सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए पहले एमएसपी बढ़ाई, फिर डीजल महंगा हो गया, हिसाब बराबर

डीजल की कीमत बढ़ने से धान की लागत बढ़ेगी। ऐसे में सरकार ने भले ही एमएसपी में बढ़ोतरी कर दी हो, लेकिन जब लागत ही बढ़ जायेगी तो किसानों को भला इससे क्या फायदा होगा। इनपुट कॉस्ट का बढ़ना मतलब मुनाफे में कटौती।

Update: 2020-06-23 11:00 GMT

लॉकडाउन के दौरान किसानों को भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए दो जून 2020 को धान समेत 14 खरीफ फसलों की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) में बढ़ोतरी की घोषणा की। खरीफ फसलों में सबसे ज्यादा बुवाई धान की होती है। सरकार ने धान की एमएसपी 53 रुपए की बढ़ोतरी की है और उसके बाद से अब तक डीजल की कीमत प्रति लीटर सात रुपए से ज्यादा बढ़ चुकी है। मतलब एक ओर तो सरकार ने एमएसपी में बढ़ोतरी करके दावा किया कि इससे किसानों को राहत मिलेगी, तो दूसरी ओर डीजल की कीमत बढ़ाकर हिसाब-किताब लगभग बराबर कर दिया है।

डीजल की कीमत बढ़ने से धान की लागत बढ़ेगी। ऐसे में सरकार ने भले ही एमएसपी में बढ़ोतरी कर दी हो, लेकिन जब लागत ही बढ़ जायेगी तो किसानों को भला इससे क्या फायदा होगा। इनपुट कॉस्ट का बढ़ना मतलब मुनाफे में कटौती।

किसान ने बताया न्यूनतम समर्थन मूल्य और महंगे डीजल का गुणाभाग

धान की खेती के लिए डीजल कितना महत्वपूर्ण है, यह एक किसान से ही समझते हैं। रजनीश कुमार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिला के मांझीपुर में रहते हैं। वे इस समय कुल छह एकड़ में धान की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। लगभग दो एकड़ में धान लग चुका है।

वह बताते हैं, "धान तो पानी की फसल है। अगर अच्छी बारिश होती है तब भी कम से कम पांच बार पानी लगाना पड़ता है। एक बार एक एकड़ में पानी लगने में कम से सात से आठ घंटे का समय लगता है। इतने समय में 16 से 17 लीटर डीजल की खपत होती है। इस हिसाब से देखेंगे तो एक एक एकड़ में धान की फसल तैयार करने में 80 से 85 लीटर डीजल की खपत आती है।"

"धान लगाने से पहले मैं पूरे खेत को चार बार जुतवा चुका हूं। अभी जिस खेत में धान लगा रहा हूं उसमें पोल काटने (पलेवा) के लिए ट्रैक्टर बुलाया है। बुवाई वाले दिन ही पोल कटता है। मतलब धान के लिए खेत में ट्रैक्टर पांच बार जुताई करता है। पलेवा और जुताई तक में कम से कम 30 लीटर तेल का खर्च आया है। पिछले साल जो खर्च आया था उसकी तुलना में इस बार ज्यादा खर्च आया है।"

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केंद्र सरकार ने दो जून को जब धान की एमएसपी में 53 रुपए की बढ़ोतरी की घोषणा की तब सहारनपुर में डीजल की कीमत थी 64 रुपए 39 पैसे। जब गांव कनेक्शन ने 22 जून को रजनीश से बात की तब उनके जिले में डीजल की कीमत हो गई थी 71 रुपए 67 पैसे, यानी दो जून से 22 जून के बीच डीजल 7 रुपए 24 पैसे महंगा हो गया।

सहारनपुर में 22 जून 2019 और 22 जून 2020 को डीजल की कीमत प्रति लीटर।

अब हम देखते हैं कि रजनीश कुमार की धान की खेती में इस बढ़ोतरी का क्या असर पड़ा। अगर हम पिछले साल से तुलना करें तो 22 जून 2019 को सहारनपुर में एक लीटर डीजल की कीमत थी 63 रुपए 66 पैसे। रजनीश के अनुसार उनके एकड़ में कुल लगने वाले लगभग 115 लीटर डीजल का खर्च पिछले साल आया था 7,320 रुपए, लेकिन इस साल यह खर्च बढ़कर हो गया रहा है कुल 8,242 रुपए। कुल खर्च बढ़ा 922 रुपए।

