महाराष्ट्र: एक महीने में दूसरी बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हो गईं फसलें

Update: 2021-03-22 12:04 GMT
बारिश से प्याज तरबूज जैसी कई फसलों को काफी नुकसान हुआ है। सभी फोटो: साभार सोशल मीडिया

"पहले फरवरी में और फिर अब ओले गिरने के साथ ही भारी बरसात से हमारे यहां अंगूर की खेती लगभग तबाह हो गई है। नासिक और पूरा उत्तर महाराष्ट्र अंगूर के मामले में बहुत संपन्न इलाका है और मैंने खुद इस बार अपने दो एकड़ के खेत में अंगूर की फसल लगाई थी, पर ऐन मौके पर जब तैयार पैदावार को बाजार ले जाने का समय आया तो फिर मौसम ने दगा दे दिया और ओले-पानी ने अंगूर की खेती सड़ा दी। इस साल खराब मौसम के कारण मुझे पांच लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।"

यह कहना है महाराष्ट्र के नासिक से करीब 40 किलोमीटर दूर चिंचखेड गाँव के अंगूर उत्पादक किसान संदीप जगताप का। वे कहते हैं, "माना कि मौसम के आगे किसान कुछ नहीं कर सकता है, फिर भी सरकार किसान को ध्यान में रखकर उसके मुताबिक बाजार बनाने के लिए कुछ फैसले तो उठा ही सकती है। यहां अंगूर खुले बाजार में व्यापारी खरीदता है जो बरसात वगैरह का बहाना करके अपने हिसाब से सौदेबाजी करने लगता है। उस पर रेट तय करने को लेकर प्रशासन की कोई निगरानी नहीं है और वह बारिश का बहाना करके जितनी मर्जी उतना रेट घटा देता है। इसलिए आप समझ सकते हैं कि इस बारिश से हम पर दोहरी मार पड़ी है।"

तरबूज की फसल तैयार हो गयी थी, लेकिन बारिश के साथ गिरे ओले से पूरी फसल बर्बाद हो गई

महाराष्ट्र में कोरोना संकट के कारण सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के दौरान परिवहन आदि सेवाएं बाधित होने से नुकसान झेल चुके किसानों पर फरवरी महीने के बाद एक बार फिर 18 मार्च से बेमौसम बारिश का कहर जारी है। विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र, पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और राज्य के कुछ अन्य क्षेत्रों में हुई बारिश के कारण किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। लेकिन, राज्य में अगले दो-तीन दिनों तक बेमौसम बारिश होने की आशंका जताई जा रही है। इसके कारण राज्य के किसानों की मुश्किले बढ़ गई हैं।

औरंगाबाद जिले में कवितखेडा गाँव में 18 किसानों का एक समूह करीब सौ एकड़ के खेत में सामूहिक खेती करता है। इन्हीं किसानों में से एक किसान भाऊसाहेब थोराट बताते हैं, "बरसात का पानी गेंहू की बालियों में भरने से फसल मिट्टी में दब गई है। यही हाल प्याज का है, पानी लगने से जिसकी फसल भी सड़ रही है। अकेले प्याज सड़ने से हमें प्रति एकड़ 30 से 40 हजार रुपए का घाटा उठाना पड़ेगा।"

भाऊसाहेब थोराट बताते हैं कि उन्होंने तो फसल का इंश्योरेंस कराया हुआ है, लेकिन ज्यादातर छोटे किसानों का कोई इंश्योरेंस नहीं होता है। फिर इंश्योरेंस वालों की बहुत शर्तें होती हैं जैसे कि 24 या 48 घंटे के भीतर पूरा डॉक्यूमेंट बनाकर निजी कंपनी को दो। उसके बाद निरीक्षण के लिए उनकी टीम आएगी तो किसानों के सामने फसल नुकसान से जुड़े दावों को मनवाना आसान नहीं होता है। इसी तरह भाऊसाहेब थोराट को लगता है कि खास तौर से छोटे किसानों के लिए सरकारी मुआवजे के भरोसे खेती करना संभव नहीं हैं, क्योंकि मुआवजा यदि उन्हें मिले भी तो यह न के बराबर होता है। उनके समूह ने खरीफ सीजन में गन्ना और अमरुद से जो मुनाफा कमाया था उससे वे इस नुकसान की भरपाई करेंगे। उनकी मानें तो इस बारिश के बाद उनके पास जीरो बैलेंस शीट रह गई है। मतलब खेती करने से यदि उन्हें इस साल कोई खास घाटा नहीं लगा तो मुनाफा भी नहीं हुआ है।

प्याज किसानों को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है।

उत्तर महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के साथ ही विदर्भ अंचल के अमरावती जिले में भी पिछले चार-पांच दिनों से बेमौसम बारिश जारी है। यहां की चिखलदरा में तहसील के कुछ गाँवों में ओलावृष्टि भी हुई है। इसके अलावा राज्य के धुले, पुणे, बुलढाणा, जालौन, नगर और वासिम जिलों में भी ओलावृष्टि हुई है। दूसरी ओर लातूर और कोल्हापुर के अलावा कुछ जिलों में तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश ने बड़े पैमाने पर अनाज, फल और सब्जियों की पैदावार को प्रभावित किया है।

