भोपाल (भाषा)। बाड़े में रखे गये बाघों के दिन प्रतिदिन आलसी होने के मद्देनजर यहां वन विहार राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों ने बाघों के लिए मांस के शोरबा में पकाकर लकड़ी की गेंद बनाई है, ताकि मांस की महक से आकर्षित होकर वे उसके साथ खेलकर अपने को फुर्तीला बना सकें।
वन विहार राष्ट्रीय उद्यान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आज यहां बताया कि यह देखने में आया है कि बाडे़ में रखे बाघ आलसी बनते जा रहे हैं और 'शो पीस ' बनकर रह गये हैं। इसी के चलते बाघों के लिए मांस के शोरबा में पकाकर लकड़ी की गेंद बनाई गई है, ताकि वे मांस की महक से उसके साथ खेलकर चपल एवं फुर्तीले रह सकें।
उन्होंने कहा कि यह कदम 'पायलट परियोजना ' के रुप में भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में अपनाया गया है। वन विहार राष्ट्रीय उद्यान की निदेशक समीता राजोरा ने से आज कहा, ' 'इस गेंद को खमेर की लकड़ी से बनाया गया है। इस गेंद को बाघ के बाडे़ में रखे जाने से पहले इसे मांस के शोरबा में काफी देर तक उबाला गया, ताकि इस गेंद में मांस की महक आ जाए और बाघ इसकी ओर आकर्षित हों। ' '
उन्होंने कहा, ' 'इस गेंद को बनाने का मूल उद्देश्य बाघ को फुर्तीला, सक्रिय एवं चपल बनाने का है, क्योंकि बाडे़ में रखे जाने से इनके लिए यह संभव नहीं है कि वे इधर-उधर भाग सकें, जैसे कि वे वनों अमूमन में दौड़ते रहते हैं। ' ' समीता ने बताया कि प्रायोगिक तौर पर यह गेंद यहां एक छोटे सी जगह में रखे गये पांच साल के बाघ के बाडे़ में रखी गई। इस बाघ को पन्ना बाघ अभयारण्य से लाया गया है। यह बाघ मांस की महक के कारण इस गेंद की तरफ आकर्षित हुआ और इससे खेलना शुरु कर दिया। जब वह इस गेंद का आदी हो जाएगा, तो तब उसे बडे़ बाडे़ में रखकर इस गेंद को दिया जाएगा।
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उन्होंने कहा कि यह विचार हमारे दिमाग में तब आया, जब हम उत्तर प्रदेश स्थित एक चिड़ियाघर के अधिकारियों से बातचीत कर रहे थे। उत्तर प्रदेश के इस चिड़ियाघर में इसी तरह की गतिविधि शेरों के लिए की गई है।
समीता ने बताया कि हालांकि, यह बाघों के लिए मुश्किल है कि वे आपस में इस गेंद से खेलें, क्योंकि वे अकेले रहना पसंद करते हैं, जबकि शेर झुंड में विचरण करते हैं।
उन्होंने कहा, ' 'जिस तरह से बाघ ने इस गेंद को स्वयं अपनाया है, वह बहुत संतोषजनक है। वह बच्चे के समान व्यवहार कर रहा है, जो इससे खेलता है, छिपाता है, किसी को इसे साझा नहीं करता है और इसे अपने पास ही रखना चाहता है। ' '