रजनीश बताते हैं कि अगर फसल बहुत अच्छी रही तो एक एकड़ में लगभग 24 कुंतल धान होता है। 922 रुपए को 24 कुंतल में बराबर-बराबर बांट देते हैं। अब पिछले साल (22 जून 2019) से तुलना करेंगे तो एक कुंतल के पीछे डीजल की ही कीमत बढ़ने मात्र से किसानों की लागत 38 रुपए 41 पैसे बढ़ गई, जबकि सरकार ने धान की एमएसपी बढ़ाई है 53 रुपए। इस लिहाज से किसानों को अब 15 रुपए ज्यादा मिलेंगे, जबकि सरकार ने कहा है कि हमने तो 53 रुपए बढ़ाये हैं।

दो जून, जिस दिन धान की एमएसपी बढ़ाने की घोषणा हुई थी उस दिन से देखेंगे तो एक 115 डीजल की कुल कीमत होगी 7,404 रुपए जबकि 22 जून को यही कीमत बढ़कर हो जाती है 8,242 रुपए। 20 दिन के अंदर ही 838 रुपए का अंतर हो गया। इसे 24 कुंतल धान में बराबर बाटेंगे तो प्रति कुंतल में बढ़ोतरी होगी 34.91 रुपए यानी की लगभग 35 रुपए। बढ़ी हुई कीमत 53 रुपए में से 35 घटाएंगे तो होगा लगभग 18 रुपए। यह उदाहरण मात्र है। देश के अलग-अलग राज्यों में डीजल की कीमत अलग-अलग है। देशभर में डीजल की कीमत पिछले 16 दिनों में 9 रुपए 46 पैसे तक बढ़ी है। नई दिल्ली में 22 जून 2020 को डीजल की कीमत हो गई 78 रुपए 85 पैसे पहुंच गई। गुरुग्राम में यही कीमत 71.26, मुंबई में 77.24, चेन्नई में 76.30 हैदराबाद में 77.06 और बेंगलुरू में 74.98 तक पहुंच चुकी है। पेट्रोल की कीमत 77 रुपए लीटर से लेकर 82 रुपए तक हो गई है। ऐसा पहली बार हुआ है जब पेट्रोल और डीजल की कीमत लगभग बराबर हो गई है, जबकि कच्चे तेल की कीमत इस समय अपने न्यूनतम स्तर पर है।


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कच्च तेल सस्ता फीर भी डीजल महंगा क्यों?

कच्चे तेल की कीमत 20 अप्रैल 2020 को जिस स्तर पर थी उस हिसाब से तब देश में डीजल पेट्रोल की कीमत 7 से 8 रुपए प्रति लीटर होनी चाहिए थी। 20 अप्रैल को जहां ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 27 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थी तो वहीं डबल्यूटीआई क्रूड का भाव 18 फीसदी गिरकर एमसीएक्स पर 1,178 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी क्रूड 15 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था। इतनी बड़ी गिरावट अमेरिकी क्रूड में 21 साल में पहली बार आई थी।

अगर इस समय की बात करें तो 22 जून को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 42.75 डॉलर प्रति डॉलर और डबल्यूटीआई क्रूड का कीमत एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया) पर 3,072 डॉलर प्रति बैरल थी। 20 अप्रैल के बाद इसकी कीमतों में कुछ सुधार तो आया है लेकिन अगर पिछले साल 22 जून 2019 की बात करें तो तब ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 65.20 डॉलर प्रति बैरल थी।


एक बैरल का मतलब होता है लगभग 159 लीटर तेल। इस हिसाब से पेट्रोल-डीजल की कीमत इस समय भी 20 से 21 रुपए प्रति लीटर के आसपास होनी चाहिए, लेकिन कीमत इससे कहीं ज्यादा है। जबकि लग रहा था कि कच्चे तेल की कीमत गिरी है तो लोगों को राहत मिलेगी।