बीती रात बुलढाणा जिले के संग्रामपुर और खामगाव क्षेत्र में हुई ओलावृष्टि से गेहूं, चना, मूंगफली, मक्का और ज्वार आदि फसलें चौपट हो गई हैं। इसी तरह, वासिम जिले में कहीं ओलावृष्टि तो कहीं बारिश के कारण लगभग 4,880 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को नुकसान पहुंचा है। वाशिम जिले में पिछले दो दिनों से चल रही बारिश और ओलावृष्टि से गेंहू और चने के अलावा बड़ी मात्रा में प्याज और हरी सब्जियों की फसल भी बर्बाद हो गई है। बेमौसम बारिश से वाशिम तहसील में 1,693 हेक्टेयर, रिसोड तहसील में 1,473 हेक्टेयर, मालेगाव तालुका में 1,132 हेक्टेयर, मानोरा तहसील में 531 हेक्टेयर और मंगरुलपीर तहसील में 50 हेक्टेयर क्षेत्र खेतों में लगी विभिन्न फसलों को नुकसान पहुंचा है।

वहीं, धुले जिले के विभिन्न स्थानों पर भारी बारिश से प्याज, गन्ना, चना, गेहूं, बाजरा और टमाटर सहित कई दूसरी फसलें खराब हो गई हैं। यहां के आर्नी शिवारा क्षेत्र में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। इसके कारण कुछ प्रभावित किसानों ने मांग की है कि कृषि विभाग को जल्दी ही खराब फसलों का निरीक्षण करना चाहिए और नुकसान उठाने वाले किसानों को सरकार से उचित मुआवजा दिलाने के लिए पहल करनी चाहिए। वहीं, धुले तहसील के चौगाव क्षेत्र में भी ओलावृष्टि के कारण बड़ी मात्रा में प्याज की फसल सड़ गई है। यहां करीब सौ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में प्याज की फसल प्रभावित हुई है।


इसी तरह, पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के दक्षिणी हिस्से के गडहिंग्लज और नेसरी क्षेत्र में मूसलाधार बारिश हुई है, जबकि जिले के कई भागों में बादल छाए हुए हैं। कुछ स्थानों पर मूसलाधार बारिश से खेतों में रबी की फसल तबाह हो गई है। वहीं, मौसम की मार का असर यहां कई गांवों के साप्ताहिक बाजारों पर भी पड़ा है।

बता दें कि इस समय रबी के मौसम के दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सों में गेहूं, चना, ज्वार, संतरा और कई तरह के फलों की खेती होती है। लेकिन, राज्य के कई अंचलों में बेमौसम बारिश का खतरा बना हुआ है। कृषि विभाग ने रबी की फसल उगाने वाले राज्य के सभी किसानों को सूचित करते हुए बताया है कि अगले कुछ दिन बारिश होने की आशंका को देखते हुए वे अपनी फसल को सुरक्षित रखने के मामले में सावधानी बरतें।

परभणी जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर उमरा गांव में नवनाथ कोल्हे ने भी इस बार अपने पांच एकड़ के खेत में गेहूं की फसल उगाई थी। उनके मुताबिक ओलावृष्टि के कारण उनकी करीब तीस प्रतिशत गेहूं की फसल खराब हो चुकी है। वे कहते हैं, "खरीफ के सीजन में बाढ़ आने से मेरा कपास और सोयाबीन बह चुका था। मुझे रबी की फसल से उसकी भरपाई करनी थी। ये हो भी जाती मगर ओला गिरने से सारे अरमान फसल के साथ माटी मिल गए हैं। कोरोना लॉकडाउन में वैसे ही आर्थिक तंगी चल रही है। हमें अपना घर-संसार भी चलाना है और बच्चों को पढ़ाना भी है। बताइए, किसान का परिवार रोये न तो क्या करें!"

वहीं, परभणी जिले में ही किसानों के नेता राजन दादा रबी के मौसम में होने वाली बरसात में आ रही बढ़ोतरी और ओलावृष्टि से चिंतित हैं। वे कहते हैं, "रबी की फसल में वह भी ऐसे समय जब गेंहू वगैरह कटकर बाजार ले जानी की तैयारी की जा रही हो तब अचानक बरसात और ओले होना किसान के लिए घातक है। ऐसी ही परिस्थितियों के कारण ही तो किसान के लिए सरकारी संरक्षण बहुत जरूरी माना गया है। लेकिन, कुछ सालों से किसान को मुआवजा राशि देने में भी सरकारें पहले से ज्यादा आनाकानी करने लगी हैं। इसकी वजह है कि बीमा योजना के माध्यम से वे किसानों की राहत से जुड़ा बड़ा फंड कंपनियों को दे देती हैं। अब इन बीमा कंपनियों से अपने क्लेम का पैसा कोई आम किसान निकाल सकें तो यह अपनेआप में बहुत मुश्किल काम होता है।"

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