सोलर पम्प योजना किसानों के लिए अच्छी तो है लेकिन जल संरक्षण का ध्यान कौन रखेगा ?
सोलर पम्प से किसानों का बिजली के बिल, और बिजली की आवाजाही की मुश्किलों से राहत मिलती है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। सोलर पम्प के प्रयोग ने भूमिगत जल संकट को और बढ़ा दिया है।
साल 2020-21 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अन्नदाताओं को ऊर्जा दाता बनाएंगे। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने सौर ऊर्जा पर खासा जोर दिया। 20 लाख किसानों को सोलर पंप देने का प्रावधान किया गया है।
बजट 2020-21 में प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत 11127 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान (कुसुम) के विस्तार की बात कही गई है, जिसके तहत 20 लाख किसानों के यहां स्टैंड अलोन सौर पम्प स्थापित किए जाएंगे। इसके साथ ही जिन इलाकों में खेती नहीं हो सकती, जमीन उपजाऊ नहीं है, वहां सोलर पम्प स्थापित कर ग्रिड से जोड़ा जाएगा, ताकि किसान सोलर एनर्जी बिजली पैदाकर ग्रिड को सप्लाई कर आमदनी बढ़ा सकें। इसके तहत 15 लाख किसानों को ग्रिड से जोड़ने की बात है।
वित्त मंत्री ने कहा कि इस योजना से किसानों की डीजल और केरोसिन पर निर्भरता घटी है। वो सौर्य ऊर्जा से जुड़े हैं। बहुत सारे किसान ऊर्जा उत्पादन कर उसे ग्रिड (बिजली कंपनी) को बेचने में सक्षम हुए हैं। भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना आदि में ज्यादातर सिंचाई बिजली से होती है। पंजाब हरियाणा में मुफ्त जबकि बाकी राज्यों में कम कीमत पर किसानों को बिजली दी जाती है। जबकि यूपी और बिहार में डीजल पंप सिंचाई के प्रमुख साधन है।
सोलर पम्प से किसानों का बिजली के बिल, और बिजली की आवाजाही की मुश्किलों से राहत मिलती है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। सोलर पम्प के प्रयोग ने भूमिगत जल संकट को और बढ़ा दिया है। पर्यावरण पर काम करने वाले कार्यकर्ता और जानकारों का कहना है किसानों के सोलर पम्प की सहूलियत देने की योजना बहुत अच्छी है, लेकिन इसमें भूमिगत जल संरक्षण के पहलू पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक साल 2019-20 में सिर्फ सिंचाई के लिए सोलर पम्प सबसे ज्यादा महाराष्ट्र (30000), मध्य प्रदेश (25000) तमिलनाडु (25000), तमिलनाडु (17000) और में यूपी (8000) दिए गए जबकि सिंचाई और ग्रिड दोनों से जुड़े पम्प की बात करें तो सबसे ज्यादा 2000 तमिलनाडु में थे, दूसरे नंबर मध्य प्रदेश 15000 और तीसरे नंबर 12500 राजस्थान था।
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इन राज्यों पर नजर डालेंगे तो इनमें एक समानता है, महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तक सूखा प्रभावित रहे हैं और इन्हीं राज्यों में सोलर पम्प सबसे ज्यादा दिए गए हैं।
सोलर पम्प योजना से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई राज्यों में फायदा भी हुआ है। जहां पर सिंचाई का बड़ा हिस्सा बिजली से जुड़ा है लेकिन बिजली की काफी किल्लत रहती है। मध्य प्रदेश में इस बार रबी के सीजन में किसानों ने दिल में बिजली देने के लिए आंदोलन चलाया, क्योंकि सिंचाई के लिए बिजली रात में मिल रही थी और सर्दियों में किसानों को रातों में जाकर पानी लगाना पड़ा रहा था। दिसंबर के महीने में मध्य प्रदेश में कई किसानों की मौत की भी ख़बरें सुर्खियों में रहीं।
