यूपी: 300 की आबादी वाले गांव में 50 लोगों को पथरी, इलाज के लिए अपना रहे जानलेवा तरीके
इलाज के लिए लखनऊ और दूसरे शहरों का चक्कर लगा-लगाकर लोग थक चुके हैं, खेत और गहने भी इलाज के लिए गिरवी रखे जा चुके हैं
सीतापुर। उत्तर प्रदेश में लखनऊ से सटे सीतापुर जिले में एक गांव है मल्लपुर चौबे। इस गांव में हर लगभग हर तीसरा आदमी पथरी की बीमारी से पीड़ित है। कई लोगों के चार-पांच बार ऑपरेशन हो चुके हैं, लेकिन उन्हें फिर से पथरी हो जा रही है।
सीतापुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर महोली तहसील में करीब 300 आबादी वाले इस गांव में 50 से ज्यादा लोगों को पथरी है। इलाज के लिए लखनऊ और दूसरे शहरों का चक्कर लगा-लगाकर लोग थक चुके हैं। खेत और गहने भी इलाज के लिए गिरवी रखे जा चुके हैं। पैसा तो खर्च हो ही रहा है बीमारी से छुटकारा भी नहीं मिल रहा।
हालात इतने बदतर हो गये हैं पैसे बचाने के लिए लोग अपनी जान जोखिम में डालकर खुद ही पथरी निकालने का दुस्साहस कर रहे हैं। मल्लपुर चौबे गाँव रहने वाले तेजपाल (42 वर्ष) पथरी की बीमारी से पीड़ित हैं। करीब दस साल से उनका इलाज चल रहा है। अब तक दो बार ऑपरेशन हो चुका है। लेकिन अभी भी वे इस बीमारी से लड़ रहे हैं।
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तेजपाल बताते हैं, " दस साल पहले एक बार पेट में हल्का-हल्का दर्द उठा था। पास के सरकारी अस्पताल से दवा ले लिया। कुछ दिन आराम रहा फिर दर्द होने लगा। लोगों के कहने पर सीतापुर जिला अस्पताल गया, जहां अल्ट्रासाउंड में गुर्दे में पथरी निकली। डॉक्टर ने कहा कि पथरी छोटी है दवा से निकल जाएगी। लेकिन कई माह बाद भी नहीं पथरी नहीं निकली। थक हार कर पीलीभीत में एक प्राइवेट अस्पताल में ऑपरेशन करा लिया। करीब 40 हजार रुपए का खर्चा आया था।"
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" दो साल बीतने के बाद फिर से पथरी हो गई। किसी तरह से पैसे का इंतजाम कर फिर ऑपरेशन कराया। तीन साल बाद फिर पथरी हो गई। इस बार दवा खाने से ही पथरी पेशाब के रास्ते निकल गई। एक बार पथरी पेशाब की नली में फंस गई। दर्द असहनीय था। न पैसे थे और न ही इतनी हिम्मत की डॉक्टर के पास जाकर इलाज करा सकूं। घर पर ही एक छोटे मोटर में एक तार फंसा कर ड्रिल मशीन तैयार कर ली। बहुत हिम्मत कर पेशाब की नली में फंसी पथरी को तोड़कर निकाला। बहुत जोखिम भरा काम था, लेकिन मजबूर था। " तेजपाल ने आगे बताया।
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खुद से डॉक्टर बनकर इस तरह से जोखिम उठाने के सवाल पर तेजपाल ने बताया, " बार-बार इलाज के नाम पर बहुत रुपए खर्च हो चुके हैं। खेत भी गिरवी रखना पड़ा। एक बार लखनऊ के विवेकानंद अस्पताल में छह माह तक एडमिट रहा। बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। जब पथरी पेशाब की नली में फंस जाती है तो बहुत दर्द होता है। अब मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि इलाज करा सकूं। मजबूर आदमी क्या नहीं करता है। मैं भी रिस्क लेकर खुद निकाल लेता हूं। "
तेजपाल के घर के कुछ दूरी पर ही राम बहादुर (40वर्ष) का घर है। राम बहादुर का दस साल का बेटा विशाल और पत्नी राम देवी (35 वर्ष) भी पथरी की बीमारी से जूझ रहे हैं। दोनों का दो बार ऑपरेशन हो चुका है। राम बहादुर बताते हैं, " करीब तीन साल पहले बेटे के पेट में दर्द उठा। उसे तुरंत सीतापुर के एक प्राइवेट अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर पथरी निकाल दी। चार एमएम की पथरी निकली थी।"
विशाल की मां रामदेवी बताती हैं, " पहली बार तो ऑपरेशन करा दिया, लेकिन दो साल बाद फिर पथरी हो गई। काफी इलाज कराया लेकिन ठीक नहीं हुआ। एक सुबह-सुबह पथरी पेशाब की नली में फंस गई। हल्की-हल्की दिख रही थी। इसको पेशाब लगी थी, बहुत दर्द हो रहा था। अल्ट्रासाउंड कराने पर पता चला कि 9 एमएम की पथरी है। बड़ी हिम्मत करके घर में रखी चिमटी से पथरी को निकाल दिया, थोड़ा बहुत खून भी निकला था।"
