं होता।

(पौराणिक कथाओं के आधार पर)

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