महाराष्ट्र के बुलदाना जिले के जलगांव ग्राम पंचायत में कई दर्जन किसानों ने दो साल पहले सोलर पंप लगवाए। उनकी जिंदगी अब कुछ आसान हुई है। पिछले दिनों गांव कनेक्शन की पर्यावरण संपादक निधि जम्वाल एक रिपोर्ट के सिलिसले में इस गांव पहुंची थीं। ग्राम पंचायत के सचिव अविनाश नागरे ने कहा, "पहले उन्हें पानी लगाने के लिए रात में जाना पड़ता था, साथ ही बिजली का खर्च भी साल में 10000-12000 रुपए आता था लेकिन वह अब बच रहा है।" अविनाश नागरे का गांव विदर्भ के उस इलाके में है जहां अक्सर सूखे के हालात रहते हैं। उन्होंने इस दौरान एक और बात कही जिस पर सोचने की जरूरत है।
"साल के 4-5 महीने में सोलर पम्प से पानी नहीं आता है। क्योंकि तब सुखाड़ (सूखा) होता है। सोलर पम्प योजना अच्छी है लेकिन इससे रेन वाटर हार्वेस्टिंग को भी जोड़ना चाहिए।"
साल 2019-20 के बजट में मोदी सरकार ने कुसुम परियोजना के लिए 34,422 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। योजना का उद्देश्य बिजली और डीजल पर किसानों की निर्भरता कम करना है। साल 2019 में कुल 240978 सौर्य ऊर्जा आधारित यूनिट स्थापित करने का लक्ष्य था, जिसके तहत बिजली निर्माण के लिए 10,000 मेगावाट की 1000 यूनिट निर्धारित थी, जबकि 17 लाख 50 हजार स्टैंड अलोन सोलर पंप लगाए जाने थे जो सिर्फ सिंचाई के लिए थे, जबकि 10 लाख पंप ऐसे थे जो सिंचाई के अतिरिक्त वाली बिजली ग्रिड को सप्लाई करना था।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने कुसुम योजना (सोलर पंप) को लेकर पिछले साल विस्तृत रिपोर्ट की है। गांव कनेक्शन की पर्यावरण संपादक निधि जम्वाल ने महाराष्ट्र समेत कई इलाकों से भी इस पर रिपोर्ट की है। उन्होंने टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्र भूषण से उनकी रिपोर्ट को लेकर भी चर्चा जी, जिसमें वे ये प्रमुख बिंदु उठाते हैं।
सीएसई के डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्र भूषण अपनी बातचीत में कहते हैं, "अगर आप किसानों को सोलर योजना से जोड़ने में सफल होते हैं तो बिजली की भारी भरकम सब्सिडी कम हो सकती है। पिछले 10 वर्षों में सोलर यूनिट की लागत काफी कम हुई है। सोलर किसानों के लिए बहुत अच्छा है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। वैसे तो भूजल दोहन बहुत से कारणों से बढ़ा है लेकिन जैसे-जैसे बिजली सस्ती होती गई इसका दुरुपयोग बढ़ा है।"
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वे आगे कहते हैं, "हमें लघुकालीन और दीर्घकालीन हितों को देखकर सोचना होगा। सोलर पम्प व्यवस्था सही है अगर इसमें पानी के संरक्षण का विषय गंभीरता से जोड़ा जाए। सूखा प्रभावित इलाकों में ये सोलर पंप 4-5 महीने काम नहीं करते। वरना हम किसानों की सहायता के नाम पर उनको नुकसान पहुंचा रहे हैं।"
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार भारत में तीन करोड़ पम्प प्रयोग में हैं। इसमें से एक करोड़ पम्प डीजल से चलते हैं। वितरण कंपनियां ग्रिड कनेक्शन के माध्यम से इन पम्पों को नहीं जोड़ पा रही हैं। एक रिपोर्ट यह भी है कि बिजली से चलने वाले लगभग 2 करोड़ पम्प देश की 17 फीसदी बिजली खाते हैं।
" देश में हर साल खेती के लिए 50,000 करोड़ रुपए की बिजली सब्सिडी या फ्री में दी जा रही है। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में हर साल 6,000 से 7,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जा रही है।" चंद्र भूषण कहते हैं।
चंद्र भूषण का विस्तृत इंटरव्यू यहां देखिए
पिछले साल के बजट में नरेंद्र मोदी सरकार ने किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान (कुसुम) योजना की शुरुआत की थी। योजना के तहत सौर ऊर्जा ऊपकरण स्थापित करने के लिए किसानों को केवल 10 फीसदी राशि का भुगतान करना होगा। योजना के तहत 60 फीसदी रकम केंद्र सरकार देगी, 30 फीसदी रकम बैंक लोन के रूप में देगी। कुछ राज्यों में किसान को अपने पास यूनिट की 20 फीसदी लागत तक का भुगतान करना है।