नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने सहकारी कृषि को बढ़ावा देने के लिए एक और कदम आगे बढ़ाया है। केंद्र ने सहकारी कृषि (समूह में) को बढ़ावा देने के लिये कानून बनाकर सभी राज्यों को उनकी जरूरतों के अनुरूप लागू करने हेतु भेज दिया दिया है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री परशोत्तम रूपाला ने उच्च सदन (राज्यसभा में) में एक पूरक प्रश्न के जवाब में बताया कि किसान समूह बनाकर सहकारी कृषि कर सकते हैं। रूपाला ने बताया कि इसके लिये मौजूदा व्यवस्था में समूह बनाकर खेती करने वाले किसानों को राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा मदद दी जाती है।
उन्होंने कहा कि बाकायदा सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर सामूहिक रूप से सहकारी खेती करने के लिये केन्द्रीय कानून बनाकर राज्यों को भेज दिया गया है, जिसे राज्य सरकारें स्थानीय जरूरतों के मुताबिक लागू कर सकेंगी। उन्होंने बताया कि कम जोत की जमीन को उत्पादक बनाने के लिये समेकित खेती के मॉडल विकसित किये गये हैं। किसान विकास केन्द्रों में इन्हें देखा जा सकता है।
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ये हैं आकड़ेे...
मंत्री ने खेती की जमीन में आ रही कमी के सवाल पर बताया कि नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक खेती की जमीन में वृद्धि हुई है। रूपाला ने बताया कि 2012-13 में कुल कृषि योग्य क्षेत्र 15.5 करोड़ हेक्टेयर था और 2014-15 में भी इतनी ही कृषि भूमि थी।
विकास कार्यों के नाम पर खेती की जमीन के अधिग्रहण के कारण कृषि योग्य जमीन में कमी के संकट को रोकने के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे उपायों से जुड़े एक अन्य पूरक प्रश्न के जवाब में रूपाला ने कहा, केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों को परामर्श दिया है कि अधिग्रहण के लिये उपजाऊ जमीन के बजाय बंजर जमीन को प्राथमिकता दी जाये।
क्या है सहकारी कृषि...
सहकारी खेती करने के एक समूह बनाया जाता है, जिसमें प्रत्येक सदस्य-किसान व्यक्तिगत रूप से अपनी भूमि का मालिक बना रहता है। लेकिन खेती संयुक्त रूप से सभी लोग करते हैं। इस दौरान किसानों के बीच लाभ जमीन के मालिक के अनुपात में बांटा जाता है। इसमें मजदूरी किसानों के बीच काम किए गए दिनों की संख्या के अनुसार बांट दिया जाता है। (इनपुट भाषा)