क्रूड ऑयल यानि कि कच्चा तेल दो तरह का होता है। पहला है ब्रेंट क्रूड जिसका कारोबार लंदन से होता है और दूसरा है डबल्यूटीआई क्रूड जिसका कारोबार अमेरिका में होता है। भारत जिस कच्चे तेल का आयात करता है वह है ब्रेंट क्रूड।

भारतीय में खेती की लागत बढ़ाने में डीजल की हमेशा से बड़ी भूमिका रही है। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, भारत में कुल 14.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है। इसमें से 52 फीसदी हिस्सा अनियमित सिंचाई और बारिश पर निर्भर है। काउंसिल ऑन एनर्जी, पर्यावरण और वाटर की एक रिपोर्ट (वर्ष 2018) कहती है भारत में अभी सिंचाई के लिए लगभग 19 मिलियन (1 करोड़ 90 लाख) बिजली से चलने वाले पंपसेट और लगभग 90 लाख डीजल से चलने वाले पंपों का प्रयोग हो रहा है।


कृषि आर्थिक अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2013 में हर पांचवें खेत में डीजल से चलने वाला पंप सेट था। हर 100 खेत में लगभग 20.51 डीजल के पंपसेट लगे हुए हैं। वर्ष 2013 में यह आंकड़ा प्रति 100 खेत 21.36 था। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में हर दो खेत में एक डीजल से चलने वाला पंप सेट में लगा है, जबकि आंध्र प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा में प्रति 50 खेत पर औसतन एक डीजल पंप सेट है।

अगर क्षेत्र की बात करेंगे तो हर 13 हजेक्टेयर में सिंचाई के लिए औसतन एक डीजल पंप सेट लगा है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, पंजाब, ओडिश, बिहार और छत्तीसगढ़ देश में प्रमुख धान उत्पादक राज्य हैं।  

देश में एक साल में जितना डीजल खर्च होता है, उसमें अकेले कृषि क्षेत्र में ही 13 फीसदी की खपत है, जबकि उद्योगों में लगभग 8 और रेलवे में तीन फीसदी डीजल की खपत होती है।


देश में कुल डीजल की खपत में डीजल सिंचाई पंप सेट की हिस्सेदारी 3.33 फीसदी है, जबकि कृषि कार्यों में लगे ट्रैक्टर में कुल 7.65 फीसदी डीजल खप जाता है। 3.13 फीसदी डीजल दूसरे कृषि कार्यों में लगता है। इससे आप बड़ी आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि डीजल की बढ़ती कीमत किसानों के लिए कितना नुकसानदायक साबित होती है।

पंजाब के फाजिल्‍का जिले के बेगावाली गांव के रहने वाले किसान नृपेंद्र सिंह भी डीजल की बढ़ती कीमत से चिंतित हैं। वह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "लॉकडाउन की वजह से हमें वैसे ही काफी नुकसान हुआ है। अब डीजल की बढ़ती कीमत ने कारण हमारी लागत बहुत बढ़ने वाली है। हमारे क्षेत्र के ज्यादातर मजदूर बाहर चले गये हैं, जो आ रहे हैं वे बहुत पैसा मांग रहे हैं। मजदूरी दर लगभग दोगुनी बढ़ गई है। धान की लागत तो वैसे ही बढ़ गई है, डीजल से लागत और बढ़ेगी। एमएसपी बढ़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला है।"

चंदौली में डीजल की कीमत बढ़ने का विरोध करते समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता।

डीजल की बढ़ती लागत का अब विरोध भी हो रहा है। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में समाजवादी पार्टी के कार्यताओं ने खेत में ट्रैक्टर चलाकर विरोध प्रदर्शन किया। इस बारे में सपा के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता मनोज काका गांव कनेक्शन से कहते हैं, "इस समय किसान खेत में धान लगा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण उन्हें पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है, फिर भी सरकार लगातार डीजल की कीमत बढ़ा रही है, जबकि दूसरे देशों में पेट्रोल-डीजल की कीमत घट रही है। कच्चे तेल की कीमत भी कम हुई है, फिर भी सरकार किसानों को राहत नहीं दे रही है।"

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