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गाँव में इतनी संख्या में लोगों को पथरी की समस्या है, इस बात से ग्रामीण भी परेशान हैं। गाँव के प्रधान बृजेश कुमार कहते हैं, " हर घर में लोग इस बीमारी से परेशान हैं। हम लोगों को लगता है कि हमारे गाँव के पानी में ही कोई दिक्कत है जिस वजह से लोगों को पथरी हो रही है। एक बार जल निगम की एक टीम आई थी। कुछ हैंडपंप से पानी के सैपल लेकर गए थे। उन्होंने बताया था कि सिर्फ एक हैंडपंप का पानी खराब है बाकी सही है। "
सीतापुर के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर राजकुमार नैय्यर ने इस मामले में बताया, " पेशाब में कैल्शियम ऑक्जलेट या अन्य क्षारकणों का एक दूसरे से मिल जाने से कुछ समय बाद धीरे-धीरे मूत्रमार्ग में कठोर पदार्थ बनने लगता है, जिसे पथरी कहा जाता है। पथरी के कारण असहनीय पीड़ा, पेशाब में संक्रमण और किडनी को नुकसान होता है। इसलिए पथरी के बारे में और उसे रोकने के उपायों को जानना जरूरी है।"
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उन्होंने आगे बताया, " अभी तक मेरे पास इस तरह की कोई सूचना नहीं है। अगर एक गाँव में इतनी संख्या में लोगों को पथरी की समस्या है तो यह गंभीर मसला है। ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि एक ही व्यक्ति को बार-बार पथरी बने। इसके लिए कुछ लोगों की जांच कराई जाएगी। वैसे दूषित पानी और दूषित भोजन करने से ही पथरी बनती है। गाँव में एक कैंप लगाकर मरीजों की जांच की जाएगी और गाँव का पानी का टेस्ट कराएंगे।"
पास के ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर संतोष चौधरी से इस बीमारी के बारे में पूछने पर कहते हैं," मेरे संज्ञान में मल्लपुर चौबे का मामला है। पथरी की बीमारी दूषित पानी और दूषित भोजन से होती है। ग्रामीणों को साफ पानी पीने के लिए कहा गया है। बहुत जल्द उस गाँव में जाकर पथरी होने की वजह पता करेंगे। पानी की टेस्टिंग भी कराई जाएगी।"
ग्रामीणों के इस बीमारी के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया में तैनात वैज्ञानिक दया श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, " मल्ल्पुर चौबे के ज्यादातर लोग सब्जी उगाने का काम करते हैं। ज्यादा पैदावार के लिए ये लोग पेस्टीसाइड और यूरिया का प्रयोग करते हैं। मेरे ख्याल से पेस्टीसाइड के अंधाधुंध प्रयोग से इस गाँव का पानी दूषित हो चुका है, जिस वजह से यहां के लोगों को पथरी बन रही है। "
मानव शरीर के में पथरी होने की वजह पूछने पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ ने नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रो. डॉक्टर नारायण प्रसाद कहते हैं, " आजकल लोगों में पथरी की बीमारी आम समस्या बन गई है। इस बीमारी के पीछे बहुत बड़ा कारण जीनवशैली से जुड़ी अनियमितताएं हैं। गलत खान-पान और जरूरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे में पथरी बनने लगती है। जिन लोगों में यूरिक एसिड बढ़ जाती है उनमें भी पथरी बनने की समस्या होती है। कई बार यह बीमारी अनुवांशिक भी होती है। अगर बार-बार पथरी बन रही है तो गंभीर मामला है। ऐसे मामलों में मरीज की कई जांचें होती हैं और उन वजहों को पता किया जाता है कि किस वजह से पथरी बन रही है। "
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खुद से पथरी निकालने के मामले में वे कहते हैं, " हमारे देश में खुद से डॉक्टर बनने की एक मानसिकता है जो बहुत गलत है। कई बार पथरी पेशाब के नली के लास्ट हिस्से में आकर फंस जाती है, ऐसे में हम लोग उसे बिना ऑपरेट किये ही निकाल लेते हैं, लेकिन किसी मरीज को ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पेशाब की नली में जख्म हो सकता है। संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। अगर सही से पथरी निकली नहीं तो बड़ा ऑपरेशन करना पड़ता है जो काफी महंगा होता है। ऐसे में खुद से डॉक्टर बनने की जगह डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।"
रिपोर्टिंग सहयोग- मोहित शुक्ला, सीतापुर
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