मध्य प्रदेश: नसबंदी के लिए बेहोशी का इंजेक्शन लगा कर चले गये डॉक्टर साहब? कहीं फर्श पर तो कहीं दीवार के सहारे बेसुध खड़ी रहीं महिलाएं

मध्य प्रदेश के सतना जिले में बड़ी चिकित्सकीय लापरवाही सामने आई है। 21 महिलाओं को नसबंदी के लिए बुलाया गया, उसमें से 10 का ही ऑपेशन हुआ। आरोप है कि डॉक्टर ने बेहोशी का इंजेक्शन लगाने के बाद भी 11 महिलाओं के ऑपरेशन नहीं किये।

Update: 2020-11-20 02:00 GMT
ऐसे ही फर्श पर लेटकर या दीवार के सहारे बैठकर अपनी बार का इंतजार करती रहीं महिलाएं। (सभी तस्वीरें- गांव कनेक्शन)

सतना (मध्य प्रदेश)। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति कैसी है, उसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। मध्य प्रदेश जिला सतना के रामपुर बाघेलान में स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में महिलाओं को नसबंदी के लिए बुलाया जाता है। उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन भी लगा दिया जाता है, लेकिन उनका ऑपरेशन नहीं किया जाता। परिजनों से उन्हें घर ले जाने के लिए बोल दिया जाता है। महिलाएं अस्पताल में कहीं फर्श पर तो कहीं दीवारी के सहारे खड़ी होकर अपनी बारी का इंतजार करती रहीं।

घटना बुधवार 11 नवंबर की है। रामपुर बघेलान तहसील में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 21 महिलाओं को परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत नसबंदी के लिए बुलाया जाता है, लेकिन सर्जन डॉक्टर पर आरोप हैं कि उन्होंने 21 में से केवल 10 महिलाओं का ऑपरेशन किया और सतना लौट गये।

सरदार वल्लभ भाई पटेल जिला चिकित्सालय सतना से सर्जन डॉक्टर एमएम पाण्डेय को ऑपरेशन कराने के लिए भेजा गया था। उन पर आरोप है कि वे 10 ऑपरेशन के बाद ही वे सतना चले गये। महिलाएं बेहोशी के हालत में इधर-उधर भटकती रहीं। मौके पर न कोई स्टाफ था, न ही कोई डॉक्टर।

सेंटर पर पदस्थ एक एएनएम ने नाम न बताने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "करही से दो महिलाओ को नसबंदी के लिए लाई थी। उन्हें इंजेक्शन भी दे दिया गया लेकिन डॉक्टर साहब ने ऑपरेशन से मना कर दिया। बीएमओ भी हाथ जोड़ कर कह रहे थे कि ऑपरेशन कर दीजिए लेकिन वे नहीं माने।"

इंजेक्शन लगाने के बाद बेहोश महिला।

वहीं बहेलिया भाट गाँव में काम करने वाली आशा प्रवीण शुक्ला कहती हैं, "मैं 12 बजे दो महिलाओं दीपा केवट और मीना कोल को लेकर आई थी। वहां इनको कोई इंजेक्शन दिया गया। इसके बाद डॉक्टर कोई पांडेय जी थे उन्होंने 10 ऑपरेशन करने के बाद मना कर दिया। इंजेक्शन के कारण महिलाएं परेशान रहीं।"

जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रामपुर बघेलान में परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत नसबंदी कैम्प लगाया गया था।

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इस पूरे मामले पर रामपुर बघेलान के खंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) राघवेंद्र गुर्जर ने गांव कनेक्शन को बताया, "कोविड-19 के संक्रमण के कारण 15 महिलाओं को नसबंदी कैम्प के लिए बुलाया गया था, लेकिन कैम्प के आयोजन की जानकारी लगते ही कुछ और महिलाएं भी आ गईं। जिला अस्पताल से सर्जन डॉक्टर एमएम पांडेय ने 10 ऑपरेशन किये। उनसे निवेदन भी किया कि जो महिलाएं आ गईं हैं उनका भी कर दीजिए। अगली बार से देखेंगे की संख्या ज्यादा न हो पाए। इस बात के बाद मैं अपने काम में व्यस्त हो गया। पता नहीं कब डॉक्टर पांडेय सतना चले गए। इसकी जानकारी सीएमएचओ सर को दी है।"

इस मामले पर परिवार नियोजन शिविर में ऑपरेशन करने वाले सर्जन एमएम पांडेय गांव कनेक्शन को बताया, "कोविड-19 के कारण कैम्प में 10 महिलाओं की नसबंदी की अनुमति दी गई थी। कैम्प से पहले बैठक हुई थी, जिसमें रामपुर बघेलान के बीएमओ राघवेंद्र गुर्जर भी मौजूद थे। एक महिला की नसबंदी करने में 15-30 मिनिट तक लग सकते हैं।"

इधर, ज़िला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर एके अवधिया ने कहा कि नसबंदी ऑपरेशन के लिए रामपुर बघेलान सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के कैम्प में गए डॉक्टर एमएम पांडेय को शोकॉज नोटिस जारी किया गया है।

घटना के दूसरे दिन 12 नवम्बर को 5 महिलाओं को ऑपरेशन के लिए बुलाया गया स्वाथ्य केंद्र बुलाया गया। बीएमओ रामपुर बाघेलान राघवेन्द्र गुर्जर ने बताया कि 11 नवंबर को जिनका ऑपरेशन नहीं हो पाया था उन्हें उसके अगले दिन बुलाया गया। अन्य को भी बुलाया जाएगा। जिला अस्पताल से सर्जन डॉ केएल नामदेव आए हैं।

घटना के दूसरे दिन ग्राम बांधा से आई परिजन कुसुमा ने गांव कनेक्शन को बताया, "ऑपरेशन न होने के बाद घर चले गए थे। हमारे मरीज की हालत ठीक नहीं थी। कहा गया था कि कुछ घंटों में ठीक हो जाएगा। वह एक दम बेहोशी के हालत में थी। इनका एक साल का बच्चा भी है उसे भी दूध नहीं पिला सकी। अब दोबारा आये हैं।"

डॉक्टर की वेतन वृद्धि रोकने के लिए नोटिस

रीवा संभाग के कमिश्नर राजेश कुमार जैन ने जिला चिकित्सालय सतना में पदस्थ सर्जन डॉ. एमएम पाण्डेय को दो वर्ष की वेतन वृद्धि रोकने का नोटिस दिया है। डॉ. पाण्डेय पर आरोप था कि उन्होंने 11 नवम्बर को रामपुर बघेलान स्वास्थ्य केन्द्र में आयोजित नसबंदी शिविर में भर्ती महिलाओं के ऑपरेशन में लापरवाही बरती। इसके अलावा ऑपरेशन के लिये भर्ती पांच महिलाओं का ऑपरेशन न करने, वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों के अवहेलना करने, जैसे आरोपों को गंभीरता से लेते हुए 19 नवंबर 2020 को नोटिस दिया गया। राजेश जैन ने बताया कि नोटिस का दस दिन में संतोषजनक उत्तर न देने पर एक पक्षीय कार्यवाही की जायेगी।

प्रदेश में पहले भी की जा चुकी है ऐसी लापरवाही

नवम्बर 2017: सतना जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर मैहर के सिविल अस्पताल में 38 और सभागंज में 14 नसबंदी की गई। नसबंदी के बाद सभी महिला मरीजों को जमीन में लाइन से बेहोशी हालत में लिटा दिया गया था। नियम एक दिन में तीस केस ही करने का है।

नवम्बर 2019: प्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे विदिशा जिले में 41 महिलाओं को नसबंदी के बाद जमीन पर लिटा दिया गया था। विदिशा के ग्यारसपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी की गई थी। ऑपरेशन के बाद जमीन पर ही गद्दा और चादर डालकर महिलाओं को लिटा दिया गया था।

दिसंबर 2019: सतना जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिरसिंहपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 35 महिलाओं की नसबंदी की गई थी। शाम 5 बजे के बाद डॉक्टर अस्पताल पहुंचे थे ऑपरेशन भी शुरू हुआ तो बिजली गई। डॉक्टरों ने मोबाइल टॉर्च की रौशनी में टांके लगाए थे।

जब ऑपरेशन नहीं हुआ तब परिजन महिलाओं को घर ले जाने लगे।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्य प्रदेश राज्य में नसबंदी के लिए पुरुषों की संख्या घट रही है। 2019-20 में 3 लाख 34 हजार महिलाओं की तुलना में 20 फरवरी 2020 तक 3,397 पुरुषों ने नसबंदी कराई थी। मध्य प्रदेश की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ़ 0.5% पुरुषों ने नसबंदी कराई। 2015-16 में राज्य ने 9,957 पुरुष नसबंदी कराई थी और उसके बाद के तीन वर्षों में संख्या क्रमश: 7,270, 3,719 और 2,925 रही थी।

नसबंदी के लिए महिला और पुरुषों को प्रेरित करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। मध्य प्रदेश में एक महिला की नसबंदी करने पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता को 2,000 रुपये तथा पुरुष की नसबंदी कराने पर 3,000 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाते हैं।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता महिलाओं को नसबंदी के लिए तैयार कर लेती हैं, लेकिन पुरुषों की भागीदारी बहुत कम है।

मध्य प्रदेश की पिछली कमलनाथ सरकार ने फरवरी 2020 में आदेश जारी किया था कि परिवार कल्याण कार्यक्रम के तहत एक भी पुरुष नसबंदी नहीं कराने वाले पुरुष बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (MPHWs) का वेतन काटकर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। इससे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में हड़कंप मच गया था, हालांकि बाद मे सरकार ने अपना फैसला बदल लिया था।

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